दिल्ली विश्वविद्लाय के प्रोफेसर आपस में मिलकर कोर्स की रूपरेखा तय करे, वहां शिक्षकों के बीच सहमति असहमति हो सकती है लेकिन जब यह चर्चा रात तक चल रही हो वहां पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य पहुंच जाते हैं और नारेबाज़ी करते हैं. क्या पाठ्यक्रम तय करने की प्रक्रिया में छात्र संगठनों की भूमिका तय है. 20 जुलाई से विश्वविद्यालय का सत्र शुरू हो रहा है लेकिन अंग्रेजी, राजनीति शास्त्र, इतिहास और समाजशास्त्र के पाठ्यक्रम का निर्धारण नहीं हो पाया है. शिक्षक संघों और छात्र संगठनों की दखल अंदाजी के चलते पाठ्यक्रम निर्धारण करने वाली एकेडमिक काउंसिल की बैठक में चर्चा की जगह बवाल हो रहा है. आखिर दिल्ली विश्वविद्यालय जैसा क्रीम संस्थान क्यों राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है, देखिए ये रिपोर्ट.