कहीं घर वापसी तो कहीं इस्तीफा... नॉमिनेशन से पहले तेज हुआ दल-बदल का दौर, निष्ठा या मौके की सियासत?

एनडीए के घटक दल जेडीयू के लिए पिछले कुछ दिन भारी साबित हो रहे हैं. गोपालगंज के बैकुंठपुर से जेडीयू के पूर्व विधायक मंजीत सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. वे राज्य नागरिक परिषद के उपाध्यक्ष पद पर भी थे. इस्तीफा देते हुए उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर नाराजगी जताई और कहा कि संगठन में कार्यकर्ताओं की बात सुनी नहीं जाती.

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पटना:

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीख का ऐलान हो चुका है और सियासी पारा लगातार चढ़ता जा रहा है. एनडीए ने सीट शेयरिंग का ऐलान कर दिया है, जबकि महागठबंधन अब तक फार्मूला तय नहीं कर पाया है. लेकिन इस बीच नेताओं के दल बदलने की रफ्तार तेज हो गई है. किसी ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया तो कोई विरोधी खेमे में शामिल होकर नई राजनीतिक पारी शुरू कर रहा है. राजनीति के इस मौसम में निष्ठा और नाराजगी दोनों खुलकर सामने आ रही हैं. कहीं घर वापसी हो रही है तो कहीं इस्तीफा बम फूट रहे हैं.

जेडीयू में इस्तीफों की झड़ी

एनडीए के घटक दल जेडीयू के लिए पिछले कुछ दिन भारी साबित हो रहे हैं. गोपालगंज के बैकुंठपुर से जेडीयू के पूर्व विधायक मंजीत सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. वे राज्य नागरिक परिषद के उपाध्यक्ष पद पर भी थे. इस्तीफा देते हुए उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर नाराजगी जताई और कहा कि संगठन में कार्यकर्ताओं की बात सुनी नहीं जाती.

वहीं, जदयू के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री जय कुमार सिंह ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. जय कुमार सिंह ने न केवल पार्टी छोड़ दी बल्कि तीखे आरोप भी लगाए. उन्होंने कहा कि सीट शेयरिंग की जिम्मेदारी जिन लोगों को दी गई. वे इतने कमजोर निकले कि कल्पना नहीं की जा सकती थी. RLM की क्या औकात है? उपेंद्र कुशवाहा जैसे लोग सिर्फ नाम के लिए बने हैं. जीतने का कोई रिकॉर्ड नहीं है.

महागठबंधन में भगदड़
उधर, महागठबंधन के खेमे में भी टूट का दौर जारी है. मोहनिया से राजद की विधायक संगीता कुमारी ने आज बीजेपी का दामन थाम लिया है. यह वही संगीता हैं जिन्होंने फ्लोर टेस्ट के दौरान भी एनडीए को समर्थन दिया था. बीजेपी जॉइन करने के बाद संगीता ने कहा कि छात्र जीवन से ही मैं अटल बिहारी वाजपेई जी के विचारों से प्रभावित रही हूं. राजद की करनी और कथनी में बहुत अंतर है. उनका काम बाबा साहब के सिद्धांतों के खिलाफ है. मैं भाजपा के नेतृत्व में बिहार के विकास के लिए काम करूंगी.

वहीं, विक्रम विधानसभा से कांग्रेस विधायक सिद्धार्थ ने भी पार्टी छोड़कर बीजेपी का रुख किया. यह वहीं सिद्धार्थ हैं, जिन्होंने फ्लोर टेस्ट के दौरान भी एनडीए को समर्थन दिया था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस अब बिहार में राजद की सहयोगी नहीं, बल्कि उसकी शाखा बन चुकी है. महागठबंधन बस लालू परिवार के विकास के लिए काम कर रहा है. जनता के लिए नहीं. कांग्रेस अब पूरी तरह राजद में समर्पित हो चुकी है. उनकी यह टिप्पणी कांग्रेस के भीतर भी असहजता पैदा करने वाली रही.

घर वापसी का सिलसिला भी जारी
इधर, कई नेता अपने पुराने राजनीतिक घर लौट आए हैं. सीतामढ़ी से जदयू के पूर्व सांसद सुनील कुमार पिंटू ने आज भाजपा में घर वापसी की. उन्होंने कहा कि मैं तो बोरो प्लेयर के रूप में गया था. पार्टी ने बुलाया तो वापस आ गया. 2019 में कुछ मतभेद हुए थे. लेकिन वो अब खत्म हैं. पार्टी तय करेगी कि मुझे चुनाव लड़ना है या नहीं. उनकी वापसी से सीतामढ़ी सीट पर एनडीए का समीकरण और मजबूत माना जा रहा है.

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राजद को एक और झटका
परसा विधानसभा क्षेत्र से राजद विधायक छोटे लाल राय ने जदयू का दामन थाम लिया है. छोटे लाल राय का जदयू में शामिल होना पार्टी के लिए राहत की खबर है. खासकर तब जब जदयू के कई पुराने चेहरे छोड़कर जा चुके हैं. इसके साथ ही नवादा से राजद विधायक विभा देवी भी जेडीयू में शामिल हो गई है. वहीं, रजौली से राजद विधायक प्रकाश वीर कल आधिकारिक तौर पर जदयू में शामिल होंगे. इन तीनों की ज्वाइनिंग से महागठबंधन के भीतर नाराजगी और असंतोष का संकेत साफ दिखने लगा है.

केदारनाथ सिंह का इस्तीफा, प्रभुनाथ सिंह फैक्टर
आरजेडी के बनियापुर से विधायक केदारनाथ सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. विधानसभा सचिवालय ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया है. खास बात यह है कि वे पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के भाई हैं. अब खबर है कि केदारनाथ सिंह एनडीए की टिकट पर चुनाव लड़ेंगे. उनके आने से एनडीए को सारण जिले में बड़ा राजनीतिक संतुलन हासिल हो सकता है.

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एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए चुनौती
इन लगातार हो रहे दल बदल और इस्तीफों ने दोनों गठबंधनों के लिए चुनौती खड़ी कर दी है. एनडीए के सामने अपने असंतुष्ट नेताओं को मनाने की चुनौती है, जबकि महागठबंधन में बिखराव की स्थिति लगातार बढ़ रही है. जहां एनडीए उम्मीदवारों की सूची जारी करने से पहले रणनीतिक चुप्पी साधे हुए है तो वहीं, महागठबंधन अब भी सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बना पाया है. इस बीच नेताओं के पाले बदलने का सिलसिला अगर इसी तरह चलता रहा तो आने वाले दिनों में बिहार की सियासी तस्वीर और उलझ सकती है.

बिहार में चुनाव की तारीख तय हो चुकी है. लेकिन उम्मीदवारों की सूची से पहले ही सियासी समीकरण लगातार बदल रहे हैं. यह चुनाव सिर्फ गठबंधनों की लड़ाई नहीं, बल्कि निष्ठा बनाम अवसर की लड़ाई भी बनता जा रहा है.

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