1 मिनट में 700 राउंड फायरिंग, रेंज 800 मीटर... भारतीय सेना के इस 'शेर' के बारे में डिटेल में जानें

AK-203 की उम्र की बात करें तो रूस का कहना है कि राइफल की उम्र 15000 राउंड है. यानी एक राइफल अगर 15000 गोलियां चला ले तो उसको रिटायर कर देना चाहिए. हालांकि रूस के अधिकारियों का कुछ और ही कहना है.

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भारतीय सेना की नई ताकत AK-203 के बारे में जानें.
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  • एके-203 राइफल भारत में इंडो-रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड फैक्ट्री में स्वदेशी तकनीक से बन रही है.
  • यह राइफल एक मिनट में 700 राउंड फायर कर सकती है और इसकी प्रभावी रेंज 800 मीटर है.
  • अगस्त 2023 से अब तक 48 हजार राइफल्स का निर्माण हो चुका है और सालाना डेढ़ लाख राइफल बनाने का लक्ष्य है.
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अमेठी:

एके-47 का नाम आपने जरूर सुना होगा. वह राइफल (AK-2023 Rifle) जो सैनिकों के हौसले बढ़ा देती है. लेकिन आपको एके सीरीज़ की एक ऐसी राइफल के बारे में बताने जा रहे हैं जो एक मिनट में 700 राउंड फायरिंग कर सकती है. ये राइफल सैनिकों के हौसलों को और ज्यादा बढ़ा रही है. रूसी तकनीक से बनी ये राइफल स्वदेशी भी है, ज़्यादा मारक भी है, ज़्यादा सटीक भी है और आरामदेह भी. ये राइफल है एके-203, जिसको नाम दिया गया है 'शेर'.

उत्तर प्रदेश के अमेठी में इंडो-रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड यानी आईआरआरपीएल के साढ़े 8 एकड़ के कैंपस में एके-203 का निर्माण किया जा रहा है. साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फैक्ट्री का उद्घाटन किया था और 15 अगस्त 2023 को यहां पहली राइफल बनकर तैयार हुई थी. शुरुआत में रूस की मदद से राइफल्स का निर्माण थोड़ी धीमी गति से हुआ लेकिन वक़्त के साथ इसमें लगने वाले सभी पार्ट्स स्वदेशी होते गए.

एके-203 के भारत में कैसे आई? 

एके-203 की खूबियां जानने से पहले ये जानें कि ये भारत में आई कैसे. दरअसल वर्तमान थलसेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी कुछ साल पहले रूस गए थे. मकसद था एके सीरीज़ की नई राइफल की डील करना. उन्होंने रूसी अधिकारियों से पूछा कि वह कौन सी राइफल उन्हें देंगे. इस पर रूसी सेना ने कहा एके-103. उपेन्द्र द्विवेदी ने पूछा सबसे आधुनिक कौन सी है? जवाब मिला एके-203. बिना देर किए उन्होंने कहा हमें एके-203 चाहिए.

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इसके बाद रूस और भारत में बातचीत हुई. तय हुआ कि रूस की मदद से भारत में एके-203 के निर्माण के लिए एक फैक्ट्री लगाई जाएगी. फिर एक प्राइवेट कंपनी बनी, जिसका नाम दिया गया इंडो-रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड. तय हुआ कि 12 रूसी अधिकारी हर वक़्त फैक्ट्री में अलग-अलग काम देखेंगे. इसके बाद भारत सरकार ने सेना के वर्तमान अधिकारी को इस प्राइवेट कंपनी का सीईओ और एमडी बना दिया. मेजर जनरल एसके शर्मा अभी कंपनी के मुखिया हैं.

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एके-203 की खूबियां जानें

  • अब बात करें एके-203 की खूबियों की तो ये राइफल एक मिनट में 700 राउंड फायर कर सकती है.
  •  इसकी रेंज 800 मीटर है, यानी 800 मीटर की दूरी तक अचूक निशाना लगाने में सक्षम.
  •  ये राइफल वजन में हल्की और लंबाई में कम है, जिससे सैनिकों को इसे लेकर चलने में आसानी होती है और थकान भी कम होती है.
  •  इस राइफल में कोई भी नाईट विज़न कैमरा फिट हो सकता है. आमने-सामने की भिड़ंत में दुश्मन पर चाकू से हमला करने के लिए इसमें नोज़ल के आगे चाकू भी फिट हो जाता है.

