दिल्ली से सटी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद (Ghaziabad) जिले की सदर विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में इस बार मुकाबला बेहद रोचक होने के आसार हैं. जातीय समीकरण कुछ ऐसा है, जिससे यहां त्रिकोणीय मुकाबले की उम्मीद की जा रही है. त्रिकोणीय मुकाबले की बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि गाजियाबाद सदर सीट पर बीजेपी ने ब्राह्मण प्रत्याशी उतारा है तो वहीं इस सामान्य सीट पर समाजवादी पार्टी ने दलित प्रत्याशी देकर अयोध्या जैसा दांव खेला है. बीएसपी ने वैश्य को टिकट देकर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है.
गाजियाबाद की बात हो तो ऊंची-ऊंची इमारतें जहन में आती हैं, लेकिन चार दरवाजों के बीच बसा गाजियाबाद संकरी गलियों वाला इलाका है. इस सीट पर हो रहे उपचुनाव में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला है.
विधानसभा उपचुनाव में गाजियाबाद सीट पर बीजेपी ने संजीव शर्मा को टिकट दिया है. सपा ने सिंहराज जाटव को मैदान में उतारा है और बीएसपी ने परमानंद गर्ग को उम्मीदवार बनाया है. हिंदू रक्षा दल के पिंकी चौधरी की पत्नी पूनम चौधरी भी मैदान में हैं. आजाद समाज पार्टी से सत्यापाल चौधरी उम्मीदवार हैं.
बीजेपी विधायक अतुल गर्ग के इस्तीफे से खाली हुई सीट
गाजियाबाद सदर सीट बीजेपी विधायक अतुल गर्ग के इस्तीफे के बाद खाली हुई है. बीते चार चुनावों में तीन बार बीजेपी और एक बार बीएसपी ने यहां चुनाव जीता. समाजवादी पार्टी इस बार सामान्य सीट पर जाटव उम्मीदवार देकर एक प्रयोग कर रही है.
सपा ने यह प्रयोग अयोध्या के आधार पर किया है. लोकसभा चुनाव में अयोध्या जिले की फैजाबाद सामान्य सीट पर सपा ने दलित समाज के अवधेश प्रसाद को टिकट देकर असंभव को संभव कर दिखाया. अयोध्या जैसी सीट पर राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद हुए चुनाव में सपा ने बीजेपी को पटखनी देकर सबको चौंका दिया था. गाजियाबाद में भी सपा कुछ ऐसी ही उम्मीद कर रही है.
दलित-मुस्लिम तय करते हैं हार-जीत
समाजवादी पार्टी को यह उम्मीद इसलिए है क्योंकि अगर गाजियाबाद के जातिगत समीरकरण पर नजर डालें तो कहा जाता है कि यहां दलित-मुस्लिम मिलकर हार-जीत तय करते हैं. यहां कुल मतदाता 4,61,360 हैं. इनमें से दलित मतदाताओं की संख्या लगभग 85 हजार है. करीब 75 हजार मुस्लिम आबादी है. ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या करीब 65 हजार है. इसके अलावा 60 हजार वैश्य और 60 हजार अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग हैं. विधानसभा क्षेत्र में 35 हजार पंजाबी, 25 हजार राजपूत, 15 हजार यादव और करीब 40 हजार अन्य समुदायों के लोग हैं.
चुनावी मुद्दों की बात करें तो शहरी क्षेत्र होने के चलते बुनियादी सुविधाओं से ज्यादा बड़ा मुद्दा नौकरी और रोजगार का है. सबकी निगाहें गाजियाबाद पर इसलिए लगी हैं क्योंकि अगर यहां सपा का प्रयोग सफल रहा तो 2027 में पीडीए का फ़ॉर्मूला और मज़बूत दिखाई देगा. लेकिन अगर नहीं हुआ तो ज़ाहिर है सपा को ही अपने फॉर्मूले पर सोचना पड़ सकता है.