मध्य प्रदेश : कहीं स्कूल हुए खंडहर तो कहीं बांधे जा रहे जानवर, 2760 स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय नहीं

मध्य प्रदेश सरकार के खुद के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 99,987 सरकारी स्कूल हैं, जिसमें 1582 स्कूलों के पास बिल्डिंग नहीं है.

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MP के 43,351 स्कूलों में बिजली नहीं है.
भोपाल:

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में स्कूलों की मनमानी की शिकायत पर स्कूली शिक्षा मंत्री कथित तौर पर अभिभावकों को मरने की सलाह दे रहे हैं. राज्य में पिछले कई वर्षों से फीस नियामक कानून भले ही ठीक ढंग से लागू नहीं हो पाया है, फिर भी सरकार को अभिभावकों की बजाय स्कूलों की चिंता है. कोरोना काल में सरकार अभिभावकों की फिक्र समझना तो दूर, उनसे बैठकर बात करना भी सही नहीं समझ रही शायद तभी मंत्री जी तल्ख हैं. भोपाल में मंगलवार को पालक संघ के बैनर तले 80-90 अभिभावक स्कूली शिक्षा मंत्री से मिलने पहुंचे. शिकायत कही कि स्कूल बंद होने के बाद भी एक अप्रैल से ऑनलाइन क्लास की फीस वसूल रहे हैं. मंत्री जी को रिकॉर्डिंग ठीक नहीं लगी, पहले उसे रूकवाया, शिकायत नहीं सुनी तो एक सदस्य ने कहा कि क्या मर जाएं, तो मंत्री ने कार का दरवाजा खोलते हुए कहा कि मर जाओ.

पालक महासंघ के अध्यक्ष कमल विश्वकर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, स्कूल मुनाफाखोरी का संस्थान नहीं हैं. निजी स्कूल मनमानी कर रहे हैं. बावजूद इसके राज्य सरकार ने 6 महीने बीत जाने के बाद आदेश नहीं निकाला है. कांग्रेस मंत्री का इस्तीफा मांग रही है. कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने कहा कि शिवराज सरकार के मंत्री कहते हैं कि वे अभिभावक नहीं गुंडे हैं. एक स्कूल शिक्षा मंत्री की यह भाषा नहीं हो सकती. मुख्यमंत्री को फौरन उन्हें बर्खास्त करना चाहिए.

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कल अभिभावकों को मरने की नसीहत देने वाले मंत्री से जब NDTV ने जवाब मांगा तो वो कैमरा देखकर भागने लगे, जवाब नहीं दिया. काश इस तल्खी से पहले मंत्री जी भोपाल में ही फहीम, प्रियंका और सुषमा जैसे अभिभावकों की समस्या समझने की कोशिश करते. भोपाल में फोटो स्टूडियो चलाने वाली फहीम खान की दो बेटियां हैं. दोनों प्राइवेट स्कूल में पढ़ती हैं. बढ़ी फीस, ऊपर से नेट का खर्च और आमदनी कम होने से वह परेशान हैं. वह कहती हैं कि अर्थव्यवस्था हमारी पहले से नीचे जा रही है. ऐसे में स्कूल फीस बढ़ाता है तो हमारे लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी. सरकार का रवैया अभिभावकों के प्रति ठीक नहीं है, यह गलत है.

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प्रियंका के 2 बच्चे हैं. पति कारोबारी हैं लेकिन कोरोना में अच्छा खासा नुकसान सहना पड़ा है. कहती हैं, जरा सी भी फीस भरने में देरी हो तो स्कूल से मैसेज आ जाते हैं. फीस टाइम पर नहीं आती तो मैसेज आते हैं. यह ग्रुप में भी आता है. वह निवेदन करती हैं कि सरकार को हमारी समस्या का समाधान करना चाहिए. सुषमा घरेलू कामकाज करती हैं, पति मजदूरी. दो बच्चे हैं. इनकी दिक्कत यह है कि पढ़ाई के लिए मोबाइल और डेटा का इंतजाम मुश्किल है. वह कहती हैं कि बच्चों के लिए बहुत मुश्किल हो गया है ऑनलाइन क्लास करना. वह बंगलों में काम करती हैं. पैसे नहीं है कि मोबाइल रिचार्ज करवा सकें. गरीब ही ज्यादा परेशान हो रहे हैं.

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मंत्री जी ये सब कुछ नहीं देखते. निजी स्कूलों के लिए बैटिंग करते दिख रहे हैं. सरकारी स्कूलों पर ध्यान नहीं, नहीं तो भोपाल के बगल में सीहोर के स्कूल का खंडहर देखते, या झाबुआ में पेड़ के नीच पढ़ रहे बच्चे. दर्शनीय तो धार जिले के लुनेरा का स्कूल भी है, जहां जानवर बांधे जा रहे हैं. मध्य प्रदेश सरकार के खुद के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में 99,987 सरकारी स्कूल हैं, जिसमें 1582 स्कूलों के पास बिल्डिंग नहीं है. 43,351 स्कूलों में बिजली नहीं है. 2760 स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय नहीं हैं. 2007 स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा नहीं है. 6 हजार स्कूल प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे हैं. 18 हजार स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक जबकि नई शिक्षा नीति में 30 बच्चों पर एक शिक्षक अनिवार्य है.

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मूलभूत सुविधाओं में देश में मध्य प्रदेश के स्कूल 17वें स्थान पर हैं. देश में शिक्षकों के 10,60,139 पद खाली हैं. उसमें मध्य प्रदेश में 91,972 पद खाली हैं. ऐसा केन्द्र सरकार ने लोकसभा में कहा है. जबकि आलम यह है कि सितंबर 2018 में स्कूल शिक्षा में 30,594 पदों के लिए विज्ञापन निकाला गया. फरवरी 2019 में परीक्षा हो गई, दो साल से उम्मीदवारों को नियुक्ति का इंतजार है.

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