हम बस चिल्लाते रह गए और सब मलबे में समा गया...धराली की तबाही के खौफनाक मंजर की आंखोंदेखी

महिलाओं के गमगीन चेहरे यह बताने के लिए काफी हैं कि उस गांव में हुए जानमाल के विनाश से वे कितनी दुखी हैं. वे चारों तरफ फैले पड़े मलबे को ऐसे देखती हैं जैसे उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा है कि आपदा आने से पहले तक एक खूबसूरत और जीवंत गांव का 70 से 90 प्रतिशत हिस्सा अब मलबे के नीचे दब चुका है.

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  • धराली गांव में आए विनाशकारी सैलाब में आधे से ज्यादा इलाका तबाह
  • आपदा के वक्त गांव में जो लोग मौजूद थे, उनमें स्थानीय, मजदूर और पर्यटक शामिल थे
  • आपदा के समय मदद के लिए चिल्लाया और सीटियां बजाईं, लेकिन संभलने तक का मौका नहीं मिला
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देहरादून:

चेहरे पर उदासी लिए कई महिलाएं मुखबा गांव के किनारे एक रेलिंग पर बैठी हुई हैं जहां से सड़क से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर धराली में दो दिन पहले हुआ विनाश का दृश्य साफ दिखाई देता है. मंगलवार दोपहर बाद आयी त्रासदी को उन्होंने आंखों के सामने घटते देखा जब ढलानों से बहता हुआ मलबा नीचे की ओर आता चला गया जिसमें आधे से ज्यादा धराली गांव तबाह हो गया, ऊंची-ऊंची इमारतें जमींदोज हो गयीं और अपनी जान बचाने को भागते लोग उसमें समा गए.

कुदरत ने संभलने तक का मौका नहीं दिया

महिलाओं के गमगीन चेहरे यह बताने के लिए काफी हैं कि उस गांव में हुए जानमाल के विनाश से वे कितनी दुखी हैं. वे चारों तरफ फैले पड़े मलबे को ऐसे देखती हैं जैसे उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा है कि आपदा आने से पहले तक एक खूबसूरत और जीवंत गांव का 70 से 90 प्रतिशत हिस्सा अब मलबे के नीचे दब चुका है. जब त्रासदी आयी तो लोग मदद के लिए चिल्लाए लेकिन कुछ ही सेकंड में सब कुछ तबाह हो गया और किसी को भी उनके लिए कुछ करने का मौका नहीं मिला .

हम बस चिल्लाते रहे कुछ न कर पाए...

आशा सेमवाल ने कहा, “हम कुछ भी नहीं कर पाए. हम लोगों को सतर्क करने के लिए केवल चिल्लाए, सीटियां बजाईं . हम केवल चिल्लाते रहे. धराली हमारा पड़ोसी गांव है. हम वहां लगभग सभी को जानते थे . केवल भगवान जानता है कि उनका क्या हुआ होगा.” पड़ोस के एक अन्य गांव मारकण्डेय की रहने वाली निशा सेमवाल ने ‘पीटीआई-वीडियो' को बताया, “नीचे लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे लेकिन हम कुछ नहीं कर पाए . कुछ लोगों के पूरे परिवार चले गए. यह एक बुरा सपने जैसा था. सुबह तक सब कुछ अच्छा था लेकिन दोपहर बाद सब खत्म गया.”

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जब आपदा आई तब वहां 150 लोगों के होने का अनुमान

इस विनाशकारी त्रासदी से मुखबा गांव की एक और निवासी सुलोचना देवी भी हक्की-बक्की रह गयीं . उन्होंने कहा, “मेरे पास शब्द नहीं हैं. मैं सरकार से केवल यही अपील करती हूं कि वह प्रभावित लोगों की मदद करें.” अनेक स्थानीय लोगों ने कहा कि लापता लोगों की संख्या 150 से कम नहीं होगी. एक व्यक्ति ने कहा, “जब आपदा आयी, उस समय स्थानीय ग्रामीण, निर्माणाधीन होटलों में काम करने वाले नेपाल और बिहार के मजदूर और धराली बाजार में पर्यटक भी मौजूद थे. इनकी संख्या 150 से कम नहीं होगी.”

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सीटियां बजाई मगर...

मुखबा के एक पुजारी ने बताया, “हमने लोगों को सतर्क करने के लिए सीटियां बजाई, लेकिन यह कोई साधारण बाढ़ नहीं थी . यह जलप्रलय था. बाजार में बिहारी और नेपाली मजदूर, पर्यटक और स्थानीय लोग थे. वहां करीब 20-25 बड़े होटल थे जो जमींदोज हो गये. 500 साल पुराना कल्प केदार मंदिर भी दब गया.” मुखबा में मौजूद उत्तरकाशी से स्नातक की पढ़ाई कर रहे छात्र जयराज ने बताया कि पहले उसकी मां ने इस सैलाब को आते देखा और उन्हें बताया जिसके बाद वह भागता हुआ एक ऐसी जगह पहुंचा जहां से पूरा दृश्य दिखाई दे रहा था.

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मलबा आया और सब खत्म

जयराज ने कहा, 'उस समय धराली बाजार में कम से कम 25-30 लोग थे . मुझे नहीं पता कि वहां पानी के प्रहार से गिरे करीब एक दर्जन होटलों के अंदर कितने लोग थे . मैं लोगों को आपदा से सतर्क करने के लिए सीटियों पर सीटियां बजाता रहा लेकिन ज्यादा कुछ नहीं कर पाया क्योंकि मलबा तेजी से बहता आ रहा था और देखते ही देखते सब खत्म हो गया.” एक होटल में काम करने वाले जयवीर नेगी ने बताया, “धराली में 400 लोगों की आबादी है . घटना के समय कुछ लोग बाजार में थे, कुछ अन्य गांव में चल रहे हरदूध मेले में थे और दोपहर के भोजन का समय होने के कारण कुछ अन्य अपने घरों में थे. बाहर से आए हुए पर्यटक होटलों में थे.”

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500 KM प्रति घंटा की रफ्तार से आया सैलाब

गंगोत्री मंदिर समिति के सचिव सुरेश सेमवाल ने कहा, “आपदा में लापता लोगों की संख्या 50-60 होगी . धराली में आपदा से कम से कम 300-400 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ होगा.” धराली में ‘हिमगिरि' नामक होटल का संचालन करने वाले संजय सिंह पंवार ने कहा कि वह सैलाब में ध्वस्त हो गया. उन्होंने कहा, “बाढ़ कम से कम 500 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से आयी . इसने लोगों को यह समझने का समय भी नहीं दिया कि क्या हो रहा है और अपनी जान बचाने के लिए वे कहां को भागें.”

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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