पुणे में दरगाह के नीचे मिला सुरंग, मंदिर के दावे से विवाद, NDTV की पड़ताल में सामने आई ये कहानी

पुणे के मंचर शहर के चावड़ी चौक इलाके में एक दरगाह के इस तरह के निर्माण को लेकर पिछले दो-तीन दिनों से चल रहे विवाद के कारण तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है. प्रशासन ने पूरे शहर में भारी पुलिस बल तैनात किया है. दरगाह इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया है.

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पुणे के मंचर में दरगाह के नीचे सुरंग मिलने से माहौल बिगड़ गया है.
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  • पुणे के मंचर इलाके की दरगाह के मरम्मत के दौरान नीचे से सुरंग का ढांचा मिलने का विवाद शुरू हुआ है.
  • दरगाह ट्रस्ट के सदस्यों का कहना है कि यह कोई सुरंग नहीं बल्कि सूफी संत की कब्र है और विवाद बेबुनियाद है.
  • विवाद के बाद मुस्लिम पक्ष ने प्रशासन की रोक के बावजूद रात में मरम्मत कार्य शुरू किया, जिससे तनाव और बढ़ गया.
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पुणे:

पुणे के मंचर इलाके में मौजूद एक दरगाह के नीचे सुरंग मिलने से विवाद शुरू हो गया है. इस घटना के बाद हिंदू-मुस्लिम पक्ष आमने-सामने आ गए हैं. हिंदू संगठनों का दावा है कि यह कब्र नहीं, मंदिर है. दरगाह के मरम्मत कार्य के दौरान सामने के दो खंभे गिरे, तो नीचे से कोई "कब्र" नहीं, बल्कि एक प्राचीन "देवली" (एक छोटा हिंदू मंदिर/ shrine) का ढांचा बाहर आया है. हमारे बुजुर्ग पहले से कहते थे कि उस स्थान पर एक मंदिर था.

दरगाह ट्रस्ट के सदस्य बोले- यह सुरंग नहीं, कब्र है

जबकि दरगाह ट्रस्ट सदस्य और राजू इनामदार का कहना है, “यह सुरंग नहीं, कब्र है. जिसे "सुरंग" कहा जा रहा है, वह असल में एक सूफी संत (मोहम्मद मदनी साहब) की "कब्र" है. यह मस्जिद नहीं, बल्कि 400 साल पुरानी दरगाह है. सुरंग बताकर विवाद खड़ा किया जा रहा है, असल में एक कब्र है, जिसे बारिश के कारण नुकसान पहुँचा.

यह दरगाह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है. यहाँ स्थानीय हिंदू भी मन्नत माँगते हैं और मुहर्रम के दौरान अपने नवजात बच्चों के कान छिदवाने के लिए यहाँ लाते हैं.”

विवाद कैसे शुरू हुआ?

हिंदू संगठनों के मुताबिक जब ये हिस्सा दिखा, तो हिंदू कार्यकर्ता वहां गए और उन्होंने मुस्लिम पक्ष से मलबा हटाकर उसे दिखाने की मांग की लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इसे अपनी "आस्था का प्रश्न" बताकर ऐसा करने से इनकार कर दिया, जिससे विवाद बढ़ गया.

प्रशासन की रोक के बाद रात में काम कराने ले गहराया शक

प्रशासनिक बैठक में केवल अस्थायी स्टे लगाने का निर्णय हुआ था, लेकिन मुस्लिम पक्ष ने रात में ही वहाँ नए सीमेंट-कंक्रीट के खंभे बनाने का काम शुरू कर दिया, ताकि मंदिर के ढांचे को हमेशा के लिए ढक दिया जाए. हिंदू कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध कर रात में ही काम रुकवा दिया, जिसके बाद प्रशासन ने धारा 144 लगा दी है.

सातवाहन काल से जोड़ रहे हिंदू पक्ष

पास में ही स्थित एक कुएं को दिखाते हुए दावा किया गया है कि यह पूरा मंचर क्षेत्र 2000 साल पुराने सातवाहन काल का है और यह कुआं भी उसी का प्रतीक है. दावा है कि दरगाह के नीचे 100% हिंदू मंदिर का ढांचा ही है और वक्फ बोर्ड ने इस तरह की सैकड़ों एकड़ जमीन पर अतिक्रमण किया है.

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संगठनों ने कहा है कि वे सोमवार को अदालत खुलने पर कोर्ट में याचिका दायर कर इस चल रहे काम पर स्टे ऑर्डर लेंगे और पुरातत्व विभाग (Archaeological Department) से जांच की मांग करेंगे.

