टेक-होम सैलरी का नया नियम, कामकाज के घंटे बढ़ा सकती हैं कंपनियां लेकिन...

नए श्रम कानून संसद में पारित किए गए हैं, लेकिन इनके लागू होने में देरी हो रही है क्योंकि राज्यों ने अभी तक इन नियमों को नोटिफाई नहीं किया है

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नए लेबर लॉ के तहत वेतन और कामकाज के घंटों में बदलाव आएगा, लेकिन इनके लागू होने में देर हो रही है.

नए श्रम कानून (New Labour Laws) टेक-होम सैलरी, पीएफ (Provident Fund) में योगदान और एक सप्ताह में काम के घंटों और दिनों सहित काम के समय में महत्वपूर्ण बदलाव लाएंगे. श्रम कानून संसद में पारित किए गए हैं, लेकिन इनको लागू करने में देरी हो रही है क्योंकि राज्यों ने अभी तक इन नियमों को नोटिफाई नहीं किया है. 

केंद्र सरकार ने 1 जुलाई से इन नए श्रम कानूनों को लागू करने की योजना बनाई थी, लेकिन यह लागू नहीं हुए हैं क्योंकि कुछ राज्यों ने अभी तक सभी चार लेबर कोड के तहत नियम नहीं बनाए हैं.

सैलरी, सामाजिक सुरक्षा, श्रम संबंध, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति सहित पिछले 29 केंद्रीय श्रम कानूनों की समीक्षा करके उनके संयोजन से चार नए लेबर कोड बनाए गए थे.

नए सैलरी कोड के तहत बेसिक सैलरी कम्पोनेंट कुल वेतन का 50 प्रतिशत होना चाहिए. इससे कर्मचारी भविष्य निधि (Employees' Provident Fund) में योगदान से टेक-होम वेतन वृद्धि कम हो जाएगी, क्योंकि वह हिस्सा बेसिक पे के 12 प्रतिशत के रूप में निर्धारित किया गया है.

नए श्रम कानूनों के तहत कर्मचारियों की कुल सैलरी के बेस-पे कम्पोनेंट में वृद्धि के कारण उनके सेवानिवृत्ति कोष और ग्रेच्युटी की राशि में वृद्धि होगी.

लेबर कोड में यह भी कहा गया है कि कंपनियां कर्मचारियों के काम के घंटों को वर्तमान में 8-9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे कर सकती हैं, लेकिन उन्हें तीन साप्ताहिक अवकाश देने की जरूरत होगी. इससे प्रति सप्ताह कार्य दिवसों की संख्या घटाकर चार कर दी जाएगी, लेकिन प्रति सप्ताह कामकाज के घंटों की संख्या वही रहेगी. नए वेतन नियम के मुताबिक हर हफ्ते कुल 48 घंटे का कामकाज जरूरी है.

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लेबर कोड में किए गए संशोधन 1 जुलाई से प्रभावी होना चाहिए थे. लेकिन श्रम और रोजगार राज्यमंत्री रामेश्वर तेली ने लोकसभा में क्रियान्वयन के समय के बारे में पूछे जाने पर लिखित जवाब में कहा कि केवल 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UT) ने लेबर कोड के तहत मसौदा दिशानिर्देश जारी किए हैं.

संविधान के अनुसार संसद द्वारा बनाए गए और अनुमोदित श्रम कानूनों को लागू करने के लिए राज्यों को इन मामलों को नोटिफाई करने की जरूरत होती है.

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