यौन शोषण के शिकार बच्चों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी, जानें क्या कुछ कहा

कोर्ट ने कहा कि POCSO एक्ट के तहत यौन अपराधों के शिकार बच्चों के वैधानिक अधिकारों की प्राप्ति उन्हें निष्पक्ष आधार पर कानूनी प्रक्रिया से जुड़ने के लिए सशक्त बनाने की कुंजी है. वै

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इलाहाबाद हाई कोर्ट

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी से जुड़े रेप और पॉक्सो एक्ट के एक मामले में फैसला देते हुए तल्ख टिप्पणी की है. हाई कोर्ट ने कहा है कि यौन शोषण के पीड़ित बच्चे नागरिकों का सबसे कमजोर वर्ग है. उन्हें सशक्त बनाने के लिए वैधानिक सहायता प्रणाली जरूरी है. इस वर्ग के बच्चे अक्सर घटना के आघात, सामाजिक हाशिए पर होने, वित्तीय तंगी, कानूनी निरक्षरता और इसी तरह की अन्य अक्षम करने वाली परिस्थितियों के कारण न्याय की तलाश में अक्षम हो जाते है. 

कोर्ट ने आरोपी की जमानत याचिका खारिज की

कोर्ट ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कानून द्वारा गारंटीकृत सहायता प्रणालियों के अभाव में POCSO एक्ट के तहत यौन अपराधों के पीड़ित बच्चे सक्षम कोर्ट के समक्ष अपने मामलों को प्रभावी ढंग से नहीं चला पाते है. ये टिप्पणी जस्टिस अजय भनोट की सिंगल बेंच ने राजेंद्र प्रसाद की जमानत याचिका को खारिज करते हुए की. मामले के अनुसार कोर्ट ने 14 वर्षीय बेटी की तस्करी के आरोपी पिता राजेंद्र प्रसाद की जमानत अर्जी को नामंजूर करते हुए कहा कि आरोपी पिता चार नवंबर 2022 से जेल में बंद है. उसके खिलाफ 2022 में वाराणसी के चौबेपुर थाने में आईपीसी की धारा 376, 120बी पॉक्सो एक्ट की धारा 16/17 में मुकदमा दर्ज हुआ था.

आरोपी ने कोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती

आवेदक की जमानत अर्जी ट्रायल कोर्ट द्वारा 6 जुलाई 2024 को खारिज कर दी गई थी. आरोपी पिता ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए जमानत पर रिहा होने के लिए अर्ज़ी दाखिल की. हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए अपने फैसले में कहा कि पीड़िता नाबालिग है जिसकी उम्र 14 साल है. आवेदक पीड़िता का पिता है. पीड़िता ने आवेदक को मुख्य अपराधी के रूप में पहचाना है जिसने पैसे के लिए उसकी तस्करी की. पीड़िता असुरक्षित है. अपराध गंभीर है. संभावना है कि आवेदक ने अपराध किया हो. इस स्तर पर, जमानत का कोई मामला नहीं बनता. 

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कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड और सरकारी वकील की दलीलों से यह स्पष्ट है कि पीड़िता को किसी सहायक व्यक्ति और कानूनी परामर्शदाता के अधिकारों के बारे में अवगत नहीं कराया गया है. रिकॉर्ड में पीड़िता के लिए सहायक व्यक्ति या कानूनी सहायता/परामर्शदाता की नियुक्ति का उल्लेख नहीं है. POCSO एक्ट के तहत पीड़िता के अनुदान अधिकारों की स्थिति भी राज्य के रिकॉर्ड में मौजूद नहीं है. यह इस तथ्य के मद्देनजर महत्वपूर्ण है कि पीड़िता आवेदक की बेटी है. कोर्ट ने कहा कि जमानत आवेदन में विचारणीय मुद्दा यह है कि जमानत कार्यवाई में पॉक्सो एक्ट के तहत बाल पीड़ितों के अधिकारों को लागू करने की आवश्यकता और तरीका क्या है.

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POCSO एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

कोर्ट ने कहा कि POCSO एक्ट के तहत यौन अपराधों के शिकार बच्चों के वैधानिक अधिकारों की प्राप्ति उन्हें निष्पक्ष आधार पर कानूनी प्रक्रिया से जुड़ने के लिए सशक्त बनाने की कुंजी है. वैधानिक सहायता प्रणालियाँ ऐसे पीड़ितों की अधिकारियों से बातचीत करने और अपने अधिकारों को सुरक्षित करने की क्षमता को बढ़ाती है. यौन अपराधों के शिकार बच्चों का सशक्तीकरण न्याय की उनकी खोज में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है और यह उनके वैधानिक अधिकारों के फलस्वरूप प्राप्त किया जा सकता है. 

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत यौन अपराधों के ऐसे पीड़ितों को समर्थन देने के महत्व पर जोर दिया जो समाज का कमजोर वर्ग है. कोर्ट ने कहा कि चूंकि इन पीड़ितों को मानसिक आघात, सामाजिक हाशिए पर होने और संसाधनों की कमी सहित अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो न्याय पाने की उनकी क्षमता में बाधा डालते है. कोर्ट ने कहा कि इसलिए कानूनी सहायता, चिकित्सा देखभाल और परामर्श जैसी वैधानिक सहायता प्रणालियां इन बच्चों को कानूनी प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से संचालित करने व सशक्त बनाने के लिए आवश्यक हो जाती है.

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कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कुछ कहा

हाईकोर्ट ने माना कि पॉक्सो एक्ट द्वारा अदालती कार्यवाही के दौरान यौन अपराधों के पीड़ित बच्चों को दिए गए अधिकारों से वंचित करना कानून के विधायी इरादे को पराजित करेगा और न्याय की विफलता का कारण बनेगा. इसे देखते हुए कोर्ट ने अपने आदेश में पुलिस, बाल कल्याण समिति, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, चिकित्सा अधिकारी और जिला प्रशासन पुलिस सहित विभिन्न प्राधिकारियों की जिम्मेदारियों पर प्रकाश डाला ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसे पीड़ितों को उनका हक प्राप्त हो.

कोर्ट ने आवेदक पिता के मामले के गुण-दोष पर विचार किए बिना जमानत अर्जी खारिज कर दी. कोर्ट ने निर्देश दिया कि इस आदेश की एक प्रति पुलिस महानिदेशक और अपर पुलिस महानिदेशक (अभियोजन) तथा सचिव, महिला एवं बाल विकास विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार को अनुपालन हेतु तामील कराने के लिए सरकारी अधिवक्ता को भेजने का आदेश दिया.

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