मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में लटेरी के जंगलों में लकड़ी तस्करों के साथ मुठभेड़ में वनकर्मियों की गोली से एक शख्स की मौत हो गई थी. इसके बाद वनकर्मियों पर केस दर्ज होने पर राज्य सरकार और वन विभाग के कर्मचारी आमने सामने हैं. विरोध में वनरक्षक राज्य सरकार के पास अपने हथियार जमा करा रहे हैं. वनरक्षकों का आरोप है कि उनके खिलाफ एकतरफा कार्रवाई हुई है. वहीं, 14 दिनों बाद इस मामले में जांच के लिये एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन हो गया है.
मामला 9 अगस्त को खटयापुरा में वनकर्मियों और आदिवासियों के बीच मुठभेड़ का है. वन विभाग का आरोप है उन्होंने लकड़ी की तस्करी को रोकने की कोशिश की. स्थानीय लोगों ने हमला किया, आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी. जिसमें एक शख्स की मौत हो गई. उस पर लकड़ी चोरी के कई आरोप थे, वहीं आदिवासियों का कहना था उन्हें घेरकर मारा गया.
मुठभेड़ में भगवान सिंह को भी चोट लगी थी. उनका कहना है कि फॉरेस्ट वाले मिले, उन्होंने सीधे बंदूक चला दी. चैन सिंह वहीं खत्म हो गए, उसे उठाने गये तो मुझे भी चोट लगी. हम लोग लकड़ी लेने गये थे. हम 8 लोग थे, वो दो गाड़ी में 20-25 लोग सवार थे.
अगले दिन वनकर्मियों पर हत्या और हत्या के प्रयास का मामला दर्ज हो गया. इसके विरोध में वनकर्मियों ने अपनी बंदूकें जमा करानी शुरू कर दी. कर्मचारियों का कहना है वन विभाग ने उन्हें बंदूके दी है तो किस काम के लिये दी है. राज्य में वन बल को दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 45 के तहत आज तक सशस्त्र बल घोषित नहीं किया गया और न ही हथियार चलाने के संबंध में धारा 197 के तहत कोई नियम तय किए गए हैं.
एमपी रेंजर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष शिशुपाल अहिरवार ने कहा हमें वन सुरक्षा के लिए हथियार दे दिए, लेकिन चलाने की कोई पॉवर नहीं है, कोई प्रोटोकॉल नहीं है. हम उस बंदूक का क्या करेंगे? इससे अच्छा है आप ले लें.
वहीं, राज्य सरकार ने साफ कर दिया है कि वनकर्मी भले ही हथियार जमा करा दें लेकिन उन्हें आत्मरक्षा के लिये सिर्फ हवाई फायर की इजाजत है ना कि किसी की जान लेने की.
वन मंत्री कुंवर विजय शाह ने कहा गोली चलाने का अधिकार तो किसी को नहीं है. फैसला न्यायालय करता है. लेकिन कभी-कभी आत्मरक्षा में हो जाता है. मनुष्य को मारने का अधिकार किसी को नहीं है. हथियार जंगल बचाने के लिए दिए गए हैं. हथियार से सीधी गोली नहीं चलानी होती, अगर ऐसा होता है तो जांच से गुजरना होगा. हवाई फायर करते हुए खुद को और दूसरे की भी जान बचानी होती है.
बता दें, मध्यप्रदेश में कुल 94,689 लाख हैक्टेयर वन क्षेत्र है. कुल 52,739 गांवों में से 22,600 गांव या तो जंगल में बसे हैं या फिर जंगलों की सीमा से सटे हुए हैं. जंगल 8,286 बीटों में बंटा है. एक बीट का दायरा 12 से 16 वर्ग किलोमीटर तक है. इसकी सुरक्षा के लिए सिर्फ एक वनरक्षक की तैनाती की जाती है. वनरक्षकों के 14,024 पदों में से 1695 खाली हैं. इसमें भी 4000 से ज्यादा दफ्तर और अधिकारियों के बंगले पर सेवाएं दे रहे हैं.
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