नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षाबलों को अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी मिली है. छत्तीसगढ़ में आतंक का पर्याय बन चुके कुख्यात माओवादी कमांडर मादवी हिडमा के मारे जाने की खबर है. 43 वर्षीय हिडमा लंबे समय से सुरक्षाबलों के लिए सिरदर्द बना हुआ था और कई बड़े हमलों का मास्टरमाइंड था. इस मुठभेड़ में हिडमा के साथ उसकी दूसरी पत्नी राजे उर्फ़ राजक्का के भी मारे जाने की खबर है. आइए जानते हैं नक्सली कमांडर मादवी हिडमा से जुड़ी 10 बड़ी बातें.
- हिडमा का जन्म 1981 में छत्तीसगढ़ के सुकमा के पुवर्ती इलाके में हुआ था. वह सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति का सबसे कम उम्र का सदस्य था और बस्तर क्षेत्र से केंद्रीय समिति में एकमात्र आदिवासी सदस्य भी था.
- उस पर सुरक्षा एजेंसियों ने करीब एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित किया था. वह कम से कम 26 सशस्त्र हमलों के लिए ज़िम्मेदार था. उसके कुछ सबसे खूनी वारदातों में शामिल हैं.
- संतोष के नाम से भी कुख्यात मादवी हिडमा ने छत्तीसगढ़ में कई खूनी वारदातों को अंजाम दिया था. वह पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) बटालियन नंबर 1 का प्रमुख था, जिसे माओवादियों की सबसे घातक हमलावर इकाई माना जाता है.
- हिडमा सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति का सबसे कम उम्र का सदस्य रहा था. वह भाकपा (माओवादी) केंद्रीय समिति में शामिल बस्तर क्षेत्र का एकमात्र आदिवासी कमांडर था. भारत सरकार ने इस कुख्यात नक्सली पर 50 लाख रुपये का बड़ा इनाम घोषित कर रखा था.
हिडमा की मौत छत्तीसगढ़ में नक्सली नेटवर्क को एक बड़ा झटका देगी. वह एक दुर्दांत कमांडर था, जिसने अपनी बर्बर रणनीति से सुरक्षाबलों को दशकों तक चुनौती दी. उसकी बटालियन नंबर 1 बस्तर क्षेत्र में सबसे अधिक सक्रिय थी और घात लगाकर हमला करने में माहिर थी.
- हिडमा 2013 के कुख्यात झीरम घाटी नरसंहार (दरभा घाटी) का मास्टरमाइंड था, जिसमें 27 लोग (शीर्ष कांग्रेस नेताओं सहित) मारे गए थे.
- वह 2010 के उस घातक दंतेवाड़ा हमले के पीछे भी था, जिसमें 76 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे.2017 में हुए सुकमा घात हमले की साजिश भी उसने ही रची थी.
- वह 2021 के उस बड़े सुकमा-बीजापुर घात हमले में भी शामिल था, जिसमें 22 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे. हिडमा की मौत सुरक्षाबलों के लिए एक बड़ी सफलता है और इससे बस्तर क्षेत्र में माओवादी गतिविधियों पर लगाम लगने की उम्मीद है.
- हिडमा का जन्म दक्षिण सुकमा के पुवार्ती गांव में हुआ था और वो बीजापुर में एक स्थानीय जनजाति से संबंध रखता था. वो माओवादियों की पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PGLA) बटालियन-1 का हेड था. इसके अलावा माओवादी स्पेशल जोनल कमेटी (DKSZ) का भी सदस्य था. इतनी ही नहीं सीपीआई की 21 सदस्यीय सेंट्रल कमेटी का सदस्य था.
- हिडमा के मारे जाने से न केवल सुरक्षाबलों का मनोबल बढ़ेगा, बल्कि बस्तर क्षेत्र में शांति और विकास की उम्मीदें भी मजबूत होंगी. यह सफलता उन सभी शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि है, जिन्होंने नक्सली हिंसा में अपनी जान गंवाई है.
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