इस फिल्म में रवि किशन भी नजर आएंगे.
निर्देशक : रंजीत तिवारी
कास्ट : फरहान अख्तर, डायना पेंटी, गिप्पी ग्रेवाल, दीपक डोबरियाल,
स्टार : 2.5 स्टार
आज बॉक्स ऑफिस पर दो बड़ी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर टकरा रही हैं. एक है हंसल मेहता की 'सिमरन' और दूसरी है निर्देशक रंजीत तिवारी की 'लखनऊ सेंट्रेल'. 'लखनऊ सेंट्रल' किशन गिरहोत्रा (फरहान अख्तर) की कहानी है, जो उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर मुरादाबाद का रहने वाला है. वह अपना एक बैंड बनाना चाहता है लेकिन एक आईएएनएस अधिकारी की हत्या के झूठे आरोप में उसे उम्र कैद की सजा हो जाती है. इसी जेल में कैद के दौरान किशन को अपना बैंड बनाने का मौका मिलता है और वह लखनऊ सेंट्रल जेल में अपने 4 कैदी साथियों के साथ मिलकर एक बैंड बनाता है. लेकिन इस बार बैंड बनाने की वजह है जेल से भागना.
कैदियों की बेहतरी के लिए काम करने वाली एक समाज सेविका गायत्री कश्यप (डायना पेंटी) बैंड बनाने में इनकी मदद करती हैं. अब जेल से भागने के लिए वह क्या-क्या प्लानिंग करते हैं और क्या ये सफल हो पाते हैं या नहीं, यह देखने के लिए आपको सिनेमाघरों तक जाना होगा. यह भी पढ़ें: कंगना रनोट की 'सिमरन' से फरहान अख्तर की 'लखनऊ सेंट्रल' की होगी बॉक्स ऑफिस टक्कर
निर्देशक रंजीत तिवारी की फिल्म 'लखनऊ सेंट्रल' का विषय अच्छा है जहां बताने की कोशिश है गई है कि इंसान को कैद किया जा सकता है, लेकिन उसके सपनों, उसके हुनर को नहीं. फिल्म के कुछ डायलॉग अच्छे हैं. बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है. भोजपुरी स्टार रवि किशन के इस फिल्म में 4-5 सीन ही हैं लेकिन यह सीन फिल्म की जान हैं, जो आपको खूब हंसाते हैं. फिल्म का सेंकड हाफ बेहतर और कसा हुआ है जिसमें थोड़ा इमोशन, थोड़ा ड्रामा है. फिल्म के गानों की बात करें तो वह भी ठीक-ठाक हैं.
यह भी पढ़ें: 'लखनऊ सेंट्रल' का पहला गाना रिलीज, कैदियों के साथ थिरकते दिखे फरहान अख्तर
फिल्म की कमजोरियों की बात करें तो इसका स्क्रीनप्ले बेहद कमजोर है. खास तौर से फिल्म का पहला भाग काफी लंबा है. जेल के अंदर की ग्रूपबाजी और लड़ाई-झगड़े बिना मतलब के लंबे कर दिए गए हैं. फिल्म में कई सीन बिना मतलब के लगते हैं और इसकी वजह से फिल्म खींची हुई या लंबी लगने लगती है. फरहान अख्तर की इस फिल्म में इंटरटेनमेंट के लिए मसाला बहुत कम है. इसलिए 'लखनऊ सेंट्रल' के लिए मेरी रेटिंग है 2.5 स्टार.
VIDEO: लखनऊ सेंट्रल के कलाकार फरहान अख्तर और डायना से खास बातचीत
...और भी हैं बॉलीवुड से जुड़ी ढेरों ख़बरें...
कास्ट : फरहान अख्तर, डायना पेंटी, गिप्पी ग्रेवाल, दीपक डोबरियाल,
स्टार : 2.5 स्टार
आज बॉक्स ऑफिस पर दो बड़ी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर टकरा रही हैं. एक है हंसल मेहता की 'सिमरन' और दूसरी है निर्देशक रंजीत तिवारी की 'लखनऊ सेंट्रेल'. 'लखनऊ सेंट्रल' किशन गिरहोत्रा (फरहान अख्तर) की कहानी है, जो उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर मुरादाबाद का रहने वाला है. वह अपना एक बैंड बनाना चाहता है लेकिन एक आईएएनएस अधिकारी की हत्या के झूठे आरोप में उसे उम्र कैद की सजा हो जाती है. इसी जेल में कैद के दौरान किशन को अपना बैंड बनाने का मौका मिलता है और वह लखनऊ सेंट्रल जेल में अपने 4 कैदी साथियों के साथ मिलकर एक बैंड बनाता है. लेकिन इस बार बैंड बनाने की वजह है जेल से भागना.
कैदियों की बेहतरी के लिए काम करने वाली एक समाज सेविका गायत्री कश्यप (डायना पेंटी) बैंड बनाने में इनकी मदद करती हैं. अब जेल से भागने के लिए वह क्या-क्या प्लानिंग करते हैं और क्या ये सफल हो पाते हैं या नहीं, यह देखने के लिए आपको सिनेमाघरों तक जाना होगा.
निर्देशक रंजीत तिवारी की फिल्म 'लखनऊ सेंट्रल' का विषय अच्छा है जहां बताने की कोशिश है गई है कि इंसान को कैद किया जा सकता है, लेकिन उसके सपनों, उसके हुनर को नहीं. फिल्म के कुछ डायलॉग अच्छे हैं. बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है. भोजपुरी स्टार रवि किशन के इस फिल्म में 4-5 सीन ही हैं लेकिन यह सीन फिल्म की जान हैं, जो आपको खूब हंसाते हैं. फिल्म का सेंकड हाफ बेहतर और कसा हुआ है जिसमें थोड़ा इमोशन, थोड़ा ड्रामा है. फिल्म के गानों की बात करें तो वह भी ठीक-ठाक हैं.
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फिल्म की कमजोरियों की बात करें तो इसका स्क्रीनप्ले बेहद कमजोर है. खास तौर से फिल्म का पहला भाग काफी लंबा है. जेल के अंदर की ग्रूपबाजी और लड़ाई-झगड़े बिना मतलब के लंबे कर दिए गए हैं. फिल्म में कई सीन बिना मतलब के लगते हैं और इसकी वजह से फिल्म खींची हुई या लंबी लगने लगती है. फरहान अख्तर की इस फिल्म में इंटरटेनमेंट के लिए मसाला बहुत कम है. इसलिए 'लखनऊ सेंट्रल' के लिए मेरी रेटिंग है 2.5 स्टार.
VIDEO: लखनऊ सेंट्रल के कलाकार फरहान अख्तर और डायना से खास बातचीत
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