उत्तराखंड में जंगल और गांवों को जोड़ने की अनूठी पहल, रुद्रनाथ में ग्रामीण संभालेंगे यात्रा की जिम्मेदारी

केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के साथ स्थानीय स्तर पर चंडी प्रसाद भट्ट पर्यावरण एवं विकास केन्द्र के स्वयंसेवी भी इस कार्य में वन विभाग के साथ सहयोग कर रहे हैं.

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नई दिल्ली:

पंचकेदारों में एक रूद्रनाथ मंदिर की यात्रा पर आने वाले तीर्थयात्रियों को इस बार बेहतरीन सुविधाएं मिलेगी. ये सुविधाएं रूद्रनाथ मंदिर को जाने वाले गांवों में केदारनाथ वन्यजीव वन प्रभाग की ओर से गठित ईको-विकास समितियों के माध्यम से दी जायेगी है. इसके लिए सिरोली,ग्वाड़,सगर,गंगोलगांव और कुजौं मैकोट में ग्रामस्तरीय पारिस्थितिकी विकास समिति का गठन कर इन्हें इसकी जिम्मेदारी सौपी जा रही है.केदारनाथ वन्यजीव वन प्रभाग इन गांवों के ग्रामीणों के साथ मिलकर पिछले दिसंबर से  ग्राम स्तर पर बैठक का दौर पूरा कर चुका है. वन विभाग ग्रामस्तरीय 'ईको विकास समितियों' के सशक्तिरकरण के जरिए रूद्रनाथ मंदिर की यात्रा पर आने वाले तीर्थयात्रियों से होने वाली आय का लाभ इन गांवों के सभी निवासियों को मिले इसके लिए योजना तैयार कर चुका है. ग्राम स्तरीय समितियों के माध्यम से केदारनाथ वन्यजीव वन प्रभाग यात्रियों को आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ-साथ गांवों में तीर्थाटन और प्रकृति पर्यटन से आजीविका के नए अवसरों को उपलब्ध की दिशा में सक्रिय है. इन समितियों को मजबूती प्रदान करने के पीछे वन अधिकारी की सोच इससे  अभयारण्य क्षेत्र में वन और वन्यजीवों के संरक्षण के साथ अजैविक कुड़े-कचरे के योजनाबद्ध प्रबंधन  के साथ स्थानीय लोगों को सम्मानजनक रोजगार के अवसर दिलाना है. साथ ही इन समितियों के सहयोग  से संरक्षित क्षेत्र में अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाना है.

केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के साथ स्थानीय स्तर पर चंडी प्रसाद भट्ट पर्यावरण एवं विकास केन्द्र के स्वयंसेवी भी इस कार्य में वन विभाग के साथ सहयोग कर रहे हैं. केदारनाथ वन्यजीव वन प्रभाग ने जो शुरूवाती योजना बनाई है उसमें इस बार रूद्रनाथ और उसके पैदल मार्गो पर ईको-फैंडली शौचालय भी स्थापित किए जा रहे है. डी आर डी ओ की ओर उच्च हिमालयी परिवेश के अनुसार तैयार किए गए शौचालयों में मल के डिकंपोजीशन के लिए विशेष तकनीकी का इस्तमाल किया गया है जिससे कम पानी में शौचालय की स्वच्छता भी रहेगी और परिवेश में गंदगी भी नहीं रहेगी.

रूद्रनाथ पंचकेदार श्रृंखला के सबसे सुन्दरतम स्थानों में एक है.केदारनाथ कस्तूरी मृग अभयारण के भीतर स्थित भगवान शिव के इस मंदिर तक पहुंचने के लिए निकठतम मोटर सड़क से 18 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा करनी पड़ती है. हर साल देश के अलग-अलग कोने से भगवान शिव की आराधना और केदारनाथ कस्तूरी मृग अभयारण के भ्रमण के लिए सैकड़ो तीर्थयात्री पहुंचते हैं.पंचकेदार के अन्य तीर्थो की तरह सदियों से तीर्थयात्री भगवान रूद्र के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं. यहां पर गुफा में बने मंदिर में भगवन शिव के मुखरबिन्द की पूजा होती है.नेपाल में पशुपति नाथ की तरह यहां भगवान शिव के रूद्र रूप में मुख की पूंजा होती है.

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रूद्रनाथ को जाने को जाने वाले पैदल रास्ते पर स्थित इन पांचों गांवों की ईडीसी चिन्हित वन क्षेत्रों में निश्चित धनराशि पर तीर्थयात्रियों और पयटकों को आवस और खानपान की अस्थायी सुविधा उपलब्ध करायेगी. रूद्रनाथ की यात्रा पर जाने वाले पर्यटकों के लिए ईडीसी की ओर से प्रशिक्षित गाइड उपलब्ध कराये जाएंगे. इसके लिए वन विभाग ने पहले चरण में 30 से अधिक युवाओं को नेचर गाईड की बेहतरीन प्रशिक्षण दिला चुका है. इन गाईडों को स्थानीय वनस्पति, वन्यजीव और खासतौर पर आसपास के पक्षियों के संसार के बारे में जानकारी दी गई है.

