UP BJP President Election: उत्तर प्रदेश BJP के 98 में 84 जिला अध्यक्षों के चुनाव के बाद अब जल्दी ही प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के संकेत मिले हैं. BJP सूत्रों के अनुसार अगले कुछ दिनों में उत्तर प्रदेश बीजेपी को नया अध्यक्ष मिल सकता है. राज्य बीजेपी के अध्यक्ष का चुनाव करीब एक साल से लंबित है. उत्तर प्रदेश बीजेपी का अध्य़क्ष चुने जाने के बाद ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी. ऐसा इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सांसद हैं और वे प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही राष्ट्रीय परिषद के सदस्य के तौर पर चुने जाएंगे. इसके बाद ही वे नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नामांकन प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर सकेंगे.
यूपी में 2026 में पंचायत चुनाव, अगले साल विधानसभा चुनाव
लेकिन पार्टी ने यूपी बीजेपी अध्यक्ष के चुनाव में एक साल से भी अधिक का समय इसलिए भी लगा दिया है क्योंकि उसे 2026 में होने वाले पंचायत चुनाव और 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को साधना है. पिछले साल लोक सभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह ने अपना पद छोड़ने की पेशकश की थी जिस पर अभी तक फैसला नहीं किया जा सका है.
ब्राह्मण, OBC या दलित चेहरे को मिल सकती है कमान: बीजेपी सूत्रों के अनुसार संभावित अध्यक्षों में ब्राह्मण, ओबीसी (खासतौर पर लोध) और दलित चेहरे शामिल हैं. बीजेपी सूत्रों के अनुसार अभी 6 नाम रेस में आगे चल रहे हैं.
- इनमें पूर्व उपमुख्यमंत्री और वर्तमान में राज्य सभा सांसद दिनेश शर्मा का नाम सबसे आगे बताया जा रहा है. उन्हें संगठन और सरकार दोनों का अनुभव है. वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्वस्त माने जाते हैं.
- दूसरा ब्राह्मण चेहरे के तौर पर हरीश द्विवेदी का नाम लिया जा रहा है. वे सांसद रह चुके हैं और संगठन की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं.
- योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह का नाम भी संभावित प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर लिया जा रहा है. वे ओबीसी हैं और लोध होने के नाते गैर यादव ओबीसी वोट बैंक को साध सकते हैं.
- ओबीसी नेताओं में एक अन्य बड़ा और चर्चित नाम केंद्रीय राज्य मंत्री बी.एल. वर्मा का है, जो लोध हैं. उन्हें राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर काम का अनुभव है.
- दलित नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री रामशंकर कठेरिया का नाम है. वे आगरा-बुंदेलखंड बेल्ट से आते हैं और वहां पार्टी का बड़ा चेहरा हैं.
- इसी तरह एमएलसी विद्या सागर सोनकर का नाम भी चर्चा में है जो संगठन का काम कर चुकी हैं और बनारस पूर्वांचल क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुकी हैं.
सपा के PDA नैरेटिव से मिल रही चुनौती
बीजेपी को जातीय समीकरणों को साधना है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी की कोर ताकत गैर यादव ओबीसी (कुर्मी, लोध, निषाद, कुशवाहा, मौर्य आदि) रहे हैं, जिसे समाजवादी पार्टी का PDA नैरेटिव सीधे चुनौती दे रहा है. ओबीसी अध्यक्ष (जैसे धर्मपाल सिंह या बी.एल. वर्मा) चुनने का मतलब होगा कि पार्टी अपना “पिछड़ा नेतृत्व” नैरेटिव मज़बूत रखे और 2017–22 वाला सामाजिक गठबंधन बचाए.
यूपी बीजेपी अध्यक्ष चुनाव के 6 अहम फैक्टर
- मौजूदा पावर-स्ट्रक्चर में सीएम योगी (ठाकुर), डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक (ब्राह्मण) और केशव प्रसाद मौर्य (ओबीसी) हैं; इसमें ओबीसी अध्यक्ष जोड़ने से पार्टी यह संदेश दे सकती है कि संगठन की कमान पिछड़े समाज के हाथ में है.
- दूसरी ओर 2017 के बाद से कई चुनावों में “ब्राह्मण नाराज़गी” की चर्चा बनी रही है. ब्राह्मण अध्यक्ष (दिनेश शर्मा या हरीश द्विवेदी जैसे चेहरे) के जरिए पार्टी यह संदेश दे सकती है कि परंपरागत सवर्ण आधार की उपेक्षा नहीं हो रही है.
