- राजस्थान के रणथंभौर और सरिस्का टाइगर रिजर्व में करीब 25 बाघ लगभग एक साल से लापता हैं।
- वन विभाग की मॉनिटरिंग रिपोर्ट में पगमार्क ट्रेकिंग और कैमरा ट्रैप से बाघों की स्थिति का पता लगाया गया।
- सरिस्का के एक बाघ तीन साल से गायब है, जबकि रणथंभौर से ग्यारह बाघों की खोज जारी है।
राजस्थान में बाघों की सुरक्षा और उनकी आबादी बढ़ने के लिए रणथंभौर टाइगर रिजर्व के साथ सरिस्का जैसे क्षेत्र विकसित किए गए, लेकिन ऐसा लगता है कि, टाइगर अब अपने घर में ही सुरक्षित नहीं है. दरअसल यह सवाल वन विभाग की रिपोर्ट से ही उठ रहे हैं. तकरीबन साल भर पहले मॉनिटरिंग रिपोर्ट में यह सामने आया था कि रणथंभौर और सरिस्का के बाघों में से करीब 25 टाइगर लापता हैं। मिसिंग टाइगर्स की इतनी बड़ी संख्या ने विभाग के साथ वन्य जीव विशेषज्ञों को भी हैरान कर दिया.
एक वक्त था जब राजस्थान के सरिस्का और रणथंभौर टाइगर रिजर्व में बाघों की जान पर बड़ा खतरा आ गया था. सैलानियों के कैमरों की क्लिक और जंगल पर राज करने वाले बाघों के जीवन पर संसार चंद्र का नाम बड़ा संकट बन गया था. बखेड़ा हुआ तो सरकार जागी. शिकारी संसार चंद्र का शिकार किया और बाघों के कुनबे को बढ़ाने के इंतजाम भी किए. इसके अच्छे नतीजे भी आने लगे और राजस्थान में बाघों का कुनबा 150 के आंकड़े को पार कर गया.
बाघों की गिनती बढ़ने से वन विभाग से लेकर सैलानी और वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट तक सब खुश थे, लेकिन साल भर पहले आई एक रिपोर्ट ने बाघों को लेकर एक बार फिर से चिंता की लकीरें उकेर दी. दरअसल पगमार्क ट्रेकिंग और कैमरा ट्रैप जैसी तकनीकों से बाघों की गिनती और मॉनिटरिंग करने वाले विभाग की रिपोर्ट में 25 टाइगर लंबे समय से नहीं दिख रहे थे. ऐसे में हल्ला मचा तो विभाग ने भी तत्काल कैमरा की संख्या बढ़ाई और 12 बाघ कैमरा ट्रैप से ढूंढ निकाले. जबकि बाकी रहे 13 मिसिंग टाइगर्स को ढूंढने के लिए वन विभाग ने एक कमेटी बनाई, लेकिन एक साल बाद भी इस कमेटी की रिपोर्ट का कोई अता-पता नहीं है. इनमें से रणथंभौर के 11 और सरिस्का के दो टाइगर लापता हैं.
सरकार की सफाई क्या सही
हालांकि मिसिंग टाइगर्स को लेकर सवाल पूछने पर वन मंत्री संजय शर्मा कहते हैं कि मिसिंग टाइगर्स में से कई मध्य प्रदेश भी जा सकते हैं. वन मंत्री ने कहा कि रणथंभौर का इलाका मध्य प्रदेश के कूनो पार्क से सटा हुआ है और कई बार टाइगर अपना इलाका बदल लेता है. साथ ही वे यह भी कहते हैं, कि जो मिसिंग टाइगर्स हैं, उनमें से अधिकांश की उम्र ज्यादा थी. ऐसे में आशंका इस बात की भी हो सकती है कि उनमें से कुछ टाइगर अब दुनिया में न रहे हों.
सरिस्का टाइगर रिजर्व से एक बाघ 3 साल से लापता
सरिस्का के टाइगर्स में से ST–13 करीब 3 साल से गायब है. हालांकि उसके लिए विभाग ने अलग-अलग जगह सर्च ऑपरेशन चलाया, लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिली. अकबरपुर रेंज की टाइग्रेस 2401 भी मिसिंग है. विभाग ने कैमरे और पेट्रोलिंग तो बढ़ाए हैं, लेकिन जंगल का क्षेत्र बड़ा होने के कारण हर जगह उसकी खोज करना कितना मुमकिन होगा, इस बारे में विभाग भी दावे से कुछ नहीं कहता. दूसरी तरफ रणथंभौर टाइगर रिजर्व के T–92, T–20, T-70, T–71, T–76 समेत 11 टाइगर मिसिंग हैं. विभाग उनकी खोज के दावे तो करता है, लेकिन अभी तक उसका नतीजा सिफर ही रहा है.
एक टाइगर की जीवन अवधि 15 से 18 साल की होती है. ऐसे में फिलहाल गायब चल रहे अधिकांश टाइगर उम्रदराज बताए जा रहे हैं. लेकिन अगर वह टाइगर दुनिया में नहीं रहे और उनकी नेचुरल डेथ हो गई तो सवाल यह है कि क्या विभाग उनके अवशेष ढूंढ पाएगा? सवाल यह भी कि इतनी बड़ी संख्या में टाइगर्स के गायब होने के पीछे कहीं फिर से कोई नया संसार चंद्र या पुरानी गैंग तो नहीं?
बारिश से बदला इलाका
सवाई माधोपुर जिले में हुई भारी बारिश के बाद जहाँ जिले के कई गांव बाढ़ की चपेट में आ गए. रणथंभौर टाईगर रिजर्व में भी भारी बारिश के चलते जंगल का जीवन बदल गया है. क्षेत्र में हुई भारी बारिश के चलते जहाँ रणथंभौर के सभी नदी नाले और झरनों में उफान देखने को मिला , वहीं टाइगर रिजर्व के तालाब भी लबालब हो गए. भारी बारिश ने ना सिर्फ रणथंभौर के सफारी ट्रेक को जगह जगह से क्षतिग्रस्त कर दिया ,बल्कि कई जगहों पर ट्रेक पूरी तरह से कट गया है. रणथंभौर एक तरह से रहस्यमय जंगल बन गया है. जलभराव के चलते रणथंभौर के रास्ते भूलभुलैया की तरह हो गए है ,जहां किसी भी जगह आसानी से पहुंच पाना मुश्किल हो गया है. जंगल के निचले इलाके में जलभराव होने के चलते टाइगर सहित अन्य वन्यजीवों ने भी पहाड़ों की चोटियों की शरण ले ली है. इसके चलते रणथंभौर के निचले इलाकों में बाघ बाघिन ही नहीं बल्कि पैंथर ,भालू ,हिरण सहित अन्य जीव भी नजर नही आ रहे हैं.