- यूपी के बहराइच में कथावाचक पुण्डरीक गोस्वामी को पुलिस द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर देना का वीडियो वायरल हो रहा है.
- सपा प्रमुख अखिलेश यादव और चंद्रशेखर आजाद ने इसका कड़ा विरोध किया.
- चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि यह घटना प्रशासनिक गलती नहीं बल्कि संविधान और राष्ट्र की संप्रभुता पर हमला है.
उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में मशहूर कथावाचक पुण्डरीक गोस्वामी को 'गार्ड ऑफ ऑनर' देने का वीडियो खूब वायरल हो रहा है और अब इस मामले ने तूल पकड़ लिया है. बहराइच पुलिस के कथावाचक को 'गार्ड ऑफ ऑनर' देने पर राजनीति शुरू हो गई है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव और आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद ने इसकी आलोचना की है. वहीं मामले को बढ़ता देख अब डीजीपी ने जिला पुलिस अधीक्षक से स्पष्टीकरण मांगा है.
यूपी पुलिस ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, जनपद बहराइच में आयोजित एक कार्यक्रम में पुलिस परेड ग्राउंड के अनधिकृत उपयोग का पुलिस महानिदेशक महोदय ने संज्ञान लिया है. पुलिस परेड ग्राउंड का उपयोग केवल पुलिस प्रशिक्षण, अनुशासन एवं आधिकारिक समारोहों हेतु निर्धारित मानकों के अनुसार किया जाना अनिवार्य है. निर्धारित मानकों के उल्लंघन के दृष्टिगत संबंधित पुलिस अधीक्षक से स्पष्टीकरण तलब किया गया है.
क्या है पूरा मामला
उत्तर प्रदेश के बहराइच में कथावाचक पुण्डरीक गोस्वामी को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. उन्हें पूरी परेड की सलामी दिलाई गई थी. वायरल वीडियो में एसपी रामनयन सिंह परेड की अगुवाई खुद करते हुए दिखे. इतना ही नहीं उनके स्वागत में रेड कारपेट भी बिछाया गया था. इस दौरान रील भी बनाई गई. वायरल वीडियो इसी साल के नवंबर महीने का बताया जा रहा है. विपक्ष ने इसे प्रोटोकॉल और संविधान की मर्यादा से जोड़कर सवाल खड़े किए हैं.
"उप्र में पुलिस अपने काम में तो नाकाम"
अखिलेश यादव ने कहा, जब पूरा पुलिस महकमा सलामी में व्यस्त रहेगा तो प्रदेश का अपराधी मस्त रहेगा. उप्र में पुलिस अपने काम में तो नाकाम है, उसका जो काम है वो तो कर नहीं रही है बल्कि अपनी सीमित क्षमताओं को और जगह व्यर्थ कर रही है.
नगीना सांसद और आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद ने एक्स पर पोस्ट कर लिखा भारत कोई मठ नहीं, बल्कि एक संवैधानिक गणराज्य है. राज्य किसी धर्म-विशेष की जागीर नहीं. इस स्पष्ट उल्लेख के बावजूद एक कथावाचक पुंडरीक गोस्वामी को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा परेड और सलामी (Guard of Honour) दी जाती है. यह सिर्फ़ एक प्रशासनिक गलती नहीं, बल्कि संविधान पर खुला हमला है. सलामी और परेड राज्य की संप्रभु शक्ति का प्रतीक होती है. यह सम्मान संविधान, राष्ट्र और शहीदों के नाम पर दिया जाता है. किसी कथावाचक, बाबा या धर्मगुरु का रुतबा बढ़ाने के लिए नहीं.














