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This Article is From Jan 12, 2018

Movie Review: रात के अंधेरे में दौड़ते-भागती जिंदगी है Kaalakaandi

फ़िल्म कालाकाण्डी की कहानी घूमती है 3 अलग-अलग परिस्थितियों में जिनमें 7 से 8 मुख्य किरदार हैं.

Movie Review: रात के अंधेरे में दौड़ते-भागती जिंदगी है Kaalakaandi
नई दिल्ली: फ़िल्म कालाकाण्डी की कहानी घूमती है 3 अलग-अलग परिस्थितियों में जिनमें 7 से 8 मुख्य किरदार हैं. कहानी के एक हिस्से में सैफ़ अली ख़ान और अक्षय ओबेराय हैं. जहां अक्षय की शादी होने वाली है और सैफ़ उनका सिर के बाल कटवाने ले जाते हैं और इस बीच दोनों अलग-अलग तरह की कालाकाण्डी करते हैं. कहानी में दूसरा ट्रैक है कुणाल रॉय कपूर और उनकी गर्ल फ्रेंड का जो अमेरिका जाना चाहती है. कालाकाण्डी की कहानी का तीसरा ट्रैक है विजय राज़ और दीपक डोभरियाल का जो किसी गैंगस्टर के लिए काम करते हैं.

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फ़िल्म कालाकाण्डी की अच्छाइयों की अगर बात करें तो इस फ़िल्म को देखते समय महसूस होता है कि ये आज का बदलता हुआ सिनेमा है या एक्सपेरिमेंटल फ़िल्म है. किरदार रियल लगते हैं. पटकथा में कसाव है. कई जगह फ़िल्म हंसाती है. सैफ़ अली ख़ान सहित सभी कलाकारों ने अच्छा अभिनय किया है.

मगर इसमें कहानी की कमी है. इस फ़िल्म में अलग-अलग किरदारों की कालाकाण्डी और दौड़ भाग ही है. पूरी फ़िल्म रात में शूट की गई है जो एक्सपेरिमेंटल सिनेमा का एहसास तो दिलाती है मगर कहीं कहीं ठीक नहीं लगती. इस फ़िल्म में हिंदी संवाद से ज़यादा अंग्रेजी डायलॉग्स हैं जो आम दर्शकों को इस फ़िल्म से दूर कर सकते हैं.

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कालाकाण्डी के अर्थ की तरफ़ देखें तो इसके मानी हैं गड़बड़ करने वाला और फ़िल्म के करीब करीब सभी किरदारों ने जाने अनजाने में गड़बड़ की है और फ़िल्म में दिखाने की कोशिश है कि कालाकाण्डी का परिणाम बुरा हो सकता है. लेखक निर्देशक अक्षत वर्मा ने कुछ अलग करने की कोशिश की है और इस कोशिश के लिए मेरी रेटिंग है 2.5 स्टार्स.

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