लखनऊ के एक परिवार ने एक साल पहले कोरोना से 24 दिन में देखी थी 8 मौतें, अब भी मुश्किलों से जूझ रहा

कोरोना वायरस की वजह से दो बहनें, 4 भाई, उनकी मां और चाची की मौत हो गई थी. कुछ लोग प्राइवेट अस्पताल ऑक्सीजन के लिए हांफते रहे तो कुछ कि घर पर मौत हो गई.

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लखनऊ:

लखनऊ के बाहरी इलाके इमालिया पुरवा में यादव परिवार का 8 कमरों का विशाल घर खाली है. एक साल पहले कोविड महामारी की दूसरी लहर में इस परिवार में 24 दिनों के भीतर आठ सदस्यों की मौत हो गई थी. कोरोना वायरस की वजह से दो बहनें, 4 भाई, उनकी मां और चाची की मौत हो गई थी. कुछ लोग प्राइवेट अस्पताल ऑक्सीजन के लिए हांफते रहे तो कुछ कि घर पर मौत हो गई. 

सीमा सिंह यादव के 45 वर्षीय पति निरंकार सिंह एक किसान थे, उनकी पिछले साल 25 अप्रैल को अस्पताल में छह दिन भर्ती रहने के बाद मौत हो गई थी.

सीमा ने आंसू बहाते हुए बताया, 'वह चिल्ला रहे थे और ऑक्सीजन के लिए हांफ रहा था. उन्होंने मुझे डॉक्टर के पास जाने और और ऑक्सीजन की व्यवस्था करने को कहा. मैं डॉक्टर से उनकी ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ाने के लिए भीख मांग रही थी. एक बार डॉक्टर ने किया भी लेकिन तब भी मेरे पति सांस नहीं ले पा रहे थे. मैंने डॉक्टर से इसे और बढ़ाने को कहा तो उन्होंने कहा कि मुझे इतना भी नहीं मिलेगा. मेरे पति ने यह सुन लिया और मुझसे पूछा कि डॉक्टर ऐसा क्यों कह रहे हैं. मुझे झूठ बोलना पड़ा कि डॉक्टर किसी और के बारे में बात कर रहे थे. वह मेरे सामने ऑक्सीजन के लिए हांफते हुए मर गए.'

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वह कहती हैं कि साल भर गुजरना मौत की तरह दर्दनाक रहा है. एक साल बाद, उसकी सबसे बड़ी चिंता अपने 19 और 21 वर्षीय बेटों को पढ़ाना है. उसका बड़ा बेटा हैदराबाद में फैशन डिजाइनिंग का छात्र है और छोटा बेटा 12वीं की परीक्षा दे चुका है और खेत में उनकी मदद करता है. 

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सीमा यादव ने कहा, 'हर दिन गुजारना बहुत मुश्किल है. मैं केवल अपने बच्चों की वजह से जीवित हूं. मैं बहुत बीमार पड़ गई थी और वे मुझे पूछते थे कि अगर मुझे कुछ हो गया तो वे क्या करेंगे. मैं केवल उनकी वजह से जिंदा हूं. मुझे अपने बच्चों को शिक्षित करना क्योंकि मुझे लगता है कि मेरे साथ चाहे कुछ भी हो जाए, उनका जीवन खराब नहीं होना चाहिए.'

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कुसमा देवी के 61 वर्षीय पति विजय कुमार सिंह भी एक किसान थे और भाई-बहनों में सबसे बड़े थे. एक निजी अस्पताल में 10 दिनों के संघर्ष के बाद विजय सिंह की भी एक मई को मौत हो गई. कुसमा देवी अब घर को संभालती हैं और कहती हैं कि सरकार ने मुआवजा दिया लेकिन भविष्य को लेकर वह चिंतित हैं.

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जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने पिछले साल कैसे सब मैनेज किया तो वह चुप हो जाती हैं और अपने आंसू पोंछती हुई कहती हैं, 'मैं केवल भगवान से प्रार्थना करती हूं कि जो हमने देखा है, वैसा किसी के साथ ना हो. किसी का गरीब होना ठीक है, एक दिन में केवल एक बार खाना मिले वो भी ठीक है, लेकिन किसी को भी इस तरह का दुख नहीं सहना चाहिए. हमने हमारी जिंदगी में ऐसा कभी नहीं देखा था. मुझे चिंता है कि घर कैसे चलाया जाए और बच्चे कैसे पढ़ेंगे. पढ़ाई सबसे महत्वपूर्ण है. हमें मुआवजा मिला, हमने इसका इस्तेमाल फीस के लिए किया. लेकिन हम भविष्य को लेकर चिंतित हैं.'

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