जैसे ही आंदोलन से हटते हैं किसान सबकी नज़रों से हट जाते हैं. नेताओं की ओढ़ी हुई संवेदनशीलता गायब हो जाती है. उन्हें पता है कि किसानों के पास किसान के अलावा उनकी जाति के पहचान है, धर्म के पहचान है. इन सब पहचानों के पीछे किसान हांक दिए जाएंगे और फिर सारे सवाल अगले किसी बड़े संकट तक के लिए स्थगित कर दिए जाएंगे. किसानों के कर्ज़ माफ़ी की ख़बरें आ तो रही हैं मगर माफी की शर्तों की बारीकियों में असली खेल छिपा होता है.