MP का 'खैर' कांड: लकड़ी तस्करी से आतंकी फंडिंग, अलीराजपुर में ISIS का ₹200 करोड़ी खेल

Terror Funding MP: मध्यप्रदेश के अलीराजपुर में अवैध खैर तस्करी के पीछे निकला खौफनाक आतंकी कनेक्शन. जानें कैसे ₹200 करोड़ की लकड़ी तस्करी का पैसा ISIS के पगधा मॉड्यूल तक पहुँच रहा था और ED की जांच में क्या-क्या खुलासे हुए.

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Alirajpur Khair Scam: क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद की जन्मस्थली, मध्य प्रदेश का अलीराजपुर जिला आज एक ऐसी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी जांच का केंद्र बन चुका है, जिसने सबके होश उड़ा दिए हैं. जिसे पहले महज एक "अवैध लकड़ी तस्करी" का मामला मानकर नजरअंदाज किया गया था, वह अब देश की सबसे बड़ी एजेंसियों—ED, NIA और ATS—की फाइलों में एक बड़े 'टेरर फंडिंग' मॉड्यूल के रूप में दर्ज हो चुका है. सवाल यह है कि क्या आदिवासियों के इस अंचल में व्यवस्थागत चुप्पी के सहारे सालों तक ₹200 करोड़ का आतंकी नेटवर्क फलता-फूलता रहा?

ताहिर का ₹200 करोड़ी 'खैर' साम्राज्य

जांच एजेंसियों के मुताबिक, इस पूरे रैकेट का असली सूत्रधार गुजरात के गोधरा का निवासी मोहन ताहिर है. ताहिर पर पिछले तीन वर्षों में करीब ₹200 करोड़ की खैर (कैथ) लकड़ी की अवैध कटाई और तस्करी का आरोप है. जानकारों की मानें तो बाजार में कत्था उत्पादन के लिए खैर की भारी मांग के चलते इस काले कारोबार की वास्तविक कीमत ₹700 करोड़ तक पहुंच सकती है. ताहिर ने अलीराजपुर के मालवई गांव में 'शालीमार एंटरप्राइजेज' के नाम से एक गुप्त डिपो बनाया था, जिसका प्रबंधन आरिफ (अलिफ) अली मकरानी कर रहा था. इस नेटवर्क का सिरा जून 2024 में तब खुला, जब गुजरात में अवैध खैर से भरा एक ट्रक पकड़ा गया.

ट्रक ड्राइवर ने खोला था राज

पूछताछ में चालक ने बताया कि लकड़ी अलीराजपुर के डिपो में ले जाई जा रही थी. इसी खुलासे के बाद सूरत के मंडवी वन मंडल ने संयुक्त कार्रवाई करते हुए अलीराजपुर के डिपो को सील किया. बाद में वन विभाग ने यहां से 2,000 मीट्रिक टन से अधिक (1,600+ घन मीटर) खैर लकड़ी बरामद की, जिसे कथित तौर पर वैध कारोबार की आड़ में रखा गया था. मंडवी (सूरत) के एसीएफ एच.आर. जाधव के मुताबिक “जुलाई 2024 में हमने अलीराजपुर की शालीमार एंटरप्राइजेज के लिए जा रहे एक ट्रक को पकड़ा. संयुक्त ऑपरेशन में 1,600 घन मीटर से ज्यादा, यानी 2,000 टन से अधिक लकड़ी मिली. यह नेटवर्क गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में सक्रिय था. लकड़ी हरियाणा और दिल्ली तक भेजी जा रही थी. यह खेल करीब दो साल तक चला.”

लकड़ी से आतंक तक: खौफनाक मोड़

जांच तब और भयावह हो गई, जब केंद्रीय एजेंसियों ने अलीराजपुर डिपो को कट्टरपंथी नेटवर्क से जोड़कर देखा. ATS के एक वरिष्ठ अधिकारी ने NDTV से कहा, “अलीराजपुर का डिपो और खैर लकड़ी का यह स्टॉक महाराष्ट्र के ISIS पगधा मॉड्यूल से जुड़ा हुआ है. इस अवैध कारोबार से जुटाई गई रकम का इस्तेमाल आतंकी फंडिंग में किया जा रहा था. डिपो चलाने वालों और साकिब नाचन के बीच कुछ कड़ियां सामने आई हैं, जिन पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है.”

