उत्तर भारतीय विरोधी छवि, वोट बैंक का डर.. राज ठाकरे को लेकर महाराष्ट्र में दुविधा में फंसी कांग्रेस!

महाराष्ट्र में कांग्रेस के बड़े संकट में फंसी हुई है. दरअसल, राज ठाकरे को लेकर कांग्रेस के भीतर मुश्किल वाली स्थिति बनी हुई है. कांग्रेस इस वक्त राज ठाकरे के साथ नहीं दिखना चाहती है.

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  • कांग्रेस महाराष्ट्र में राज ठाकरे से दूरी बना रही है, पार्टी के बड़े नेता एक अहम कार्यक्रम से गायब रहे
  • माना जा रहा है कि राज ठाकरे की उत्तर भारतीय विरोधी छवि से पार्टी सशंकित है
  • बिहार चुनाव में के बीच में कांग्रेस के नेता मुश्किल भरी स्थिति से गुजर रहे हैं
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मुंबई:

महाराष्ट्र में राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस को लेकर कांग्रेस की स्थिति ऐसी हो गयी है कि “न उगला जाये न निगला जाये”. कांग्रेस की ये दुविधा शनिवार को मुंबई में कथित वोट चोरी के खिलाफ आयोजित “सत्य का मोर्चा” में नजर आई. मोर्चे में राज्य कांग्रेस के कई बडे चेहरे नदारद रहे. उनकी गैरमौजूदगी के पीछे कारण मोर्चे में राज ठाकरे का साथ आना माना जा रहा है. कांग्रेस के नेतृत्व को डर है कि महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय विरोधी राज ठाकरे के करीब दिखने का खामियाजा उसे बिहार चुनाव में झेलना पड़ सकता है.

कांग्रेस रही गायब 

दक्षिण मुंबई में शनिवार दोपहर जब फैशन स्ट्रीट से मोर्चा निकला तो उसमें महाविकास आघाडी के घटक दल शिव सेना (यूबीटी), एनसीपी (शरद पवार) और राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस के कई दिग्गज नेता नजर आये. लेकिन जिस बात ने सभी को चौंकाया वो था गठबंधन के एक प्रमुख घटक दल कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की गैरहाजिरी. न तो कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष हर्षवर्धन सकपाल थे और न ही नाना पटोले जैसे दूसरे दिग्गज नाम. कांग्रेस के बडे चेहरों की दूरी के पीछे राज ठाकरे का आंदोलन से जुडना माना जा रहा है. ये पहली बार है कि राज ठाकरे महाविकास आघाडी के साथ संयुक्त रूप से मिलकर कोई आंदोलन कर रहे हैं.

उत्तर भारतीय विरोधी छवि का डर!

कांग्रेस को राज ठाकरे से परहेज उनकी उत्तर भारतीय विरोधी छवि के कारण है. जब राज ठाकरे शिव सेना में थे और जब उन्होने 2006 में अपनी अलगह पार्टी बनाई तब उनकी ओर से उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के खिलाफ जमकर जहर उगला गया. साल 2008 में महाराष्ट्र के कई शहरों में उत्तर भारतीय विरोधी दंगे हुए जिनमें कई लोग मारे गये. मराठी न बोल पाने का बहाना बनाकार हाल फिलहाल में भी एमएनएस कार्यकर्ता महाराष्ट्र में हिंदी भाषियों की पिटाई कर रहे हैं. ऐसी दर्जनभर से ज्यादा वारदातों बीते छह महीने में सामने आ चुकीं हैं. साल 2020 में राज ठाकरे ने कुछ वक्त के लिये हिंदुत्ववाद भी अपना लिया था और मस्जिदों से लाउड स्पीकर उतरवाने के लिये आंदोलन छेडा था.

कांग्रेस की रणनीति 

राज ठाकरे की सांप्रदायकि और भाषाई कट्टरता वाली सियासत कांग्रेस की विचारधारा से मेल नहीं खाती, जिसके वोट बैंक में हिंदी भाषी और मुसलमान हैं. ऐसे में पार्टी के एक तबके का मानना है कि राज ठाकरे के साथ दिखना पार्टी को बिहार चुनाव के अलावा जल्द होने जा रहे मुंबई महानगरपालिका चुनाव में भी नुकसान पहुंचा सकता है. यही वजह है कि कांग्रेस नेता उनके साथ दिखने से कतरा रहे हैं.

कांग्रेस को करना होगा फैसला 

हालांकि वोट चोरी के खिलाफ आंदोलन में राज ठाकरे महाविकास आघाडी के साथ आये हैं लेकिन ये सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या उनकी पार्टी भी महाविकास आघाडी में शामिल होगी. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस के लिये सवाल खड़ा हो जायेगा कि महाविकास आघाडी में रहना है या नहीं. वैसे चर्चा ये भी हो रही है कि मुंबई महानगरपालिका समेत महाराष्ट्र की तमाम महानगरपालिकाओं के चुनाव महाविकास आघाडी के घटक दल अलग-अलग लड़ सकते हैं.
 

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