- इससे पश्चिम, अवध और पूर्वांचल के शहरी–अर्धशहरी इलाकों में ब्राह्मण-वैश्य-कायस्थ जैसे पारंपरिक बीजेपी वोटरों को फिर से “सम्मानजनक साझेदारी” का संकेत जाएगा.
- जबकि सपा के PDA और बसपा के दलित-मुस्लिम-ओबीसी वोट बैंक की काट के लिए बीजेपी यूपी में दलित अध्यक्ष पर भी गंभीरता से विचार कर रही है.
- कठेरिया या सोनकर जैसे नेता अगर अध्यक्ष बनते हैं तो बसपा की पारंपरिक जमीन (जाटव+अन्य दलित) में सेंध और एससी की रिज़र्व सीटों पर पकड़ मज़बूत करने का संदेश जाएगा.
- यह चुनाव से पहले सामाजिक समीकरणों के संतुलन का बड़ा संदेश होगा जिसमें मुख्यमंत्री राजपूत, एक उपमुख्यमंत्री ब्राह्मण, दूसरा उपमुख्यमंत्री ओबीसी और संगठन दलित; यानी तीन बड़े सामाजिक स्तंभों का एक मजबूत समीकरण.
प्रदेश संगठन का चुनाव होने पर होंगे बड़े बदलाव
सूत्रों के अनुसार एक बार प्रदेश संगठन का चुनाव संपन्न होने के बाद संगठन और सरकार का स्वरूप बदलेगा. उन क्षेत्रों और जातियों को मिल सकती है सरकार में जगह, जिनकी नुमाइंदगी चुनाव की दृष्टि से ज़रूरी है. पिछले लोकसभा चुनाव में पासी और कुर्मी वोट बड़ी संख्या में बीजेपी के पाले से छिटक गए थे.
जाटव वोट का भी अच्छा खासा हिस्सा अखिलेश यादव के पाले में चला गया था. इसके अलावा अवध, प्रतापगढ़ -प्रयागराज, अम्बेडकरनगर, ब्रज और काशी क्षेत्र में प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है या प्रतिनिधित्व बढ़ाया जा सकता है. इसमें भी अवध क्षेत्र से पासी -कुर्मी , प्रतापगढ़-अम्बेडकरनगर-प्रयागराज क्षेत्र से सैनी-मौर्या-शाक्य, ब्रज क्षेत्र से शाक्य, काशी से बिंद-कुर्मी को प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है या फिर प्रतिनिधित्व बढ़ाया जा सकता है. इन क्षेत्रों में जातियों का समीकरण अलग अलग तरह से एडजस्ट किया जाएगा.
यूपी बीजेपी अध्यक्ष चुनाव की सोशल इंजीनियरिंग
- 2024 लोक सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों के चयन में जिस तरह से सोशल इंजिनीरिंग किया गया और जिसका फ़ायदा अखिलेश को हुआ था, बीजेपी उसको काउंटर करने की अभी से रणनीति बनाने में जुट चुकी है.
- पार्टी का मानना है कि विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी 130 से 140 सीट अपने कोर वोटर के उम्मीदवारों को देते रही है. यानी यादव और मुस्लिम समुदाय से.
- बीजेपी को लगता है कि 2027 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी इनमें से आधे सीटों पर इस समुदाय से अलग जातियों को टिकट देती है तो पार्टी के लिये उससे पार पाने में बहुत मुश्किल हो सकती है.
समाजवादी पार्टी लोक सभा चुनाव में ये नुस्खा आजमा चुकी है. सपा ने कई सीटों पर जाटव उम्मीदवार दिए थे और इस कारण जाटव वोटों का बड़ा हिस्सा बीएसपी से छिटक कर सपा के पाले में चला गया. इसलिये बीजेपी प्रदेश नेतृत्व का मानना है कि पार्टी को वह रणनीति बनानी ही होगी, जिससे गैर यादव ओबीसी वोट अखिलेश के पाले में न जा पाए. ऐसी सूरत में प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी समुदाय से बनाया जा सकता है. उसमें भी खासकर कुर्मी-लोध, निषाद समुदाय से बनाया जा सकता है.
इसी तरह योगी कैबिनेट का विस्तार होने पर पासी-कुर्मी वर्ग का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जा सकता है. विधानसभा चुनाव से पहले यह अंतिम कैबिनेट फेरबदल होगा. ऐसे में सभी वर्गों और क्षेत्रों की नुमाइंदगी देने का यह एक बड़ा मौक़ा है.
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