आधी सदी के रिश्तों को जंग खाने देंगे ये तो मुमकिन नहीं...अखिलेश से मुलाकात के बाद आजम खान क्या कुछ बोले

जमीन हड़पने और चोरी समेत 100 से ज्यादा मुकदमों में लगभग 2 साल जेल में बिताने के बाद हाल ही में रिहा हुए सपा के वरिष्ठ नेता ने मीडिया के एक वर्ग का भी आभार व्यक्त किया और इसे धारणा में बदलाव बताया.

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  • आजम खान नेअखिलेश यादव से मुलाकात कर यूपी में न्याय और राजनीतिक बदलाव की जरूरत पर जोर दिया
  • आजम खान ने बताया कि उनकी मुलाकात का मकसद जुल्म और अन्याय के बावजूद धैर्य और मजबूती का संदेश देना था
  • आजम खान ने कहा कि उनकी और यादव फैमिली की राजनीतिक रिश्तों की लंबी कहानी है, जो आधी सदी से भी अधिक पुरानी है
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लखनऊ:

समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान ने को लखनऊ में सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की और कहा कि पार्टी अध्यक्ष के साथ उनकी मुलाकात का उद्देश्य उत्तर प्रदेश में न्याय और राजनीतिक बदलाव की जरूरत और दृढ़ता का संदेश देना था. खान ने अखिलेश से मुलाकात के बाद मीडिया से कहा, 'कभी-कभी, आप सभी का बनाया गया माहौल हमें या तो विरोध में या समर्थन में बोलने के लिए मजबूर करता है. हमारी मुलाकात का असली मकसद यह दिखाना था कि तमाम जुल्म और ऐतिहासिक अन्याय के बावजूद आज भी ऐसे लोग मौजूद हैं जिनका सब्र पत्थर या पहाड़ से भी ज्यादा मजबूत है.'

अखिलेश से मुलाकात पर क्या बोले आजम खान

आजम खान ने कहा कि मुलाकात में क्या हुआ, ये बताया नहीं जा सकता है. बस इतना ही कहूंगा कि रिश्तों की मुलाकात है. नई मुलाकात नहीं है, होती रहती है, हाल में भी हुई थी. आधी सदी के रिश्तों को अगर किसी ने भी ये समझा था कि हम उसपर जंग खाने देंगे तो मुमकिन नहीं है. उधर से भी मुमकिन नहीं है और इधर से भी मुमकिन नहीं है. खुदा न करे अगर कोई ऐसी बात होती तो मुझसे ज्यादा दर्द उधर होता. ये सिर्फ राजनीतिक रिश्ते नहीं हैं बल्कि उस वक्त के रिश्ते हैं जब उनके वालिद के जमाने से जब हम सिर्फ विधायक हुआ करते थे और उस वक्त ये गुमान भी नहीं था कि हम कभी सरकार बना पाएंगे. उस वक्त कांग्रेस बहुत ताकत में थी.

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आज बीजेपी जिस तरह से मुल्क में ताकतवर...

सपा नेता आजम खान ने कहा कि आज बीजेपी जिस तरह से मुल्क में ताकतवर है, उससे कहीं ज्यादा ताकतवर थी कांग्रेस. लेकिन देखा आपने हल्के हल्के हमारी मेहनतों की नतीजा निकला और सरकार भी बनाई और सरकारें बनाई. आगे भी उम्मीद करते हैं कि हम सरकार बनाएंगे और सरकारें भी बनाएंगे हां बस इतना फर्क रहेगा कि हमें ये नहीं मालूम था कि सरकारों के कामों में क्या-क्या आता है. हमें सिर्फ पता था वो जो आखिरी व्यक्ति बैठा है. जिसपर हमारी बहुत ओझल सी नजर जा रही है, उसे देखें कि उसकी आंखें नम तो नहीं हैं. नम है तो उसके आंसू पोछने की कोशिश करें. उसके सिर पर साया नहीं तो उसके साये का इंतजाम करें, अगर वो भूखा है तो उसके भोजन का इंतजाम करें.

घृणा का अंजाम आखिर क्या होगा...

अगर वो बेरोजगार है तो उसके लिए सहारा बने, हमें ये खबर नहीं थी कि सरकार का काम फलाही कामों के अलावा किसी को बर्बाद कर देना, तबाह कर देना, फना कर देना और मिटा देने का भी है. बस्ती की बस्तियां उजाड़ देना और खानदानों को नेस्तानाबूद कर देना और घृणा का ऐसा बाजार गर्म कर देना कि जमीन भी घृणा की हो, इमारत भी घृणा की हो, सामान भी घृणा का, बेचने वाला भी घृणा का और खरीदने वाला भी घृणा को हो. क्या होगा ऐसे बाजार का, आखिर क्या अंजाम होगा इसका. उसी अंजाम से बचाने की हम सभी की कोशिश करनी चाहिए. 

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