 एके-203 से दुश्मन थर-थर कांपते हैं

कहावत है कि एक सैनिक की रीढ़ इसकी राइफल होती है. ऐसे में एके-203 वह राइफल है, जिससे दुश्मन थर-थर कांपते हैं. ये एक ऐसा हथियार है जिसे सेना से लेकर पैरा मिलिट्री और कई राज्यों की पुलिस भी पाना चाहती है. यही नहीं, इसे पाने के लिए दुनिया के कई देश निगाहें गड़ाए बैठे हैं. फिलहाल लक्ष्य यह है कि साल 2030 तक छह लाख  राइफल बनाकर तैयार कर दी जाएं. तय किया गया है कि हर साल डेढ़ लाख राइफल बनाई जाएगी, जिसमें से 1.2 लाख देश में इस्तेमाल होगी और 30 हज़ार को भारत और रूस के मित्र देशों को बेचा जाएगा. रूस ने भी इसकी सहमति दे दी है. 

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सेना के पास अब 'शेर' की ताकत

सीमा पर तैनात हमारे देश के सैनिकों के पास देश में निर्मित इंसास और रूस में बनी एके-47 राइफल होती हैं. अब धीरे-धीरे ज़्यादा मारक और ज़्यादा घातक एके सीरीज़ की एके-203 उन्हें दी जाने लगी हैं. एके-47 का निर्माण रूस ने साल 1947 में किया था, वहीं इंसास स्वदेशी राइफल है, जो तीन दशक से ज़्यादा वक़्त से सैनिकों के पास हैं. बदले वक्त में आधुनिक और ज़्यादा घातक हथियार सैनिकों को देने के लिए एके-203 का निर्माण भारत में हो रहा है. 

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 पूरी तरह स्वदेशी होगी एके-203 राइफल

अमेठी में बनी आईआरआरपीएल की फैक्ट्री में 50 मुख्य पार्ट्स और 180 छोटे पार्ट्स को असेम्बल करके एके-203 का निर्माण किया जाता है. जितने पार्ट्स राइफल में लगाए जाते हैं, अभी उसकी सप्लाई करने वाले वेंडर्स कुछ देशी हैं तो कुछ पार्ट्स रूस की मदद से मिलते हैं. इस साल के अंत तक सारे पार्ट्स भारत के वेंडर्स से लिए जाएंगे. यानी एके-203 इस साल के अंत तक पूरी तरह स्वदेशीय हो जाएगी.

हर साल होगा डेढ़ लाख राइफल का निर्माण

अगस्त 2023 से लेकर अब तक कुल 48 हज़ार राइफल्स का निर्माण किया जा चुका है. इस साल के अंत तक 70 हज़ार राइफ़ल्स की डिलीवरी कर ली जाएगी. इसके बाद क्षमता बढ़ाते हुए प्रति वर्ष डेढ़ लाख राइफल का निर्माण किया जा सकेगा. यानी अगर क्षमता के हिसाब से देखें तो प्रति 100 सेकंड में एक राइफल का निर्माण संभव हो सकेगा। एक ख़ास बात ये भी है कि अब तक जितनी भी राइफल्स की डिलीवरी हुई है, उनमें से एक भी राइफल को लेकर कोई ना शिकायत आई और ना किसी राइफल में खराबी की वजह से उसे वापस किया गया।

40 हज़ार राउंड तक हो सकती है इस्तेमाल

एके-203 की उम्र की बात करें तो रूस का कहना है कि राइफल की उम्र 15000 राउंड है. यानी एक राइफल अगर 15000 गोलियां चला ले तो उसको रिटायर कर देना चाहिए. हालांकि जिन राइफल्स से 15000 राउंड फायरिंग की जा चुकी है, जब माइक्रो कैमरा से उसके बैरल को चेक किया जाता है तो बैरल की स्थिति एकदम नई जैसी है. रूस के अधिकारियों ने जांच के बाद माना कि भले ही तकनीकी तौर पर 15000 राउंड रिटायरमेंट का फिगर है लेकिन इस राइफल को 40 हज़ार राउंड तक इस्तेमाल किया जा सकता है.

एके-203 बनती कैसे है?

अमेठी के कोरवा में स्थित ईआरआरपीएल में राइफल बनाने के लिए फैक्ट्री में ग्रीन और ब्लू ज़ोन बनाये गए हैं. ब्लू ज़ोन में पार्ट्स की असेंबलिंग की जाती है और हर एक डेस्क से उसे ग्रीन ज़ोन में भेजकर चेक कराया जाता है. यानी हर स्टेप पर राइफल निर्माण में क्वालिटी चेक होता है. जब पूरी राइफल बनकर तैयार होती है तो उसको डिलीवरी से पहले फाइनल चेक किया जाता है. फाइनल चेकिंग में हर राइफल से 63 राउंड फायरिंग की जाती है. सब सही मिलने पर इसकी पैकिंग होती है. 

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