मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना- ये शेर राहत इंदौरी का है. कोरोना ने हमसे एक जिंदा दिल शायर छीन लिया. उर्दू के प्रोफेसर रहे, मुशायरे पर ही पीएचडी की और उसकी बारिकियों को ऐसा समझा कि जिस भी महफिल में गए बादशाहत के झंडे गाड़े. हाथ खाली है तेरे शहर से जाते-जाते, जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते, अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है , उम्र गुजरी है तेरे शहर में आते-जाते. इंदौर के इंदौरी हमारे बीच नहीं हैं.