अलिराजपुर में खैर की लकड़ियों की तस्करी का बड़ा नेटवर्क प्रदेश ही नहीं देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा है.

ED की छापेमारी: नकदी, सोना और हवाला

महज 10 दिन पहले, 11 दिसंबर 2025 को प्रवर्तन निदेशालय ने महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, झारखंड, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में 40 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की. PMLA, 2002 के तहत हुई इस कार्रवाई में ISIS-प्रेरित एक कट्टरपंथी आतंकी मॉड्यूल से जुड़े फंडिंग नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ. ED ने कार्रवाई के दौरान, ₹9.70 करोड़ नकद, ₹6.6 करोड़ का सोना और आभूषण, 25 बैंक खातों को फ्रीज़,हवाला से जुड़े दस्तावेज, डिजिटल डिवाइस, कट्टरपंथी साहित्य और संदिग्ध संपत्ति के रिकॉर्ड बरामद किए. ED अधिकारियों के अनुसार, खुफिया इनपुट्स से साफ हुआ कि यह नेटवर्क हवाला, गो-तस्करी और अवैध खैर लकड़ी व्यापार जैसे गैरकानूनी धंधों से पैसा जुटा रहा था, जिसे आतंकी गतिविधियों में झोंका जा रहा था.

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अलीराजपुर कनेक्शन और पुख्ता

अधिकारियों ने बताया कि ED की छापेमारी में सामने आए सचिन फाकले और खलील उस्मान मुल्ला दोनों आरोपी अलीराजपुर खैर कांड में भी नामजद हैं. इससे आतंकी फंडिंग का एंगल और मजबूत हो गया है. यह मनी-लॉन्ड्रिंग जांच NIA द्वारा दर्ज FIR और चार्जशीट पर आधारित है, जो IPC, UAPA और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत भर्ती, प्रशिक्षण, हथियारों की खरीद और आतंकी मॉड्यूल को फंडिंग से जुड़ी है.

डिपो मालिक फरार, हज यात्रा पर देश छोड़ा

कोर्ट के आदेश पर डिपो डी-सीलिंग के दौरान गुजरात के विशेष लोक अभियोजक ने चौंकाने वाला खुलासा किया. गुजरात के विशेष लोक अभियोजक डॉ. महेंद्र सिंह कच्छावा ने कहा, “डिपो मालिक मोहन ताहिर फरार है. इमिग्रेशन रिकॉर्ड बताते हैं कि वह हज पर भारत से गया और नवंबर 2025 तक वापस नहीं लौटा. अवैध खैर व्यापार से कमाई गई रकम राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल की गई.” उन्होंने यह भी बताया कि डिपो मैनेजर से जुड़े हवाला लेन-देन, जिनकी राशि प्रति व्यक्ति ₹4 करोड़ तक पहुंचती है, पहले ही ED को सौंपे जा चुके हैं. जांच एजेंसियां अब कानूनी खामियों की पड़ताल कर रही हैं.

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पहले सरंक्षित प्रजाति थी खैर

मध्य प्रदेश में खैर पहले संरक्षित प्रजाति थी, लेकिन 2021 के बाद इसे सूची से हटा दिया गया, जिससे परिवहन और भंडारण नियम ढीले पड़ गए. अब सवाल सीधे-सीधे हैं, गुजरात में कटी खैर लकड़ी अलीराजपुर में क्यों उतारी गई? साल और सागौन के लिए मशहूर डिपो में सिर्फ खैर ही क्यों मिली? क्या वन विभाग के अधिकारी मूक दर्शक थे या साझेदार?

डॉ. कच्छावा साफ कहते हैं, “यदि वन विभाग के अधिकारी दोषी पाए गए, तो उनके खिलाफ कार्रवाई तय है.” जैसे-जैसे वन विभाग, पुलिस, ATS, ED और संभावित रूप से NIA शिकंजा कस रहे हैं, अलीराजपुर खैर कांड अब महज अवैध कटाई का मामला नहीं रह गया है. यह अब एक खौफनाक सवाल बन चुका है, क्या जंगलों को लूटकर आतंक को पाला गया? और क्या आदिवासी मध्य प्रदेश के दिल में ₹200 करोड़ की एक छाया अर्थव्यवस्था सालों तक चुप्पी के सहारे फलती-फूलती रही?
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