Active Fund और Passive Fund क्या है? आपके लिए कौन सा Mutual Fund है बेहतर, कहां लगाएं पैसा?

Differences Between Active & Passive Funds: म्यूचुअल फंड में पैसे लगाने वाले ज्यादातर निवेशकों को इस बारे में जानकारी नहीं होती है. चाहे फिर उनका पोर्टफोलियो लाखों का ही क्यों न हो.

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Active vs Passive Funds: पिछले कुछ सालों में छोटे शहरों और कस्बों में पैसिव फंड के निवेशकों की संख्या में तेजी से बढ़ी है.
नई दिल्ली:

आज म्यूचुअल फंड (Mutual Funds India) के नाम से कौन वाकिफ नहीं है. शायद आप भी पिछले कई सालों से म्यूचुअल फंड में इन्वेस्ट (Mutual Funds Investment) कर रहे होंगे और अपनी रकम को साल दर साल बढ़ते देखकर खुश भी हो रहे होंगे. लेकिन अगर कोई सवाल करें कि आप किस फंड में इन्वेस्ट करते हैं- एक्टिव फंड या पैसिव फंड (Active fund or passive fund)? तो शायद इस सवाल का आपके पास जवाब न हो, हो सकता है आपको पता ही न हो कि एक्टिव फंड या पैसिव फंड होते क्या है. म्यूचुअल फंड में पैसे लगाने वाले ज्यादातर निवेशकों को इस बारे में जानकारी नहीं होती है. चाहे फिर उनका पोर्टफोलियो लाखों का ही क्यों न हो.

चलिए आज आपको बताते हैं कि एक्टिव फंड (Active funds) और पैसिव फंड (Passive Funds) क्या होते हैं और एक आम निवेशक के लिए इनके बारे में जानना क्यों जरूरी है.

म्यूचुअल फंड में निवेश के दो तरीके

दरअसल, पिछले कुछ सालों में म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) लोगों के बीच काफी तेजी से पॉपुलर हुए हैं. लोग बेहतर रिटर्न (Better Return) पाने के लिए म्यूचुअल फंड में निवेश का तरीका अपना रहे हैं. खास तौर पर म्यूचुअल फंड में निवेश के दो तरीके होते हैं- एक्टिव फंड और पैसिव फंड.

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एक्टिव फंड क्या है?(What are active funds?)

चलिए सबसे पहले आपको एक्टिव फंड (Active Fund) के बारे में बताते हैं. जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है, एक्टिव यानी सक्रिय. एक्टिव फंड को एक्सपर्ट मैनेज करते हैं. यहां एक्सपर्ट का मतलब फंड मैनेजर से है. निवेश करने से पहले स्ट्रेटजी (Strategy) बनाई जाती है. फंड मैनेजर रेगुलर बेसिस पर खरीद (Buying) और बिक्री (Selling) से जुड़े फैसले लेते हैं.एक इन्वेस्टर के नजरिये से देखें तो एक्टिव फंड को इसलिए ज्यादा पसंद किया जाता है क्योंकि उसे इंडस्ट्रीज के एक्सपर्ट्स मैनेज करते हैं. कहां, किस स्टॉक में निवेश करना है, किस स्टॉक से कब बाहर निकलना है इसका डिसीजन फंड मैनेजर का होता है.

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एक्टिव म्यूचुअल फंड्स (Active Mutual Funds) में इंडेक्स यानी मार्केट से बेहतर रिटर्न मिलने की उम्मीद की जाती है, क्योंकि इसे फंड मैनेजर मैनेज करते हैं. हालांकि फंड मैनेजर निवेशक से इसके लिए चार्ज लेते हैं, इसलिए पैसिव फंड की तुलना में एक्टिव फंड का एक्सपेंस रेशियो (Expense Ratio) ज्यादा होता है. क्योंकि एक्सपर्ट का एक बड़ा पैनल उस फंड के पीछे काम करता है.

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आसान शब्दों में कहें तो एक्टिव फंड का मकसद मार्केट के इंडेक्स से बेहतर परफॉर्म करना होता है. हालांकि, ध्यान दें कि ऐसा होगा ही इसकी कोई गारंटी नहीं है. पैसिव फंड्स की तुलना में एक्टिव फंड्स में बेहतर रिस्क मैनेजमेंट हो सकता है. क्योंकि फंड मैनेजर मार्केट में हो रहे बदलावों को जल्दी समझ सकते है. लेकिन, इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है कि वे पूरी तरह रिस्क फ्री (risk free) होते हैं. एक्टिव फंड की कैटेगरी में इक्विटी म्यूचुअल फंड्स (Equity mutual funds), डेट म्यूचुअल फंड्स (Debt mutual funds), हाइब्रिड फंड्स (Hybrid funds) या फंड ऑफ फंड्स (Fund of funds) वगैरह एक्टिव फंड की कैटेगरी में आते हैं.

