- बॉम्बे हाईकोर्ट ने गड्ढों और खुले मैनहोल से होने वाली दुर्घटनाओं पर गंभीर नाराजगी जताई है.
- अदालत ने ठेकेदारों और अधिकारियों को नागरिकों की मौतों और चोटों के लिए जिम्मेदार ठहराने की जरूरत जोर दिया.
- अदालत ने मुंबई समेत महाराष्ट्र की सड़कों की खराब हालत और बार-बार गड्ढों का बनना सार्वजनिक धन की बर्बादी कहा.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस बात पर कड़ी नाराजगी जताई है कि राज्य भर के नगर निकाय गड्ढों और खुले मैनहोलों से होने वाली दुर्घटनाओं को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. अदालत ने कहा, अब समय आ गया है कि नागरिकों की मौतों और चोटों के लिए ठेकेदारों और अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया जाए. अधिकारी इस समस्या के समाधान के लिए गंभीर नहीं हैं. अदालत ने कहा कि जब तक अधिकारियों को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा, तब तक स्थिति नहीं बदलेगी.
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सरकार और नगर निगमों को कड़ी फटकार
मुंबई समेत महाराष्ट्र की सड़कों पर गड्ढों की वजह से होने वाली मौतों और हादसों पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और नगर निगमों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि पिछले दस सालों से जारी आदेशों के बावजूद हालात जस के तस हैं. हर साल मॉनसून आते ही वही कहानी दोहराई जाती है, मानो किसी को फर्क ही नहीं पड़ता.
बॉम्बे हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-देरे और न्यायमूर्ति संदीश डी. पाटिल की खंडपीठ ने सोमवार (13 अक्टूबर 2025) को पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) नंबर 71/2013 पर अपना आदेश सुनाया. यह वही जनहित याचिका है, जिसे 2013 में तत्कालीन न्यायमूर्ति जी.एस. पटेल के एक पत्र के आधार पर सुओ मोटो दर्ज किया गया था.
गड्ढों से लोगों की मौतें और गंभीर चोटें अब भी जारी
कोर्ट ने कहा कि मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य शहरों में सड़कों की हालत लगातार खराब बनी हुई है. “यह एक क्लासिक केस है जहां हर साल अदालत को मानसून के दौरान सड़कों की दुर्दशा पर स्वतः संज्ञान लेना पड़ता है, क्योंकि गड्ढों से लोगों की मौतें और गंभीर चोटें अब भी जारी हैं.”
बॉम्बे हाई कोर्ट ने क्या कहा?
- कोर्ट ने कहा कि सड़कें और फुटपाथ ठीक रखना नागरिकों का मौलिक अधिकार है.
- सभी नगर निगमों और एजेंसियों (MCGM, MMRDA, MSRDC, CIDCO, BPT आदि) को निर्देश दिया गया कि वे सड़कों की गुणवत्ता बनाए रखें और गड्ढे वैज्ञानिक तरीके से भरें.
- सड़कों पर खुदाई या मरम्मत कार्य के दौरान संबंधित एजेंसी का नाम, कार्य की समयसीमा और संपर्क विवरण स्पष्ट रूप से बोर्ड पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए.
- नागरिकों के लिए ऑनलाइन, टोल-फ्री और मोबाइल ऐप के जरिए शिकायत करने की व्यवस्था अनिवार्य करने के निर्देश फिर दोहराए गए.
- प्रत्येक शिकायत पर कार्रवाई की स्थिति तीन हफ्तों के भीतर वेबसाइट पर अपडेट करनी होगी.
- हर साल भारी रकम खर्च होने के बावजूद सड़कों पर वही गड्ढे दोबारा बन जाते हैं. यह सार्वजनिक धन की बर्बादी है और नागरिकों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन है.
- अगर किसी अधिकारी की लापरवाही से हादसा होता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिए.
हर मॉनसून में सड़कों की वही दुर्दशा
2013 में एक दोपहिया सवार की गड्ढे की दुर्घटना में मौत के बाद यह मामला सामने आया था. तब से अब तक बॉम्बे हाईकोर्ट ने कई बार आदेश दिए हैं. कोर्ट ने शिकायत तंत्र शुरू करने, ठेकेदारों पर जवाबदेही तय करने और सड़कों की गुणवत्ता जांचने के निर्देश दिए हैं. फिर भी, हर मॉनसून में सड़कों की वही दुर्दशा दोहराई जाती है.