उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में स्कूली छात्रों के खराब हो रहे दांत, यह है कारण

सोनभद्र जिले के 269 गांवों में विद्यालयों के बच्चे फ्लोराइड वाला पानी पीने के लिए मजबूर, छात्रों को हो रहा डेंटल फ्लोरोसिस

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यूपी के सोनभद्र में बच्चे प्रदूषित पानी पीने के लिए मजबूर हैं (प्रतीकात्मक फोटो).

सोनभद्र:

यूपी के दूषित पानी की वजह से सोनभद्र (Sonbhadra) के दक्षिणांचल इलाके की बड़ी संख्या में बच्चे विकलांग हो रहे हैं. हालांकि  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर व्यक्ति तक साफ़ पानी पहुंचाने के लिए हर घर नल योजना लागू कर रहे हैं लेकिन इस योजना के तहत उन्हीं के संसदीय क्षेत्र से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर सोनभद्र के दक्षिणांचल इलाके में साफ पानी पहुंचाना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. देश की आजादी के बाद से अब तक इस इलाके में साफ पानी लाने की सरकार की हर योजना और मंसूबा फेल हुआ है.  

हालात यह है कि इस इलाके की करीब सात लाख की आबादी प्रदूषित पानी पीने के लिए विवश है. इस इलाके के तकरीबन 1000 स्कूलों के हजारों विद्यार्थी दूषित पानी पी रहे हैं. इसकी वजह से बच्चे विकलांगता के शिकार हो रहे हैं. NDTV की टीम ने ऐसे ही कुछ स्कूलों में हकीकत जानने की कोशिश की.

सोनभद्र के कोन ब्लॉक के नेउराडामर सरकारी स्कूल में कक्षा सात में पढ़ने वाले 12 साल के रंजीत डेढ़ किलोमीटर दूर से आते हैं. स्कूल में जिस हैंडपंप का पानी पीते हैं, उसके पानी में फ्लोराइड की मात्रा पांच गुना से भी अधिक है. इससे रंजीत के दांत खराब हो रहे हैं. पानी खराब होने की जानकारी सबको है फिर भी लोग जहरीला पानी पीने को विवश हैं.

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छात्र रंजीत ने बताया कि वह स्कूल में हैंडपंप का पानी पीता है और यह जानता भी है कि वह  पानी ठीक नहीं है लेकिन मजबूरी है. उसने बताया कि इस पानी को पीने से दांत खराब हो जाते हैं.

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नेउराडामर प्राथमिक विद्यालय के प्रधान अध्यापक मनीष कुमार सेंगर से पानी के बारे में सवाल करने पर उन्होंने कहा कि, ''हमारी मजबूरी है यहां हर साल दो, तीन जिलों की टीम और मुंबई की टीम आई और जांच करके बताया कि यह पानी बिल्कुल मत पीजिएगा. हम लोगों की मजबूरी है. टीम आती है,देखकर चली जाती है. कहते हैं कि यहां किट लगेगा, फिल्टर लगेगा लेकिन जमीन तक कुछ भी नहीं होता है.''

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सोनभद्र जिले में 635 ग्राम पंचायतों में 3000 से अधिक गांव हैं. इनमें बेसिक शिक्षा परिषद के 2061 प्राथमिक और उच्चतर प्राथमिक विद्यालय हैं. इनमें करीब दो लाख 65 हजार बच्चे पढ़ते हैं. फ्लोराइड वाला पानी 269 गांव में है. इन गांवों के विद्यालयों में बच्चे हानिकारक पानी पी रहे हैं. जल निगम ने ऐसे ही 30 गांवों के सरकारी विद्यालयों के हैंडपंपों से पानी के नमूने लिए तो सभी विद्यालयों में हैंडपंप के पानी में फ्लोराइड की मात्रा मानक से कई गुना अधिक मिली.

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सोनभद्र के जल निगम के अधिशासी अभियंता गौरव सिंह ने कहा कि, ''दुद्धी बभनी और म्योरपुर के चार ब्लॉकों में खास तौर पर फ्लोराइड की समस्या है. यहां पर 200 से अधिक प्लस गांव ऐसे हैं जहां फ्लोराइड युक्त पानी है.'' उन्होंने कहा कि, ''इन गांवों के सभी विद्यालयों को चेक कराना ही पड़ेगा. रिपोर्ट आ रही है, चेक कराई जा रही है. आने वाले समय में और रिपोर्टें आ जाएंगी तभी इसका पूरा डेटा बताया जा सकता है.'' 

दुद्धी के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर आलोक ने बताया कि, ''फ्लोराइड युक्त पानी पीने से दांतों पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ता है. इसे डेंटल फ्लोरोसिस कहते हैं. डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन के अनुसार फ्लोराइड का 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर के हिसाब से मैक्सिमम अमाउंट होता है. यह एडल्ट के लिए होता है. और जो आईसीएमआर की गाइडलाइन है उसके अनुसार एक मिलीग्राम प्रति लीटर के हिसाब से मैक्सिमम परमीसिबल अमाउंट है. जो बच्चे फ्लोराइड युक्त पानी का यूज ज्यादा करते हैं उनमें डेंटल फ्लोरोसिस की प्रॉब्लम होती है.''

ऐसा नहीं है कि सरकार को इस बारे में जानकारी नहीं है. एनजीटी के आदेश के बाद हैंडपंपों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा कम करने के तमाम सरकारी प्रयास हुए. हैंडपंपों में किट लगाने से लेकर फिल्टर किया पानी इन इलाकों मे पहुंचाने की योजना बनी, लेकिन कुछ को छोड़कर सभी योजनाएं बेकार साबित हुई हैं.

सबसे खराब हालात सरकारी स्कूलों की है, फिर भी बेसिक शिक्षा अधिकारी इसे हल्के में लेते हुए फ्लोराइड के लिए भौगोलिक स्थिति को दोषी मानते हैं. 

सोनभद्र के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी हरिवंश कुमार ने कहा कि, ''सारे स्कूलों, लगभग 95%  में पेयजल उपलब्ध करा रहे हैं. यहां चार ब्लॉक हैं जिसमें चोपन, दुद्धी, बभनी और म्योरपुर में कतिपय स्थल ऐसे हैं जहां पर फ्लोराइड की मात्रा है. इसके लिए पहले से ही शासनादेश जारी है. वहां पर जांच निशुल्क कराई जाए, इसके लिए मैंने अनुरोध पत्र प्रेषित कर दिया है. इस पर कार्य शुरू भी हो गया है. इसके अतिरिक्त हमारे डिपार्टमेंट में ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का बजट किसी भी जनपद को आवंटित नहीं होता है. इसके लिए भी मैंने जल निगम से अनुरोध किया है.'' 

सोनभद्र जिले के 269 गांवों के लोगों की उम्मीद आजादी के 70 साल बाद भी पूरी नहीं हुई. साल 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार से बड़ी उम्मीद थी लेकिन उसके भी तकरीबन आठ साल गुजर गए. अब उनकी उम्मीद प्रधानमंत्री की 'हर घर नल योजना' पर टिकी है, लेकिन अब तक की तमाम कोशिशें नाकाम हुई हैं. देखना होगा कि यह योजना क्या कामयाब हो पाएगी? 

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