जातियों के सोशल इंजीनियरिंग से अखिलेश की सत्ता वापसी की जुगत, बढ़ाया BJP-BSP का टेंशन

समाजवादी पार्टी पर सिर्फ़ यादव समाज को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है. इसीलिए अखिलेश यादव (Akhilsh Yadav) ने इस पार राजनैतिक गियर बदल लिया है.अब उनके एजेंडे पर नोनिया, राजभर, निषाद जैसा अति पिछड़ा समाज है.

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अखिलेश यादव की पॉलिटिक्स का नया अंदाज.
लखनऊ:

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav Politics) पिछले दस दिनों में छह बार प्रेस कांफ्रेंस कर चुके हैं. जब भी वह मीडिया से मुख़ातिब होते हैं तो कभी चौरसिया समाज के लोग उनके साथ होते हैं तो कभी राजभर बिरादरी के नेता मंच पर होते हैं. एक बार उनके साथ नोनिया चौहान जाति के नेता नज़र आए. एक दिन अखिलेश अपने साथ लालचंद गौतम को लेकर मीटिंग हॉल में पहुंचे. गौतम को उन्होंने बाबा साहेब आंबेडकर की मूर्ति भेंट की. कुछ दिनों पहले गौतम ने भी अखिलेश यादव को भी एक तस्वीर तोहफ़े में दी थी. इसी फोटो पर जमकर विवाद हुआ था.  

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लालचंद गौतम को भेंट की अंबेडकर की प्रतिमा

बीजेपी ने लालचंद गौतम की भेंट की हुई फोटो को लेकर आसमान सर पर उठा लिया था. इसी तस्वीर में आधा चेहरा अखिलेश यादव का और आधा बाबा साहेब अंबेडकर का था. इसी तस्वीर के बहाने बीजेपी ने समाजवादी पार्टी को दलित विरोधी साबित करने की मुहिम शुरू कर दी थी. विवाद बढ़ते ही अखिलेश बैकफ़ुट पर आ गए. उन्होंने कहा लालचंद गौतम से गलती हो गई. लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों के सामने गौतम को अंबेडकर की मूर्ति भेंट कर उन्होंने संदेश दिया कि अखिलेश उनके साथ हैं. 

बता दें कि लालचंद गौतम जाटव बिरादरी से हैं. बीएसपी चीफ़ मायावती भी इसी समाज से हैं. समाजवादी पार्टी के राज्य सभा सांसद रामजी लाल सुमन के साथ अखिलेश मजबूती से खड़े हैं. क्योंकि सुमन भी जाटव बिरादरी से हैं

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अखिलेश ने बदले राजनीति के तौर तरीके

लोकसभा में PDA वाला सोशल इंजीनियरिंग हिट रहा. उसके बाद से ही अखिलेश यादव ने राजनीति के तौर तरीके बदल लिए हैं. मुस्लिम यादव वाले MY सामाजिक समीकरण का अब वे ज़िक्र भी नहीं करते. वे जानते हैं ग़ैर यादव OBC और जाटव दलित के वोट के बिना सत्ता में उनकी वापसी नहीं हो सकती. इसीलिए अब उनका पूरा फोकस इसी दोनों वोट बैंक पर है. अखिलेश यादव को पता है समाजवादी पार्टी का अतीत ही उनकी सबसे बड़ी मुसीबत है. इसीलिए इतिहास की उन गलियों को छोड़ कर अब वे भविष्य के रास्ते तलाशने में जुटे हैं.

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दलितों के नए मसीहा बने अखिलेश यादव!

