जलाकर नहीं, यहां पैरों से रौंदकर मारा जाता है रावण, 150 साल पुरानी परंपरा का सच क्या है?

राजस्थान में दो अलग-अलग जगहों पर दशहरा मनाने की ऐसी अनूठी परंपराएं हैं, जो देश भर में चर्चा का विषय बनती हैं. कोटा से शाकिर और जोधपुर से मुकुल के साथ जयपुर से एनडीटीवी के लिए सुशांत पारीक की रिपोर्ट

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  • राजस्थान के कोटा में विजयदशमी पर रावण के पुतले का दहन नहीं बल्कि उसे पैरों से रौंदकर वध किया जाता है
  • कोटा के जेठी समाज की यह परंपरा करीब सवा सौ वर्षों से चली आ रही है और पहलवानों द्वारा निभाई जाती है
  • कोटा में मिट्टी के रावण को रौंदने के बाद उसी स्थान पर दंगल आयोजित होता है और महिलाएं गरबा नृत्य करती हैं
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जयपुर:

जहां पूरे देश में विजयदशमी के दिन बुराई के प्रतीक रावण का पुतला दहन किया जाता है, वहीं राजस्थान इस पर्व को अनोखे और अलग तरीके से मनाने के लिए जाना जाता है. राजस्थान में दो अलग-अलग जगहों पर दशहरा मनाने की ऐसी अनूठी परंपराएं हैं, जो देश भर में चर्चा का विषय बनती हैं.

कोटा: मिट्टी के रावण को पैरों से रौंदकर किया जाता है दंगल

राजस्थान की हाड़ौती क्षेत्र के कोटा में विजयदशमी का नज़ारा देश के बाकी हिस्सों से बिल्कुल अलग होता है. यहां रावण के पुतले का दहन नहीं, बल्कि उसे पैरों से रौंदकर उसका वध किया जाता है. जेठी समाज द्वारा निभाई जाने वाली यह परंपरा करीब 150 साल पुरानी है और हाड़ा राजाओं के कुश्ती प्रेम से जुड़ी हुई है.

रावण का वध और दंगल की परंपरा

कोटा के नांता इलाके में जेठी समाज दशहरे पर मिट्टी का रावण बनाता है. दशमी के दिन, पहलवान इसे बुराई के प्रतीक के रूप में पैरों से रौंदकर उसका अंत करते हैं. मिट्टी का रावण रौंदने के तुरंत बाद, उसी मिट्टी पर पहलवान जोर-आजमाइश करते हैं और दंगल आयोजित होता है. नवरात्र के नौ दिनों तक, समाज की महिलाएं पारंपरिक गरबा (दीपक जलाकर किया जाने वाला नृत्य) करती हैं. यह रवायत पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है.

जोधपुर: रावण का मंदिर, वंशज करते हैं पूजा और मनाते हैं शोक

राजस्थान की आध्यात्मिक नगरी जोधपुर में विजयदशमी का रंग और भी खास है. यहां किला रोड पर दशानन रावण का एक अनूठा मंदिर स्थापित है, जहां रावण के वंशज उसकी पूजा करते हैं और इस दिन को शोक के रूप में मनाते हैं.

कब हुई मंदिर की स्थापना?

इस मंदिर को 2008 में रावण के वंशजों ने स्थापित किया था. यहां रावण की 11 फीट ऊंची प्रतिमा है, जिसमें वह शिवलिंग पर जल अर्पित करते हुए नज़र आते हैं. सामने रावण की पत्नी मंदोदरी की प्रतिमा भी स्थापित है. श्रीमाली दवे गोधा गोत्र के ब्राह्मण खुद को रावण का वंशज मानते हैं. उनका मानना है कि उनके पूर्वज उसी पीढ़ी के थे, जो लंकापति रावण की बारात के साथ मंडोर (जोधपुर) आए थे और यहीं बस गए.

विजयदशमी पर शोक
जहां देशभर में पुतला जलाकर खुशियां मनाई जाती हैं, वहीं रावण के वंशज विजयदशमी के दिन रावण का तर्पण करते हैं, अपनी जनेऊ बदलते हैं और विशेष पूजा-अर्चना कर शोक मनाते हैं. उनका मानना है कि दशानन एक परम ज्ञानी शिवभक्त था. भारत की परंपराओं और विविधताओं से भरे इस देश में, दशहरा केवल अच्छाई की जीत का पर्व ही नहीं, बल्कि अनूठी मान्यताओं और आस्थाओं का भी उत्सव है. यही वजह है कि देश भर में दशहरे के अपने रंग और अपना अंदाज़ है, लेकिन सबका संदेश एक है: बुराई पर अच्छाई की जीत.

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