- महाराष्ट्र में 288 नगर परिषदों और नगर पंचायतों के चुनाव में औसतन 47.04 प्रतिशत मतदान शांतिपूर्ण तरीके से हुआ
- अकोला जिले में मतदान केंद्र पर ईवीएम मशीन बंद होने और उम्मीदवार को धमकाने के गंभीर आरोप लगे हैं
- भाजपा, कांग्रेस, राकांपा, शिवसेना और निर्दलीय उम्मीदवारों ने इन चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंकी है
महाराष्ट्र में नगर परिषदों और नगर पंचायत चुनाव अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुके हैं. शनिवार को जिन 288 शहरी निकायों में मतदान हुआ, उनके नतीजे रविवार को सामने आएंगे. ये चुनाव केवल स्थानीय प्रशासन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इन्हें आने वाले नगर निगम और विधानसभा चुनावों की सियासी बुनियाद के तौर पर देखा जा रहा है. महीनों की देरी, कानूनी अड़चनों और राजनीतिक अस्थिरता के बाद हुए इन चुनावों के ज़रिये यह साफ़ होगा कि शहरी और अर्ध-शहरी महाराष्ट्र फिलहाल सत्ता के साथ हैं या विपक्ष के पुनर्गठन को मौका देने के मूड में. शनिवार को दोपहर साढ़े तीन बजे तक औसतन 47.04 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया. अधिकांश जगहों पर मतदान शांतिपूर्ण रहा, लेकिन कई केंद्रों से तकनीकी खामियों और प्रशासनिक चूकों के आरोप भी सामने आए. चुनाव आयोग की ओर से पर्याप्त सुरक्षा और व्यवस्थाओं का दावा किया गया, फिर भी कुछ घटनाओं ने मतदान प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए.
अकोला अलर्ट - मशीन बंद, उम्मीदवार को धमकी के आरोप
अकोला जिले के बालापुर स्थित बहिणाबाई खोटरे कन्या विद्यालय के मतदान केंद्र पर गंभीर आरोप लगाए गए. आरोप है कि बिना किसी पूर्व सूचना के ईवीएम मशीन बंद कर दी गई, जिससे मतदान के लिए पहुंचे नागरिकों को वापस लौटना पड़ा. इस दौरान एक उम्मीदवार को मतदान से रोकने और धमकाने का भी दावा किया गया. मौके पर उपविभागीय पुलिस अधिकारी गजानन पडघन ने पहुंचकर स्थिति को नियंत्रित किया. हालांकि, इस घटना ने चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता को लेकर राजनीतिक हलकों में बहस तेज़ कर दी है.
288 निकाय, हज़ारों उम्मीदवार: सियासी ताकत की असली परीक्षा
इन चुनावों में 288 शहरी निकायों - नगर परिषद और नगर पंचायत के लिए हज़ारों उम्मीदवार मैदान में हैं. भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दोनों गुट, शिवसेना (शिंदे गुट और ठाकरे गुट), महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना और बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. कई स्थानों पर सीधा पार्टी बनाम पार्टी मुकाबला है, तो कई जगह स्थानीय गुटों और प्रभावशाली चेहरों की लड़ाई निर्णायक बनती दिख रही है.
पार्टी से आगे गुटबाज़ी! लोकल फैक्टर बनाम हाईकमान
कई नगर परिषदों में यह चुनाव पार्टी के सिंबल से ज़्यादा स्थानीय प्रभाव और जातीय-सामाजिक समीकरणों पर लड़ा गया. पश्चिम महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और विदर्भ के कई इलाकों में पारंपरिक गुटों की प्रतिष्ठा दांव पर है. यही वजह है कि इन चुनावों को राजनीतिक दल अपने-अपने संगठनात्मक ढांचे की मजबूती और ज़मीनी पकड़ के टेस्ट के तौर पर देख रहे हैं.
महायुति का पावर टेस्ट
सत्तारूढ़ महायुति जिसमें भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और राकांपा (अजित पवार गुट) शामिल हैं, के लिए ये चुनाव सत्ता में रहते हुए पहला बड़ा शहरी इम्तिहान हैं. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुळे पहले ही सार्वजनिक तौर पर दावा कर चुके हैं कि पार्टी सबसे ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़कर सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरेगी. महायुति के लिए नगर परिषदों में मज़बूत जीत ‘डबल इंजन सरकार' के नैरेटिव को मज़बूती देगी, जबकि कमजोर प्रदर्शन को सत्ता विरोधी संकेत के तौर पर पढ़ा जाएगा.
MVA की सियासी अग्निपरीक्षा. टूट के बाद पहली असली ज़मीन जांच
महाविकास आघाड़ी - कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और शरद पवार गुटके लिए ये चुनाव राजनीतिक अस्तित्व की कसौटी हैं. शिवसेना और राकांपा में हुई टूट के बाद यह पहला मौका है जब गठबंधन शहरी मतदाता के सामने अपनी ताकत साबित करेगा. अगर MVA इन चुनावों में प्रभावी प्रदर्शन करती है, तो यह संदेश जाएगा कि उसका पारंपरिक वोटबैंक अब भी बरकरार है. खराब नतीजे आने वाले महानगरपालिका चुनावों से पहले गठबंधन की रणनीति और नेतृत्व दोनों पर दबाव बढ़ा सकते हैं.
स्थानीय निकाय, बड़ा सियासी असर
नगर परिषद और नगर पंचायतें सीधे तौर पर नागरिक जीवन से जुड़ी होती हैं. पानी की आपूर्ति, सड़कें, सफ़ाई, स्वास्थ्य सेवाएं और स्थानीय विकास. इन संस्थाओं पर नियंत्रण का मतलब सिर्फ प्रशासन नहीं, बल्कि अगले पांच वर्षों तक ज़मीनी राजनीति को दिशा देना भी है. यही वजह है कि राजनीतिक दल इन नतीजों को भविष्य की चुनावी रणनीति का आधार मानते हैं.
सिर्फ़ सीट नहीं, ट्रेंड की लड़ाई
रविवार को होने वाली मतगणना में सिर्फ यह नहीं देखा जाएगा कि किसे कितनी सीटें मिलीं, बल्कि यह भी परखा जाएगा कि शहरी इलाकों में सत्ता के प्रति रुझान क्या है. किन क्षेत्रों में भाजपा का विस्तार हुआ, कहां MVA ने वापसी की और किन इलाकों में स्थानीय गुटों ने पार्टियों को पीछे छोड़ा ये सभी संकेत आने वाले चुनावों की तस्वीर साफ़ करेंगे.
नगर से महानगर तक: कल का फैसला, कल की रणनीति
नगर परिषद और नगर पंचायतों से निकलने वाला जनादेश सीधे तौर पर मुंबई, पुणे, नागपुर और अन्य महानगरपालिकाओं के चुनावी गणित को प्रभावित करेगा. राजनीतिक दल इन्हीं नतीजों के आधार पर गठबंधन, नेतृत्व और उम्मीदवार तय करने की दिशा में कदम बढ़ाएंगे.कुल मिलाकर, ये नतीजे यह तय करेंगे कि महाराष्ट्र की शहरी राजनीति फिलहाल महायुति के पक्ष में स्थिर होती है या महाविकास आघाड़ी को पुनर्जीवन का मौका मिलता है. रविवार को सामने आने वाला जनादेश केवल स्थानीय सत्ता का फैसला नहीं होगा. यह आने वाले बड़े सियासी मुकाबलों का ट्रेलर साबित हो सकता है.