इतिहास गवाह है कि समाजवादी पार्टी पर कई बार दलित विरोधी होने के आरोप लगे. मायावती के साथ गेस्ट हाउस कांड से लेकर प्रमोशन में आरक्षण के विरोध तक. बीएसपी अध्यक्ष बार बार समाजवादी पार्टी की इस दुखती रग को दबाती रहती हैं. अखिलेश यादव ने भी अब इसका जवाब तैयार कर लिया है. वह दलित समाज को मैसेज देते रहते हैं कि बीएसपी अब बीजेपी की बी टीम बन गई है. बीजेपी को हराना है तो समाजवादी पार्टी के समर्थन के अलावा कोई विकल्प नहीं है. दलितों में पासी वोट तो समाजवादी पार्टी को मिलने लगा है. पिछले लोकसभा चुनाव में फैजाबाद की जनरल सीट पर अवधेश प्रसाद को अखिलेश ने टिकट दिया था. वह चुनाव जीत गए. अवधेश पासी समाज से हैं. ग़ैर जाटव और ग़ैर पासी दलित वोटरों का झुकाव बीजेपी की तरफ रहा है. 

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योगी सरकार के खिलाफ अखिलेश का दांव

मायावती के दलित वोट को अपना बनाने के लिए अखिलेश यादव पॉज़िटिव और निगेटिव पॉलिटिक्स कर रहे हैं. निगेटिव का मतलब ये हुआ कि वे यूपी की बीजेपी सरकार को ठाकुरों की सरकार की तरह ब्रांडिंग करने में जुटे हैं. इसके लिए उन्होंने यूपी पुलिस के थानेदार और दारोग़ा की लिस्ट को अपना हथियार बनाया है. आए दिन अखिलेश यादव किसी न किसी जिले में तैनात थानेदारों की लिस्ट जारी करते हैं. वह बताते हैं कि कितने थानेदार PDA समाज से हैं और कितने क्षत्रिय. आगरा जिले से उन्होंने ये काम शुरू किया था. आज उन्होंने कौशांबी जिले की लिस्ट जारी कर दी. दो साल बाद होने वाले चुनाव तक वे ये माहौल बनाए रखने के मूड में हैं.

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दलित मायावती को छोड़ अखिलेश की तरफ जा रहे

दलितों को लेकर अखिलेश यादव अपनी छवि बदलने में लगे हैं. वह अब अपने को बाबा साहेब आंबेडकर का अनुयायी कहते हैं. समाजवादी पार्टी में उन्होंने अंबेडकर के नाम पर यूथ विंग बनाया और बीएसपी के कई ताकतवर नेताओं को अपनी पार्टी में जगह दी. इंद्रजीत सरोज से लेकर दद्दू प्रसाद तक. ऐसे नेताओं को आगे कर अखिलेश यादव ये माहौल बना रहे हैं कि दलितों की चिंता करने वाली पार्टी बीएसपी नहीं समाजवादी पार्टी है. इसीलिए दलित अब मायावती का साथ छोड़ कर उनकी तरफ जाने लगे हैं. पर इस रास्ते में सबसे बड़ी अड़चन चंद्रशेखर रावण हैं. मायावती की तरह ही वह भी अखिलेश यादव को दलित विरोधी बताने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते हैं. 

अखिलेश ने बदला राजनैतिक गियर

अखिलेश यादव इन दिनों जानबूझकर अपने आसपास यादव नेताओं को साथ नहीं रखते. वे जानते हैं कि इस वोट की पूरी गारंटी उनके पास है. लेकिन इनके साथ नज़र आने पर बाक़ी OBC जातियां छिटक सकती हैं. समाजवादी पार्टी पर सिर्फ़ यादव समाज को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है. इसीलिए अखिलेश यादव ने इस पार राजनैतिक गियर बदल लिया है. अब उनके एजेंडे पर नोनिया, राजभर, निषाद जैसा अति पिछड़ा समाज है. यूपी की राजनीति में कहा जाता रहा है कि एक तरफ यादव और दूसरी तरह अन्य OBC बिरादरी. अखिलेश यादव की तैयारी इसी नैरेटिव को ध्वस्त करने की है. इसीलिए उन्होंने घोषणा की है कि लखनऊ में गोमती रिवर फ़्रंट पर सुहेलदेव राजभर की मूर्ति लगेगी. जातियों के सोशल इंजीनियरिंग से अखिलेश अब सत्ता  में वापसी की जुगत में हैं. इस हिसाब किताब में उन पर मुस्लिम परस्त वाला लेबल लगा तो फिर सारे समीकरण बदल सकते हैं.
 

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