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पैसिव फंड क्या है? (What are passive funds?)

चलिए अब पैसिव फंड (Passive funds) की बात करते हैं. पिछले कुछ सालों से पैसिव म्यूचुअल फंड (Passive Mutual Fund) में निवेश लगातार बढ़ रहा है. पैसिव फंड भी म्यूचुअल फंड में निवेश का एक जरिया है, जो मार्केट इंडेक्स या किसी खास मार्केट सेगमेंट को ट्रैक करता है. एक्टिव फंड की तरह पैसिव फंड में फंड मैनेजर यह तय नहीं करता कि फंड में कौन-सी कंपनियां शामिल होंगी. पैसिव फंड में इन्वेस्ट करना आसान होता है. क्योंकि पैसिव फंड के निवेशकों को सबसे अच्छा परफॉर्म करने वाले फंड की रिसर्च करने की जरूरत नहीं होती है.

पैसिव फंड के फायदे और नुकसान

आपको बता दें कि कोई निवेशक पैसिव फंड में तब पैसा लगाता है जब वो चाहता है कि उसका रिटर्न मार्केट के मुताबिक हो. ये फंड लो-कॉस्ट फंड (low-cost funds) होते हैं. क्योंकि इनके स्टॉक सिलेक्शन और रिसर्च में कुछ खर्च नहीं होता है. मार्केट में एंटर करने वाले नए निवेशक (New investors) खास तौर पर युवा निवेशक (Young investors) इस तरह के फंड को ज्यादा पसंद करते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह पैसिव फंड का बढ़िया रिटर्न है. पैसिव फंड एक बेंचमार्क इंडेक्स (Benchmark index) को ट्रैक करते हैं और उस इंडेक्स की परफॉरमेंस को मीट करने की कोशिश करते हैं.

एक्टिव फंड के मुकाबले इनमें उतार-चढ़ाव यानी वोलैटिलिटी कम होती है. इंडेक्स फंड उन लोगों के लिए निवेश का अच्छा ऑप्शन माना जाता है, जिनके पास मार्केट को ट्रैक करने का वक्त नहीं होता है. एक्टिव फंड के मुकाबले पैसिव फंड में निवेशकों को कम एक्सपेंस रेशियो देना होता है. इंडेक्स फंड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) पैसिव फंड की कैटेगरी में आते हैं. इसके अलावा गोल्ड, कमोडिटीज, बैंक, हेल्थकेयर समेत कई कैटेगरी के लिए ETF और इंडेक्स फंड अवेलेबल हैं.

एक्टिव और पैसिव फंड में अंतर (Differences Between Active & Passive Funds)

जैसे कि आपको बता चुके हैं कि एक्टिव फंड्स में फंड मैनेजर फैसला लेता है कि पैसा किस-किस सेक्टर के किन-किन शेयरों में निवेश किया जाए, वहीं, पैसिव फंड्स मार्केट इंडेक्स (indices), जैसे सेंसेक्स की 30 कंपनियों या निफ्टी की 50 कंपनियों में उनके वेटेज (weightage) के अनुपात में इन्वेस्ट करते हैं. इस तरह पैसिव फंड्स में फंड मैनेजर का रोल बहुत सीमित हो जाता है. इसलिए उनकी मैनेजमेंट फीस (management fees) भी कम होती है. पिछले कुछ सालों में छोटे शहरों और कस्बों में पैसिव फंड के निवेशकों की संख्या में तेजी से बढ़ी है.

अगर आप निवेश करना चाहते हैं लेकिन आपको निवेश से जुड़ी ज्यादा जानकारी नहीं है या बहुत कम जानकारी है, तो ऐसे मामले में पैसिव फंड फंड के जरिए म्यूचुअल फंड में निवेश करना आपके लिए एक अच्छा विकल्प होगा. पैसिव फंड ऐसे निवेशकों के लिए है, जो ज्यादा रिस्क लेना नहीं चाहते हैं और बेहतर रिटर्न पाने के लिए कौन-सा फंड चुनें, इस झंझट में भी नहीं पड़ना चाहते.

(यह सिर्फ एक सामान्य जानकारी है. किसी भी तरह के निवेश से पहले एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.)

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