मराठी अस्मिता के लिए आए साथ...  उद्धव और राज ठाकरे के साथ आने 'सामना' में संजय राउत ने और क्या कुछ लिखा पढ़ें

संजय राउत ने लिखा कि फडणवीस सरकार को महाराष्ट्र में हिंदी अनिवार्यता आदेश को रद्द करना पड़ा. इसके कारण 5 जुलाई को मोर्चे का रुपांतर मराठी विजय दिवस में हो गया.

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महाराष्ट्र की राजनीति में साथ आए उद्धव और राज ठाकरे
मुंबई:

महाराष्ट्र की राजनीति में शनिवार का दिन बेहद खास रहा. खास इसलिए क्योंकि मराठा राजनीति के धुरी माने जाने वाले उद्धव और राज ठाकरे 20 साल बाद एक साथ आए. दोनों भाइयों के साथ आने का महाराष्ट्र की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा इसे लेकर तरह-तरह के दावे कर रहे हैं. इन सब के बीच उद्धव और राज ठाकरे के साथ आने को लेकर शिवसेना (बाला साहेब ठाकरे) के मुखपत्र सामना में शिवसेना (यूबीटी) के बड़े नेता संजय राउत ने एक लेख लिखा है. 

अपने इस लेख में संजय राउत ने लिखा कि केंद्र सरकार के हिंदी सख्ती कानून से महाराष्ट्र के लिए एकमात्र महत्वपूर्ण बात यह हुई कि मराठी अस्मिता के लिए सभी मराठी माणुस एकजुट हो गए और मराठी लोगों की जिद के कारण ठाकरे बंधु उद्धव और राज एक साथ एक मंच पर आ गए. फडणवीस सरकार को महाराष्ट्र में हिंदी अनिवार्यता आदेश को रद्द करना पड़ा. इसके कारण 5 जुलाई को मोर्चे का रुपांतर मराठी विजय दिवस में हो गया. दोनों ठाकरे भाइयों की मौजूदगी में एक शानदार विजय समारोह संपन्न हुआ.

यह तस्वीर महाराष्ट्र और मराठी लोगों के भविष्य के लिए आशादायी है. हिंदी भाषा की अनिवार्यता के खिलाफ महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में ‘भाषा युद्ध' छिड़ गया. दक्षिणी राज्य तो ‘करो या मरो' के आक्रोश में हिंदी के खिलाफ खड़े हो गए. महाराष्ट्र ने विरोध शुरू कर दिया, लेकिन इस मुद्दे पर ‘ठाकरे' एक साथ आकर मराठी लोगों का नेतृत्व कर रहे हैं, इस खबर के कारण ही सरकार पीछे हट गई, यह महत्वपूर्ण है.

मराठी माणुस एकजुट हो जाएं और उनका नेतृत्व ‘ठाकरे' करें तो क्या हो सकता है, यह इस दौरान दिखाई दिया. भारतीय जनता पार्टी की गलत महत्वाकांक्षाओं को रोकने के लिए उद्धव और राज को एक साथ आना चाहिए. अगर वे एक साथ नहीं आए तो महाराष्ट्र को बहुत बड़ा नुकसान होगा, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो पाएगी, ऐसी भावना बढ़ती गई. नारायण राणे, एकनाथ शिंदे और भाजपा के लोग ठाकरे के एक साथ आने का मजाक उड़ाते रहे, लेकिन एकनाथ शिंदे जैसे लोगों ने भाजपा की चाटुकारिता नीति को स्वीकार कर मराठी लोगों की एकता को तोड़ दिया.

भाजपा के दिल्ली के नेताओं के मुंबई में आर्थिक हितों की रक्षा के लिए भाजपा ने ‘शिवसेना' को तोड़ दिया. मराठी लोगों को आपस में लड़ाने का उद्योग शुरू कर दिया. छत्रपति शिवराय ने ‘अंग्रेजों' को रंगदारी देने वाले सूरत के व्यापारी वर्ग पर हमला करके इस अंग्रेज-प्रेमी व्यापारी वर्ग को लूट लिया. इसके बदले में मुंबई को लूटना और शिवराय के महाराष्ट्र से बदला लेना ही मोदी-शाह की आंतरिक नीति है. महाराष्ट्र का गौरव माने जाने वाले सभी सरकारी कार्यालय मुंबई से गुजरात स्थानांतरित कर दिए गए हैं. इनमें डायमंड बाजार, एयर इंडिया आदि शामिल हैं. 

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