'लखनऊ सेंट्रल' के निर्देशक रंजीत तिवारी हैं.
नई दिल्ली:
डायरेक्टरः रंजीत तिवारी
कलाकारः फरहान अख्तर, डायना पेंटी, गिप्पी ग्रेवाल, रोनित रॉय, रवि किशन और दीपक डोबरियाल
रेटिंगः 2.5 स्टार
बॉलीवुड की यह खासियत बन चुकी है कि उसे अच्छे-खासे विषय का बंटाधार करना आता है. 'लखनऊ सेंट्रल' भी इसी की मिसाल है. फरहान अख्तर की बतौर एक्टर कुछ सीमाएं हैं और लखनऊ सेंट्रल के इस किरदार में वे सीमाएं नजर आ जाती हैं. उनका असल जिंदगी का अंदाज नहीं निकल पाता है. बेशक विषय को असल जिंदगी से उठाया गया है, लेकिन यह उस तरह से कनेक्ट नहीं कर पाती है जिसकी उम्मीद की जा रही थी. रंजीत तिवारी का डायरेक्शन भी झोल वाला है. फिर फिल्म बनाने वालों को यह बात समझनी चाहिए कि दर्शक होशियार हो गए हैं, और उन्हें कमजोर कहानी से चकमा नहीं दिया जा सकता. फिर इस तरह का मैसेज दर्शक नहीं देखते जिसमें मनोरंजन का पुट ज्यादा न हो.
यह भी पढ़ें: एनडीटीवी यूथ फॉर चेंज में फरहान अख्तर की कही पांच खास बातें
कितनी दमदार कहानी
फिल्म की कहानी मुरादाबाद के किशन मोहन गिरहोत्रा यानी फरहान अख्तर की है. जिसका ख्वाब म्यूजिक डायरेक्टर बनने का है. लेकिन हालात उसके मुताबिक नहीं रहते हैं, और इसे एक मामले में आरोपी बना दिया जाता है और वह पहुंच जाता है जेल की सलाखों के पीछे. उसका संगीत का शौक वहां भी नहीं छूटता है. उसे यह एक मौके के तौर पर नजर आता है. वह वहां गिप्पी ग्रेवाल, दीपक डोबरिया, इनामुलहक और राजेश शर्मा के साथ मिलकर बैंड बनाता है. रोनित रॉय सख्त जेलर के रूप में फरहान के लिए दिक्कतें पैदा करता है तो सोशल वर्कर बनी डायना पेंटी उसके लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखती है. आखिर में कुछ ऐसा होता है कि प्लान बदल जाता है. इत्तेफाकन फिल्म की कहानी कुछ ही समय पहले रिलीज हुई ‘कैदी बैंड’ से काफी मिलती है. फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी धीमा और कमजोर है. पकाता है.
यह भी पढ़ें: Movie Review: बिना मसाले वाली ठंडी फिल्म है 'लखनऊ सेंट्रल'
एक्टिंग के रिंग में
फरहान अख्तर एक अच्छे एक्टर हैं, जो अपने इस हुनर को भाग मिल्खा भाग में बखूबी दिखा भी चुके हैं. 'लखनऊ सेंट्रल' में उनकी एक्टिंग अच्छी है लेकिन ऐसी नहीं है जो उन्हें देखने का मन बार बार करे. उनका बोलने का अंदाज और बॉडी लैंग्वेज कहीं-कहीं मिसमैच होती है. फिल्म की सुपोर्टिंग कास्ट अच्छी है. भोजपुरी सुपरस्टार रवि किशन और दीपक डोबरियाल के पंच मजेदार हैं. पंजाबी एक्टर गिप्पी ग्रेवाल ने भी अच्छा रोल किया है. इनामुल हक भी जमे हैं. डायना पेंटी का इस्तेमाल अच्छे से नहीं हो सका है. रोनित रॉय बढ़िया हैं. लेकिन फरहान अपने कंधे पर फिल्म को खींचने का दम नहीं रखते और अगर स्क्रिप्ट कमजोर हो तो बिल्कुल नहीं.
यह भी पढ़ें: कंगना रनोट की 'सिमरन' से फरहान अख्तर की 'लखनऊ सेंट्रल' की होगी बॉक्स ऑफिस टक्कर
बातें और भी हैं
'
लखनऊ सेंट्रल' एक अच्छे विषय पर बनाई गई कमजोर फिल्म है. बेशक फिल्म प्रिजन ब्रेक, शॉशैंक रिडेम्प्शन और कैदी बैंड से काफी कुछ मिलती जुलती है, लेकिन डायरेक्टर फिल्म के दिलचस्प विषय को उस ढंग से नहीं दिखाया पाया, जो दर्शकों को बांध सके. फिल्म में सब कुछ बहुत स्वाभाविक है, और कुछ भी अप्रत्याशित नहीं होता है. बैंड पर फिल्म है तो गाने तो आएंगे ही. लेकिन वे फिल्म को खींचने का काम करते हैं. फरहान की सुपोर्टिंग कास्ट की वजह से फिल्म को एक बार देखा जा सकता है.
VIDEO: लखनऊ सेंट्रल के कलाकार फरहान अख्तर और डायना से खास बातचीत
...और भी हैं बॉलीवुड से जुड़ी ढेरों ख़बरें...
