राजस्थान में सरकारी नौकरी पाने के लिए दिव्यांगता प्रमाण-पत्र के माध्यम से बड़ी जालसाजी का पर्दाफाश हुआ है. ये सारा खेल दिव्यांग कोटे 2% आरक्षण के तहत नौकरी पाने के लिए हुआ है. बड़ी बात ये है कि ये जालसाज फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए RPSC जैसे संवैधानिक संस्थान में भी नौकरी हासिल करने में कामयाब हो गए हैं.
फिर से हुआ मेडिकल टेस्ट
एसओजी के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, भवानी शंकर मीणा के नेतृत्व में गठित जांच दल ने 29 लोक सेवकों का एसएमएस मेडिकल कॉलेज में फिर से मेडिकल करवाया. रिपोर्ट में केवल 5 कर्मचारियों की वास्तविक दिव्यांगता 40% या उससे ज्यादा पाई गई. बाकी 24 दिव्यांग कर्मचारियों को मेडिकल बोर्ड ने दिव्यांग श्रेणी के लिए अयोग्य करार दिया. इनमें सुनने में समस्या वालों में 13 में से सभी 13, दृष्टिबाधित 8 में से 6 और लोकोमोटर के साथ अन्य प्रकार की दिव्यांगता वाले 8 में से 5 अयोग्य मिले हैं.
फर्जीवाड़े के बाद की गई कार्यवाई
इन मामलों में RPSC स्टेनोग्राफर अरुण शर्मा ने 2018 में 70% दृष्टि दोष का फर्जी प्रमाणपत्र जमा कर नौकरी पाई थी. 2022 की फिर हुई मेडिकल जांच में उनकी वास्तविक दृष्टि दोष 30% से भी कम पाई गई. उनकी नियुक्ति रद्द करने और धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया. पशु चिकित्साधिकारी शंकर लाल मीणा साल 2005 से विभाग में कार्यरत हैं. उन्होंने फर्जी प्रमाणपत्र का उपयोग कर नौकरी हासिल की. अब उन पर सेवा से बर्खास्तगी और कानूनी कार्रवाई की संभावना है.
जैसलमेर, भरतपुर से आए केस सामने
इसके अलावा जैसलमेर के राजकीय प्राथमिक विद्यालय मोहनगढ़ में अंग्रेज़ी पढ़ा रही दामिनी कंवर कान (EAR) के लिए जाली प्रमाणपत्र जमा कर चुकी थीं. भरतपुर के सरकारी कॉलेज बयाना में अंग्रेजी लेक्चरर सवाई सिंह गुर्जर के प्रमाणपत्र में मूक और बधिर दोनों लिखा हुआ था. दोनों मामलों में कर्मचारियों ने फर्जी दस्तावेज जमा कर नौकरी हासिल की थी.
दरअसल फर्जी दस्तावेजों के जरिए सरकारी नौकरी हासिल करने वाले 67 नामों की सूची सामने आई, जिनमें 31 अभी नौकरी कर रहे हैं और शेष ने गिरफ्तारी के डर से नौकरी छोड़ दी. एसओजी फिलहाल बाकी बचे हुए लोगों की तलाश में भी जुटी है.