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तीर्थयात्रियों और पर्यटकों से होने वाली आय का लाभ यात्रा मार्ग के गांवों समुदाय को मिले जिससे वे आजीविका के साथ अपने परवेश के संरक्षण में और बेहतर ढंग से भागीदार बने.इसके लिए केदारनाथ वन्यजीव वन प्रभाग ने रूद्रनाथ मंदिर की यात्रा पर आने वाले तीर्थयात्रियों की औसत संख्या और इस संवेदनशील क्षेत्र की भार वहन क्षमता का आकलन करते हुए यात्रा की योजना तैयार की है. तीर्थयात्री अपनी सुविधा के अनुसार आनलाईन पंजीकरण कर यात्रा पर आयेगा. सिरोली,ग्वाड़,सगर,गंगोलगांव,कुजौं-मैकोट और डुमक गांव से रूद्रनाथ मंदिर और केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य की यात्रा कर सकेगा. इसके लिए वनविभाग की ओर से इन गांवों की ईडीसी को अस्थायी आवास के लिए वनक्षेत्र में यात्राकाल में अस्थायी टेंट लगाने के जिए स्थान चिन्हित किए जा रहे हैं.

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वन विभाग जिस तरह से ग्रामीणों को तैयार कर रहा है उससे साफ लग रहा है कि इस यात्रा सीजन से इस क्षेत्र में ईडीसी के माध्यम से ही सुविधाएं मिल सकेगी. ईडीसी से प्राधिकृत व्यक्ति ही इस क्षेत्र में पर्यटक और तीर्थयात्रियों को सुविधा उपलब्ध करा सकेंगे. इस व्यवस्था से यात्रा मार्ग के सभी ग्रामवाशियों को लाभ मिलेगा ऐसी तैयारी हे.  

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ईडीसी और वन विभाग मिल कर जो योजना बना रहे हैं उसमें यात्रा मार्ग में वैज्ञानिक आधार  एक दिन में  अधिकतम पर्यटकों की संख्या निर्धारित की जायेगी. इसके लिए गांववार संख्या निश्चित की गई है. इस दुर्गम-क्षेत्र में पर्यटक ओर तीर्थयात्रियों की सुरक्षा को देखते एक निश्चित समय के बाद आगे की यात्रा के लिए अगले दिन का इंतजार करने की व्यवस्था बनायी जायेगी. जिससे स्थानीय स्तर पर तीर्थयात्री और पर्यटकों के ठहरने और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने से समीपवर्ती गांव की आय में बढ़ोत्तर हो.

यात्रा मार्ग में आवास के लिए अस्थायी टैंट और भोजन से जुड़ी सुविधाएं ईडीसी के माध्यम से उपलब्ध होगी जिसका शुल्क निश्चित होगा. सिरोली,ग्वाड़ और गंगोल गांव की ईडीसी ने इसके लिए आपनी कार्ययोजना बना ली है. सगर और कुंजौं-मैकोट गांवों की ओर से इसकी तैयारी की जा रही है. प्रशिक्षित गाइड की सुविधा ईडीसी उपलब्ध करायेगी. गांव में अधिक से अधिक लोग यात्रा का लाभ उठाये इसके लिए ईडीसी गांव में होमस्टे को बेहतर बनाने के लिए कार्य करेगी.
समुद्रतल से लगभग दस हजार फुट की उचाई पर स्थित भगवान रूद्रनाथ की पूजा केवल ग्रीष्मकाल में ही होती है. शीतकाल के छह महीने चमोली के जिला मुख्यालय गोपेश्वर में स्थित प्राचीन गोपीनाथ मंदिर में भगवान रूद्रनाथ की उत्सव मूर्ति की पूजा होती है. इसके लिए पूरे देश से लोग पहुंचते हैं जो  मुख्यरूप से मण्डल घाटी में सिरोली गांव से अनुसूया मंदिर होते हुए या दूसरा रास्ता जो ग्वाड़ गांव से जाता है उससे दुर्गम यात्रा करते हैं. इसी तरह सगर और गंगोल गांव से पुंग खर्क होते हुए व कुजौं मैकोट और डुमक-कलगोट से तोली होत हुए रास्ता जाता है.

इन सभी जगहों से सुन्दर प्राकृतिक परिवेश,घने वन क्षेत्रो में खड़ी चढ़ाई की कठिन यात्रा तय कर पनार और पांचणी बुग्याल में पर्यटक पहुंचता है तो यहां की सुन्दरता से कठिन यात्रा का कटु-अनुभव भूल जाता है. दुर्गम यात्रा होने व केदारनाथ कस्तूरी मृग अभयारण के भीतर स्थित होने के कारण अन्यतीर्थो की अपेक्षा यहां सुविधाओं की अल्पता के चलते तीर्थयात्री और पर्यटकों की आवाजाही सीमित थी. इधर कोविड काल में अधिकतर तीर्थस्थल बंद हो गए थे तब से रूद्रनाथ में पर्यटक और तीर्थयात्रियों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई. यात्रियों की संख्या बढ़ने से कुछ स्थानों पर अस्थायी रूप से दूकानें आदि बनायी गई थी जिन्हें वन विभाग की ओर से समय-समय पर घ्वस्त किया जाता रहा है. जिससे वन विभाग को यात्रयों और लोकआक्रोश का सामना करना पड़ता था. इस कार्यक्रम के जरिये वन विभाग स्थानीय ग्रामीणों को अभयारण्य क्षेत्र में पर्यटन और तीर्थाटन से जोड़ कर आजीविका संबर्द्वन की तैयारी कर रहा है साथ ही संरक्षित क्षेत्र के संरक्षण में लोकभागीदारी को बढ़ावा दे रहा है.

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