अब जानिए NDTV की पड़ताल में क्या बात सामने आई?

पुणे जिले के आंबेगांव तहसील में स्थित मंचर का यह प्राचीन कस्बा धार्मिक विवाद की वजह से सुर्खियों में है. लेकिन विवाद सिर्फ धार्मिक भावनाओं का टकराव नहीं है, बल्कि इतिहास, परंपरा और सामाजिक सौहार्द की जटिल परतों से जुड़ा हुआ है.

दरगाह का इतिहास और परंपरा

चादर चढ़ाने का अधिकार हिंदू परिवार के पास

यह जगह सदियों से सूफी संत की याद में बनी हुई है. स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चलता है कि यहां मुहर्रम, उर्स और पंजों की शोभायात्राएं सालों से चलती आ रही हैं. सबसे दिलचस्प बात यह कि इस दरगाह पर चादर चढ़ाने का अधिकार गांव के महाजन उपनाम वाले एक हिंदू परिवार के पास है.

यह परंपरा हिंदू-मुस्लिम एकता की एक जीवंत मिसाल है, जो आज के विवाद में हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपनी साझा विरासत को क्यों खो रहे हैं?

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70 लाख रुपए से सौंदर्यीकरण का शुरू हुआ था काम

नगर पंचायत ने हाल ही में दरगाह के सौंदर्यीकरण के लिए 70 लाख रुपये मंजूर किए थे, और इसी काम के दौरान दीवार का बड़ा हिस्सा गिर गया. इस घटना के बाद हिंदू संगठनों ने दावा किया कि नीचे मंदिर जैसी संरचना है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे सिर्फ दरगाह और कब्र मानता है.

इसकी असल सच्चाई तो वैज्ञानिक जांच से आएगी. फिलहाल शिलालेख और ऐतिहासिक संदर्भों की बात करें तो मंचर निजामशाही काल में एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था. यहां की पांडवकालीन बावड़ी और 1344-45 ई. का शिलालेख इस कस्बे की प्राचीनता को प्रमाणित करता है.

शिलालेख में “मणीचर” नाम से गांव का उल्लेख है, जिसमें विश्वकर्मा द्वारा बसाए गए नगर, लादिदेव और पाटील पद की परंपरा का वर्णन है. यह दर्शाता है कि 14वीं शताब्दी से ही यहां एक व्यवस्थित समाज और धार्मिक परंपराएं मौजूद थीं. ऐसे ऐतिहासिक प्रमाणों को विवाद में घसीटने के बजाय, उन्हें संरक्षण की जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी जड़ों से जुड़ सकें.

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मंचर में पहले भी धार्मिक तनाव के मामले देखे गए हैं, जैसे वक्फ बोर्ड की जमीन पर विवाद या गणेशोत्सव और मोहर्रम के दौरान झड़पें. इसी वजह से इसे संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है. लेकिन साथ ही, मुझे यहां की सौहार्दपूर्ण मिसालें भी प्रेरित करती हैं – महाजन परिवार की चादर परंपरा, दोनों समुदायों का मिलकर त्योहार मनाना और व्यापारिक सहजीवन.

यही नहीं, बजरंग दल का उदय भी यहीं से हुआ था, जहां चंद्रशेखर बाणखेले ने संगठन खड़ा किया और “धर्मवीर” की उपाधि पाई. हाल के वर्षों में हिंदू संगठनों की बढ़ती सक्रियता को देखते हुए, मुझे लगता है कि संवाद की कमी इस विवाद को और भड़का रही है.

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फिलहाल इस मामले में आगे की सही दिशा यह है कि विवाद को अदालत पर छोड़कर समाज को शांत रखना जरूरी है.

दरगाह या मंदिर, फसैला अदालत करेगी

निष्कर्ष के तौर पर मंचर दरगाह विवाद केवल धार्मिक संघर्ष नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा इतिहास और साझी परंपराएं हैं. प्राचीन शिलालेख, सूफी संत की विरासत, चादर चढ़ाने की अनोखी रस्म और कस्बे का व्यापारिक-सांस्कृतिक महत्व इसे और संवेदनशील बनाता है.

दरगाह या मंदिर? इसका फैसला अदालत करेगी, लेकिन सदियों पुराने सौहार्द को बचाना प्रशासन और समाज की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. हमें याद रखना चाहिए कि विविधता हमारी ताकत है, न कि कमजोरी.

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