दिल्ली को अब पता चला है, वैसे पूरा नहीं पता चला है, सुप्रीम कोर्ट को भी पता चल गया है और अदालत ने मामले का संज्ञान ले लिया है. बिहार के एक बालिका गृह के भीतर 44 में से 34 बच्चियों के साथ बलात्कार की पुष्टि की ख़बर को सिस्टम कैसे पचा सकता है और समाज कैसे डकार लेकर चुप रह सकता है इसे समझने के लिए नेता, नौकरशाही, न्यायपालिका और जाति के आधार पर गोलबंद ताकतवर लोगों के झुंड के भीतर झांक कर देखना होगा. बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग के कहने पर ही मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट आफ सोशल साइंस ने राज्य के कई सुधार गृहों का जायज़ा लिया और 27 अप्रैल को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। 110 पेज की रिपोर्ट एक दो घंटे में पढ़ी जा सकती है मगर समाज कल्याण विभाग एक महीने तक हरकत में नहीं आया. 30 मई को एफ आई आर का आदेश होता है और 31 मई को मुज़फ्फरपुर पुलिस चार लाइन की एफ आई आर दर्ज करती है.