- मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के चुनावी शपथपत्र में संपत्ति छिपाने के मामले में राज्य सरकार की भूमिका पर संदेह
- अदालत ने पाया कि राज्य सरकार चुनाव आयोग को आवश्यक जानकारी देने में असमर्थ रही, जिससे जांच प्रक्रिया प्रभावित
- याचिकाकर्ता ने राजपूत परिवार से जुड़े सत्तर से अधिक भूखंडों के दस्तावेज जांच के लिए कोर्ट में प्रस्तुत किए
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह राजपूत पर विधानसभा चुनाव 2023 के शपथपत्र में करोड़ों की संपत्ति छिपाने के आरोपों की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया. अदालत ने टिप्पणी की कि सरकार जानबूझकर चुनाव आयोग को आवश्यक जानकारी उपलब्ध नहीं करा रही है, जिससे साफ है कि वह मंत्री को बचाने की कोशिश कर रही है. सागर जिले के याचिकाकर्ता राजकुमार सिंह की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये टिप्पणी की.
याचिका में लगाए ये आरोप
याचिका में आरोप लगाया कि राजपूत ने नामांकन पत्रों में बड़ी संख्या में भूमि और संपत्तियों का खुलासा नहीं किया. याचिकाकर्ता ने दस्तावेज चुनाव आयोग को सौंपे थे, जिसने राज्य सरकार से ज़मीन के रिकॉर्ड मांगे थे. लेकिन आयोग को अब तक यह जानकारी नहीं मिली, क्योंकि सरकार ने कथित तौर पर टालमटोल भरे जवाब देकर जांच रोक दी. मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की.
राज्य सरकार ने झाड़ा पल्ला
अदालत ने पाया कि चुनाव आयोग ने आरोपों को गंभीर मानते हुए जांच योग्य माना था, मगर राज्य सरकार ने इसे “चुनाव आयोग का मामला” कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया और जांच ठप हो गई. अदालत ने कहा कि यह जांच लटकी हुई है और अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने राजपूत और उनके परिवार से जुड़े 64 भूखंडों के रजिस्ट्री और ज़मीन के रिकॉर्ड अदालत के सामने रखे. ये संपत्तियां मंत्री के चुनावी शपथपत्र में दर्ज नहीं थीं.
राज्य सरकार ले रही मंत्री का पक्ष
अदालत में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, 2019 से 2024 के बीच राजपूत, उनकी पत्नी और पुत्रों ने सागर जिले में लगभग 40 हेक्टेयर ज़मीन खरीदी, जिसकी कीमत सैकड़ों करोड़ रुपये आंकी गई है. जबकि उनके शपथपत्र में केवल 12 करोड़ रुपये की संपत्ति दिखाई गई है. अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग की मदद करने के बजाय राज्य सरकार मंत्री का पक्ष लेती नज़र आ रही है. अदालत ने अब आयोग को अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने का निर्देश दिया है और राज्य सरकार तथा सागर के जिला निर्वाचन अधिकारी से स्टेटस रिपोर्ट मांगी है.
आयकर विभाग भी कर रहा जांच
विवाद गहराता जा रहा है क्योंकि आयकर विभाग भी राजपूत से जुड़ी संपत्तियों की जांच कर रहा है. इससे पहले एनडीटीवी ने साल 2022 में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह कथित तौर पर राजपूत और उनके परिवार को सागर जिले के भापेल गांव में ससुराल पक्ष से 50 एकड़ ज़मीन उपहार में मिली. उल्लेखनीय है कि मंत्री और उनके परिवार को मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 58(3) का लाभ दिया गया, जिसके तहत ज़मीन का दर्जा गैर-सींचित से सींचित में बदलने के बाद कम दरों पर पुनः पंजीयन कराया गया.
आलोचकों का कहना है कि इससे सीधे तौर पर सरकारी खजाने को नुकसान हुआ. राजपूत उस वक्त राजस्व मंत्री थे. यह ज़मीन मूलतः 2021 में राजपूत के साले हिमाचल सिंह और करतार सिंह ने खरीदी थी, जिसे बाद में राजपूत, उनकी पत्नी सविता सिंह और बेटे आदित्य को ट्रांसफर कर दिया गया. एनडीटीवी ने जब 3 साल पहले विधानसभा परिसर में सवाल पूछा था तो मंत्री राजपूत ने माइक हटाने की कोशिश की और जवाब देने से बचते रहे।