आज का मुक़ाबला एक ऐसे प्रदेश के बारे में है जहां बाहरी और मूल निवासी की बहस लगातार जारी है. बताया जाता है कि ब्रिटिश राज के शुरुआती दिनों में असम में भारी मात्रा में बंगाली सरकारी नौकरियों में भर्ती किए गए. असम में इसको बहुत पसंद नहीं किया गया, लेकिन ओढ़ी हुई अच्छाई बनी रही. 1951 में पहली बार असम में एक नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न्स यानी एनआरसी की एक लिस्ट छपी. लेकिन फिर सन् 1960 और 70 में बांग्लादेश लिबरेशन लड़ाई के चलते माना जाता है कि करीब 1 करोड़ लोगों ने भारत में शरण लिया, जिसमें से काफी लोग असम में जा बसे. इसमें भारी संख्या में शरणार्थी बंगाली बोलने वाले मुस्लिम थे. जंग ख़त्म हुई. ईस्ट पाकिस्तान से बांग्लादेश बना और यहां असम में राजनीति की एक नई पौध आई.