कलाकारः फरहान अख्तर, डायना पेंटी, गिप्पी ग्रेवाल, रोनित रॉय, रवि किशन और दीपक डोबरियाल
रेटिंगः 2.5 स्टार
बॉलीवुड की यह खासियत बन चुकी है कि उसे अच्छे-खासे विषय का बंटाधार करना आता है. 'लखनऊ सेंट्रल' भी इसी की मिसाल है. फरहान अख्तर की बतौर एक्टर कुछ सीमाएं हैं और लखनऊ सेंट्रल के इस किरदार में वे सीमाएं नजर आ जाती हैं. उनका असल जिंदगी का अंदाज नहीं निकल पाता है. बेशक विषय को असल जिंदगी से उठाया गया है, लेकिन यह उस तरह से कनेक्ट नहीं कर पाती है जिसकी उम्मीद की जा रही थी. रंजीत तिवारी का डायरेक्शन भी झोल वाला है. फिर फिल्म बनाने वालों को यह बात समझनी चाहिए कि दर्शक होशियार हो गए हैं, और उन्हें कमजोर कहानी से चकमा नहीं दिया जा सकता. फिर इस तरह का मैसेज दर्शक नहीं देखते जिसमें मनोरंजन का पुट ज्यादा न हो.
यह भी पढ़ें: एनडीटीवी यूथ फॉर चेंज में फरहान अख्तर की कही पांच खास बातें
कितनी दमदार कहानी
फिल्म की कहानी मुरादाबाद के किशन मोहन गिरहोत्रा यानी फरहान अख्तर की है. जिसका ख्वाब म्यूजिक डायरेक्टर बनने का है. लेकिन हालात उसके मुताबिक नहीं रहते हैं, और इसे एक मामले में आरोपी बना दिया जाता है और वह पहुंच जाता है जेल की सलाखों के पीछे. उसका संगीत का शौक वहां भी नहीं छूटता है. उसे यह एक मौके के तौर पर नजर आता है. वह वहां गिप्पी ग्रेवाल, दीपक डोबरिया, इनामुलहक और राजेश शर्मा के साथ मिलकर बैंड बनाता है. रोनित रॉय सख्त जेलर के रूप में फरहान के लिए दिक्कतें पैदा करता है तो सोशल वर्कर बनी डायना पेंटी उसके लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखती है. आखिर में कुछ ऐसा होता है कि प्लान बदल जाता है. इत्तेफाकन फिल्म की कहानी कुछ ही समय पहले रिलीज हुई ‘कैदी बैंड’ से काफी मिलती है. फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी धीमा और कमजोर है. पकाता है.
यह भी पढ़ें: Movie Review: बिना मसाले वाली ठंडी फिल्म है 'लखनऊ सेंट्रल'
एक्टिंग के रिंग में
फरहान अख्तर एक अच्छे एक्टर हैं, जो अपने इस हुनर को भाग मिल्खा भाग में बखूबी दिखा भी चुके हैं. 'लखनऊ सेंट्रल' में उनकी एक्टिंग अच्छी है लेकिन ऐसी नहीं है जो उन्हें देखने का मन बार बार करे. उनका बोलने का अंदाज और बॉडी लैंग्वेज कहीं-कहीं मिसमैच होती है. फिल्म की सुपोर्टिंग कास्ट अच्छी है. भोजपुरी सुपरस्टार रवि किशन और दीपक डोबरियाल के पंच मजेदार हैं. पंजाबी एक्टर गिप्पी ग्रेवाल ने भी अच्छा रोल किया है. इनामुल हक भी जमे हैं. डायना पेंटी का इस्तेमाल अच्छे से नहीं हो सका है. रोनित रॉय बढ़िया हैं. लेकिन फरहान अपने कंधे पर फिल्म को खींचने का दम नहीं रखते और अगर स्क्रिप्ट कमजोर हो तो बिल्कुल नहीं.
यह भी पढ़ें: कंगना रनोट की 'सिमरन' से फरहान अख्तर की 'लखनऊ सेंट्रल' की होगी बॉक्स ऑफिस टक्कर
बातें और भी हैं
'
लखनऊ सेंट्रल' एक अच्छे विषय पर बनाई गई कमजोर फिल्म है. बेशक फिल्म प्रिजन ब्रेक, शॉशैंक रिडेम्प्शन और कैदी बैंड से काफी कुछ मिलती जुलती है, लेकिन डायरेक्टर फिल्म के दिलचस्प विषय को उस ढंग से नहीं दिखाया पाया, जो दर्शकों को बांध सके. फिल्म में सब कुछ बहुत स्वाभाविक है, और कुछ भी अप्रत्याशित नहीं होता है. बैंड पर फिल्म है तो गाने तो आएंगे ही. लेकिन वे फिल्म को खींचने का काम करते हैं. फरहान की सुपोर्टिंग कास्ट की वजह से फिल्म को एक बार देखा जा सकता है.
VIDEO: लखनऊ सेंट्रल के कलाकार फरहान अख्तर और डायना से खास बातचीत
...और भी हैं बॉलीवुड से जुड़ी ढेरों ख़बरें...
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं