आज़ादी के बाद दलित राजनीति का एक बड़ा पक्ष रहा है बिना हिंसा के आंदोलन, आज वो टूट गया. हिंसा किसने की, कैसे हुई इसका आधिकारिक पक्ष आता रहेगा मगर तस्वीरों में जो दिख रहा था, वह दलित आंदोलन का हिस्सा कभी नहीं रहा. एससी/एसटी एक्ट में एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले के ख़िलाफ़ उत्तर भारत के कई जगहों पर हिंसा हुई है. इस हिंसा में 7 लोग मारे गए और कई लोग घायल हुए हैं. बड़ी संख्या में सरकारी और प्राइवेट संपत्तियों को नुकसान पहुंचा है. हिंसा का समर्थन नहीं किया जा सकता है. एक भीड़ जब हिंसा का सहारा लेती है तब वह अपने आंदोलन से नियंत्रण खो देती है. ठीक है कि दूसरी तरह की भीड़ अक्सर हिंसा का सहारा लेती है मगर दलित आंदोलन का इतिहास संवैधानिक रास्तों पर चलने का रहा है. तो क्या यहां से कोई नया मोड़ आ गया है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ राय रखी जा सकती है मगर हिंसक प्रदर्शन करने का तरीका उसी संविधान के खिलाफ है जिसकी रक्षा के लिए कई जगहों पर आंदोलनकारी सड़कों पर उतरे थे.