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रवीश की रिपोर्ट : राम मंदिर विवाद में अब मध्यस्थता पर मुहर

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1992 में गिराई गई बाबरी मस्जिद और उसकी जगह बने एक आधे-अधूरे ढांचे के चारों ओर बरसों से सुरक्षा एजेंसियों का घेरा है. जब ये मस्जिद गिराई गई थी तो कहते थे कि मस्जिद ही नहीं टूटी है, साझा रवायत का भरोसा टूटा है. दूसरी तरफ़ ये दावा किया जाता है कि अयोध्या में राम मंदिर आस्था का सवाल है- जिसको लेकर कोई समझौता नहीं हो सकता. दरअसल पिछले तीन दशकों में अयोध्या के राम मंदिर विवाद को लेकर देश ने उन्माद के कई दौर देखे. अगर ध्यान से नज़र दौड़ाएं तो हमारे समय की बहुत सी सामाजिक-राजनीतिक टूटन इसी विवाद की देन है. 92 में मस्जिद गिरने के बाद देश भर दंगे हुए, मुंबई में भी. दंगों की प्रतिक्रिया में पहली बार मुंबई ने आतंकवाद की चोट देखी- 1993 के मुंबई धमाकों ने जैसे शहर का किरदार हमेशा-हमेशा के लिए बदल डाला. अयोध्या से ही लौट रहे कारसेवकों से भरी ट्रेन में 2002 में गोधरा में आग लगी और उसके बाद तीन महीनों तक पूरा गुजरात एक जलती हुई ट्रेन में बदल गया. गुजरात की हिंसा को लेकर नए सिरे से आतंकी हमले हुए. दूसरी तरफ़ अदालत में ये सारा विवाद चलता रहा. कहने को ये महज 2.77 एकड़ ज़मीन का विवाद है लेकिन इसके पीछे जैसे एक एक पूरे इतिहास का भी फ़ैसला होना है.



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