ना गाद निकाली, ना मशीनों का इस्तेमाल, फिर भी BMC से कैसे वसूले 65 करोड़? मीठी नदी घोटाला मामले में बड़ा खुलासा

ईओडब्ल्यू की जांच में पता चला है कि मीठी नदी से गाद हटाने की बजाय, ठेकेदारों ने निजी बिल्डरों का मलबा उठाकर ट्रकों में भरा और ऊपर से पतली परत में गाद डाल दी ताकि यह असली गाद जैसा लगे. इस धोखाधड़ी के तहत फर्जी बिल बनाकर बीएमसी से करोड़ों रुपये की वसूली की गई.

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मीठी नदी सफाई परियोजना मामले में चौंकाने वाले खुलासे.
मुंबई:

मुंबई की बहुचर्चित मीठी नदी सफाई परियोजना में हुए 65 करोड़ रुपये के घोटाले (Mumbai Mithi River Cleaning Scam) की जांच में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं.  इस घोटाले का कथित मास्टरमाइंड बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) के इंजीनियर प्रशांत रामुगड़े को बताया जा रहा है. जिसने कथित रूप से ठेकेदार भूपेन्द्र पुरोहित की कंपनी ‘ग्रुप वन सॉल्यूशंस' में अपने करीबी सहयोगी सारिका कामदार के नाम से भागीदारी की थी. ये सभी खुलासे ईओडब्ल्यू (EOW)की जांच में हुए हैं.  

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ऐसे मिला मशीनरी के रखरखाव का ठेका

सूत्रों के मुताबिक, पुरोहित ने अपनी पत्नी किरण को कंपनी में साझेदार बनाया था, जबकि रामुगड़े ने कामदार के नाम से हिस्सेदारी ली. हालांकि, पर्दे के पीछे दोनों,  रामुगड़े और पुरोहित ही कंपनी को चला रहे थे. यह कंपनी मिट्ठी नदी की सफाई के लिए इस्तेमाल होने वाली मशीनरी के रखरखाव का ठेका हासिल करने में सफल रही, जिसे खुद रामुगड़े ने मंजूरी दी थी. इस ठेके के जरिए दोनों पक्षों ने बीएमसी से भारी वित्तीय लाभ उठाया. 

ठेकेदारों ने कैसे की धांधली

ईओडब्ल्यू की जांच में पता चला है कि मीठी नदी से गाद हटाने की बजाय, ठेकेदारों ने निजी बिल्डरों का मलबा उठाकर ट्रकों में भरा और ऊपर से पतली परत में गाद डाल दी ताकि यह असली गाद जैसा प्रतीत हो. इस धोखाधड़ी के तहत फर्जी बिल बनाकर बीएमसी से करोड़ों रुपये की वसूली की गई. अधिकारियों का मानना है कि वास्तव में कोई भी गाद हटाने का कार्य नहीं किया गया.

टेंडर की शर्तों से कंपनी को मिला फायदा

जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि रामुगड़े ने बार-बार बीएमसी के ठेके भूपेन्द्र पुरोहित की चार कंपनियों, त्रिदेव, तनिशा, एमबी ब्रदर्स और डीबी को दिए. आरोप है कि इन कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए टेंडर की शर्तें ही इस तरह से बनाई गईं कि केवल पुरोहित की कंपनियां ही पात्र ठहरें.

मशीन इस्तेमाल ही नहीं हुई फिर कैसे मिला भुगतान

फरवरी 2021 में बीएमसी ने मीठी नदी की सफाई के लिए चार टेंडर निकाले थे, जिनमें कम से कम आठ मशीनों की जरूरत थी. मगर जून 2021 तक एक भी मशीन मौके पर नहीं पहुंची. यही स्थिति फरवरी 2022 में भी रही. 12 मशीनों की जरूरत थी, लेकिन कोई इस्तेमाल नहीं की गई. फिर भी संबंधित कंपनियों को लगातार भुगतान किया जाता रहा.

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ठेका आवंटन प्रक्रिया में साजिश का खुलासा

जांच में यह भी सामने आया है कि ‘मैटप्रॉप' नामक एक कंपनी ने जानबूझकर पुरोहित की फर्म को मशीनें बेचीं, ताकि वह टेंडर की पात्रता पूरी कर सके और ठेका हासिल कर सके. इससे यह स्पष्ट होता है कि ठेका आवंटन प्रक्रिया में गहरी साजिश रची गई थी. ईओडब्ल्यू की जांच अभी भी जारी है.
 

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