अलीगढ़ में जहरीली शराब ((Aligarh Adulterated liquor) पीने से हुई मौतों का आंकड़ा अलग-अलग है. प्रशासन के मुताबिक 22 लोगों की मौत हुई है जबकि अलीगढ़ के सांसद सतीश गौतम के मुताबिक 30-35 लोगों की मौत हो चुकी है. परिजनों का आरोप है कि प्रशासन मौतों का आंकड़ा छिपा रही है. अलीगढ़ के करसुवा गांव में जहरीली शराब ने कई हंसते खेलते परिवारों को मौत की सिसकियां दे दी हैं. घर में जवान बेटे अजय की मौत से उसकी पत्नी बदहवास है. उनके तीन छोटे बच्चे अनाथ हो गए हैं.
मृतक अजय के जुड़वां भाई विजय बताते हैं कि ''गांव में मौत का सिलसिला दो दिन से चल रहा है. विजय ने बताया कि परसों रात को मेरे भाई ने थोड़ा सा पिया था. कल तक ठीक था लेकिन रात से तबियत बिगड़ गई. आज सुबह किसी तरह पोस्टमार्टम हुआ है. प्रशासन केवल मौत छिपाने में लगा है.''
करसुवा गांव से ही सटी इस छोटी सी शराब की दुकान ने शुक्रवार से लोगों को शराब के नाम पर जहर बेचना शुरू किया था. जहरीली शराब पीने से हो रही मौतों पर प्रशासन कितना संवेदनशील है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि टैंकर के ड्राइवर नरेंद्र सिंह की शराब पीने से मौत हो चुकी है लेकिन कई घंटों से उनके चचेरे भाई कार में शव रखकर घूम रहे हैं. मृतक नरेंद्र के भाई भव सिंह ने कहा कि सुबह से गाड़ी में शव रखकर पुलिस थाने में गए. वहां बोला जा रहा है अस्पताल लेकर जाओ, वहां से सूचना आएगी तब पंचनामा होगा.
अलीगढ़ में मार्चुरी के बाहर शवों की कतार लगी है. पोस्टमार्टम में हो रही देरी के चलते परिजनों का गुस्सा बढ़ रहा है. मौतों के आंकड़े भी प्रशासन और सांसद अलग-अलग बता रहे हैं.
अलीगढ़ में जहरीली शराब बेचने के मामले में अब तक आधा दर्जन लोगों की गिरफ्तारी हुई है लेकिन जहरीली शराब मामले के मास्टर माइंड ऋषि शर्मा को बीजेपी समेत कई राजनीतिक पार्टियों का संरक्षण हासिल है. यही वजह है कि 2009 में अवैध शराब का मामला दर्ज होने के बावजूद वह फिर से शराब व्यवसाय में सक्रिय हो गया.
हर साल राज्य सरकार को शराब से 36 हजार करोड़ की आमदनी होती है, लेकिन सोचिए सरकार को टैक्स देने वाले लोगों को पैसा खर्च करने के बावजूद जहर दिया जा रहा है. यही वजह है कि जहरीली शराब से हर बार मौतें होती हैं और सरकार कुछ लोगों को निलंबित करके और मुआवजा देकर अपना पल्ला झाड़ लेती है.