- सुरेश कलमाड़ी के भ्रष्टाचार आरोपों के बाद पुणे की सत्ता अजित पवार के हाथों में समा गई थी
- २०१७ में देवेंद्र फडणवीस की रणनीति से बीजेपी ने पुणे और पिंपरी में भारी जीत हासिल कर राजनीतिक परिदृश्य बदला था
- इस बार पुणे महापालिका चुनाव में अजित पवार महायुति में सबसे बड़े खिलाड़ी हैं
पुणे की राजनीति का एक दौर था जब सुरेश कलमाड़ी के बिना पत्ता नहीं हिलता था और कांग्रेस अभेद्य थी. यह पुणे की राजनीति का वह सुनहरा और दबदबे वाला दौर था जब कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरेश कलमाड़ी जो पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष रहे उनका शहर पर एकछत्र राज था. उस समय पुणे की सत्ता की चाबी उन्हीं के पास होती थी और विकास से लेकर राजनीति तक. ये युग तब खत्म हुआ जब साल 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले में उनका नाम आया और भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते कांग्रेस ने उन्हें किनारे कर दिया, जिससे पुणे की कमान पूरी तरह अजित पवार के हाथों में चली गई! अजित पवार ने पुणे की कमान संभाली और देखते ही देखते एनसीपी पुणे और पिंपरी दोनों जगह पवार का पॉवर हाउस बनती गईं.लेकिन साल 2017 में देवेंद्र फडणवीस की माइक्रो-प्लानिंग ने पासा पलट दिया. बीजेपी ने पुणे में 98 और पिंपरी में 77 सीटें जीतकर दशकों पुराने वर्चस्व को मटियामेट कर दिया.
मुरलीधर मोहोल जो अब केंद्र में मंत्री हैं उनके मेयर काल में बीजेपी ने यहां विकास का ऐसा मॉडल रखा कि वह आज सत्ता के मुख्य दावेदार हैं.पुणे महापालिका की 165 सीटों पर इस बार सबसे बड़ी हाईलाइट सिंबल है. महायुति में शामिल अजित पवार यहां सबसे बड़े खिलाड़ी बनकर उभर रहे हैं, उन्हें करीब 125 सीटें मिलने की चर्चा है. वहीं शरद पवार की एनसीपी को महज 40 सीटों पर सिमटना पड़ सकता है, सबसे दिलचस्प बात यह है कि उम्मीदवारों को किसके चुनाव चिन्ह पर उतारा जाए, इसे लेकर जबरदस्त खींचतान है.
अब जब अजित पवार और बीजेपी सरकार में साथ हैं, तब भी निगम की सत्ता के लिए दोनों आमने-सामने हैं। पिंपरी में कांग्रेस और उद्धव गुट ने अकेले लड़ने का फैसला किया है, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. यहां एमएनएस का कोई खास वजूद नहीं है, लेकिन वंचित बहुजन अघाड़ी और आरपीआई बड़े दलों का खेल बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. इस चुनाव की सबसे बड़ी चर्चा यह है कि अजित पवार को सबसे ज्यादा सीटें दी जा रही हैं, क्योंकि स्थानीय स्तर पर उनका कैडर अभी भी मजबूत है। लेकिन बीजेपी अपने 105 सीटों 2017 का प्रभाव वाले रिकॉर्ड को नहीं भूलना चाहती.
पुणे में एकनाथ शिंदे की शिवसेना 125 सीटों पर उतरी है
पुणे और पिंपरी की जंग इस बार केवल नालों और सड़कों की नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के भविष्य के 'पॉवर सेंटर' पर कब्जे की है. अमित शाह का पुणे में रुकना और फडणवीस की सक्रियता यह बताने के लिए काफी है कि बीजेपी इस 'गढ़' को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती. पुणे और पिंपरी-चिंचवड को पवार परिवार और राष्ट्रवादी कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है.सत्ता के विभाजन को रोकने और अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए दोनों गुटों ने मिलकर चुनाव लड़ने पर सहमति जताई है.ये चुनाव दोनों पार्टियाँ अपने-अपने चिन्हों यानी 'तुतारी' (शरद पवार गुट) और 'घड़ी' (अजित पवार गुट) पर लड़ेंगी, लेकिन एक गठबंधन के तौर पर मैदान में उतरेंगी.
लोकसभा और विधानसभा चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ने के बाद, स्थानीय स्तर पर दोनों गुटों का एक साथ आना महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा मोड़ माना जा रहा है.हाल के वर्षों में एनसीपी के भीतर हुए विभाजन के बाद यह पहला मौका है जब अजित पवार और शरद पवार गुट किसी बड़े चुनाव में साथ आने की बात सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं.पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ अक्सर एक साथ जुड़वां शहर कहे जाते हैं, लेकिन प्रशासन, भूगोल और अर्थव्यवस्था के मामले में ये दोनों अलग और महत्वपूर्ण हैं.
पिंपरी-चिंचवड़ नगर निगम PCMC
ये पुणे के उत्तर-पश्चिम में स्थित एक नियोजित औद्योगिक शहर है। इसका प्रशासन एक अलग नगर निगम PCMC द्वारा चलाया जाता है. ये इलाका पुणे शहर की सीमा के बाहर है लेकिन उससे पूरी तरह सटा हुआ है.इन दोनों नगर निगमों पर शरद पवार और अजित पवार का अच्छा प्रभाव रहा है. अजित पवार को विशेष रूप से पिंपरी-चिंचवड़ के विकास का श्रेय दिया जाता है.जो पार्टी पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ की नगर पालिकाओं पर कब्जा करती है, उसका पश्चिम महाराष्ट्र की राजनीति पर गहरा नियंत्रण माना जाता है. यहां का बजट कई छोटे राज्यों के बजट से भी बड़ा होता है, इसलिए यहाँ की सत्ता पवार के लिए बहुत मायने रखती है.अजित पवार का शरद पवार के साथ आना और पुणे-मुंबई में 'ठाकरे ब्रदर्स' संग कांग्रेस का नया गठबंधन, महाराष्ट्र की सत्ता के समीकरणों को बदलकर एक बड़े भविष्य के राजनीतिक प्रयोग की नींव रख रहा है.
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