देश में दिल्ली, हरियाणा, गोवा और सिक्किम जैसे राज्य प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) के मामले में टॉप पर बने हुए हैं. वहीं दूसरी ओर बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्य इस मामले में निचले पायदानों पर हैं. केंद्रीय बैंक RBI ने जो ताजा हैंडबुक (Handbook of Statistics on Indian States) जारी किया है, वो राज्यों के आर्थिक हालात बयां करता है. आंकड़ों के मुताबिक, करंट प्राइसेज यानी मौजूदा कीमतों पर देखें तो वित्त वर्ष 2024-24 में दिल्ली, गोवा, सिक्किम, तेलंगाना, तमिलनाडु और अन्य राज्यों में प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Net State Domestic Product) 3 से 5 लाख रुपये के बीच पहुंच चुका है, जबकि कई पिछड़े राज्यों में ये आंकड़ा 1 लाख रुपये से भी काफी नीचे है.
किन राज्यों की रफ्तार सबसे तेज?
करंट प्राइसेज पर आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 4.93 लाख रुपये, गोवा में 5.86 लाख, हरियाणा में 3.53 लाख, कर्नाटक में 3.80 लाख, तेलंगाना में 3.87 लाख रुपये, केरल में 3.08 लाख रुपये, जबकि तमिलनाडु में 3.62 लाख रुपये के करीब है.
2011-12 से 2023-24 के बीच तेलंगाना की प्रति व्यक्ति वास्तविक आय (NSDP) लगभग दोगुनी से ज्यादा हो गई है. वहीं कर्नाटक, तमिलनाडु और गुजरात ने भी मजबूत रियल ग्रोथ दिखाई. इन राज्यों में तेज औद्योगीकरण, आईटी‑सर्विस सेक्टर का उभार और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर इसकी बड़ी वजह माना जा रहा है.
किन राज्यों में आमदनी सबसे कम?
इसके उलट बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मणिपुर जैसे राज्यों की प्रति व्यक्ति वास्तविक आय की वृद्धि दर काफी धीमी रही. उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश में 2011-12 से 2023-24 के बीच कॉन्स्टैंट प्राइस पर प्रति व्यक्ति NSDP में इजाफा तो हुआ, लेकिन ये अभी भी भारतीय औसत (All India Average) से काफी नीचे है. देश दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों के मुकाबले ये अंतर काफी बड़ा है.
बिहार में भी वास्तविक प्रति व्यक्ति आय (69,321 रुपये) की रफ्तार कम रही और कोविड के सालों में तो कुछ समय के लिए गिरावट भी दिखी, जिससे 'कैच‑अप' की चुनौती और कठिन हो गई.
अब जरा आंकड़े देख लीजिए, वित्त वर्ष 2023-24 के मुकाबले वित्त वर्ष 2024-25 में राज्यों में प्रति व्यक्ति आय कितनी बढ़ी है.
'इनकम लीग टेबल' का मतलब क्या है?
इन आंकड़ों से निकलने वाली 'इंडिया की इनकम लीग टेबल' दिखाती है कि विकास का लाभ बराबर बंटा नहीं है. समृद्ध राज्यों में प्रति व्यक्ति आय ऊंची होने से वहां खपत, सेवाओं की मांग और टैक्स कलेक्शन ज्यादा है, यानी एक पॉजिटिव साइकिल है जो और ज्यादा निवेश खींचता है.
दूसरी ओर, कम आय वाले राज्यों में सीमित खपत और कमजोर ट्रेजरी के कारण इंफ्रास्ट्रक्चर और सामाजिक खर्च पर पाबंदी बनी रहती है, जिससे प्राइवेट निवेश भी धीमा रहता है.
RBI का हैंडबुक सरकारों और नीति‑निर्माताओं के लिए साफ संकेत देता है कि यदि भारत को समग्र रूप से उच्च मध्यम‑आय वाले देश की दिशा में ले जाना है, तो पीछे छूट रहे राज्यों की प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने पर विशेष फोकस करना होगा. बेहतर शिक्षा‑स्वास्थ्य, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की तेज रणनीति और लक्ष्य के मुताबिक निवेश पर ध्यान देना होगा.
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