79 Years of Independence: भारत आज जहां स्वाधीनता का 79 वर्ष मना रहा है, लेकिन नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के उसकेवाया और नुलकातोंग गांव में करीब 45 साल बाद आज पहली बार आज तिरंगा लहराया गया है. केंद्र और राज्य सरकार के संयुक्त ऑपरेशन का असर है कि नक्सल प्रभावित जिलों में लाल आतंक खात्मे की ओर बढ़े हैं.
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79वें स्वतंत्रता दिवस पर उसकेवाया और नुलकातोंग गांव में लोगों ने लहराया तिरंगा
रिपोर्ट के मुताबिक सुकमा के नक्सल प्रभावित उसकेवाया और नुलकातोंग गांव में आज से 45 पहले आज़ादी का जश्न जोर-शोर से मनता था, उसके बाद जिले में पसरते लाल आंतक ने पांव ने आजादी समारोह सिमटते चले गए, लेकिन 79वें स्वतंत्रता दिवस पर सुकमा के दोनों गांव क्रमशः उसकेवाया और नुलकातोंग गांव में लोगों ने जमकर तिरंगा लहराया.
45 साल तक दोनों गांव में ‘काला दिवस' के रूप में मना गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस
गौरतलब है आजादी का पर्व हो या गणतंत्र दिवस उसकेवाया और नुलकातोंग गांव में ‘काला दिवस' के रूप में गुजरते थे. स्कूलों और सरकारी भवनों पर झंडा फहराने की बात तो दूर, लोग राष्ट्रीय पर्व पर घर से बाहर निकलने से भी डरते थे. क्योंकि गोमपाड, नुलकातोंग, मरकाम पारा, दूरमा जैसे गांव नक्सली बैठकों और हथियारों की ट्रेनिंग के अड्डे हुआ करते थे.
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उसकेवाया और नलकातोंग में कैंप खोले, तब घटने लगा नक्सली संगठनों को दबाव
बताया जाता है कि बदलाव की शुरुआत अप्रैल, 2024 महीने में हुई, जब सुरक्षा बलों ने उसकेवाया और नलकातोंग में कैंप खोले. कैंप आते ही नक्सली संगठनों को दबाव इलाके में घटने लगा और लोग धीरे-धीरे खुलकर आने लगे. अब हालात ये हैं कि गांव में सड़कों का निर्माण, पेयजल योजना, स्कूल भवन और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे विकास कार्य तेज़ी से चल रहे हैं.
साल 1980 में इलाके में नक्सलियों की “जनताना सरकार” का हो गया था कब्जा
उल्लेखनीय है माओवाद ने साल 1980 में बस्तर में दस्तक दिया था. इसके बाद से अंदरूनी इलाकों में नक्सलियों की “जनताना सरकार” का कब्जा हो गया था. दशकों तक यहां 15 अगस्त और 26 जनवरी को ‘काला दिवस' मनाया जाता रहा, लेकिन आज उन इलाकों में जहां माओवादी झंडा लहराता था, अब वहां आजादी का रंग लहरा रहा है.
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नक्सल उन्मूलन मुहिम ने उसकेवाया व नलकातोंग गांव की बदल दी तस्वीर
साल 2025 में जब भारत आजादी का 79वीं सालगिरह पूरे देश में मना रहा है तो नक्सल उन्मूलन मुहिम ने उसकेवाया और नलकातोंग गांव के चेहरों पर मुस्कान और इलाके की तस्वीर बदल दी है. सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई और कैंप खुलने से उसकेवाया और नुलकातोंग गांव नक्सलवाद की जकड़न से बाहर आ चुके हैं.
विकास की राह पर निकल पड़ा है कभी नक्सलियों के गढ़ रहे दोनों गांव
रिपोर्ट कहती है कि उसकेवाया और नलकातोंग गांवों में नक्सली सालों तक अपने कानून चलाते रहे थे. पंचायत भवन, स्कूल, सरकारी योजनाएं सब बंद थीं. सड़कें टूटी हुई थीं और रात होते ही सन्नाटा छा जाता था, लेकिन अब सुरक्षा बलों के कैंप खुलने से माहौल बदल गया है. ग्रामीणों को स्वास्थ्य, राशन और शिक्षा जैसी सुविधाएं मिलने लगी हैं.
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पहले डर के साए में जी रहे ग्रामीणों ने 45 साल बाद दी तिरंगे को सलामी
ग्रामीण बोले, पहली बार आजादी का असली मतलब समझ आया. पहले डर के साए में जीते थे, तिरंगे का मतलब भी नहीं जानते थे, आज पहली बार उसे सलामी दी है. यहां तैनात सीआरपीएफ अफसरों का दावा है कि आने वाले महीनों में इन इलाकों को सड़क, बिजली और रोजगार से जोड़ा जाएगा, ताकि नक्सलवाद की वापसी की कोई गुंजाइश न रहे.
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