प्रो. जीडी अग्रवाल की मौत ने साबित कर दिया है कि गंगा के नाम पर जो राजनीतिक भावुकता पैदा की जाती है वो फर्जी है. गंगा को लेकर कोई भावुकता नहीं है. न गंगा नदी के लिए और न ही गंगा मां के लिए है. प्रो. जीडी अग्रवाल गंगा के लिए स्वामी सानंद हो गए. शायद इसलिए कि इससे जुड़ी धार्मिकता गंगा के सवालों को बड़ा फलक देगी. गंगा से जुड़ी धार्मिकता सिर्फ ललकारने के काम आती है. दूसरों को ललकारने के काम आती है. गंगा के कोई काम नहीं आती है. इसीलिए कहा कि श्रद्धा अपनी जगह मगर वो गंगा के लिए नहीं है. गंगा के नाम पर ख़ुद के लिए है. प्रो. जीडी अग्रवाल के साथी तो उनके जाने के बाद गंगा के लिए लड़ते रहेंगे मगर समाज जो दावा करता है कि वह गंगा से है, उनके बीच जी डी अग्रवाल की मौत एक मामूली ख़बर भी नहीं है. ख़बर है भी तो कोई हलचल नहीं है. यहां तक कि गंगा की अविरल धारा को लेकर संतों का समागम करने वाले धार्मिक नेताओं ने भी इस खबर को अनदेखा कर दिया है.