क्रांति की प्रतिज्ञा और प्रेम अगर किसी हृदय में एक साथ रह सकते हैं तो वो दिल किसी लेखक का ही सकता है. जिसमें विचारों का उन्माद कुछ ऐसा उमड़ता है कि देश प्रेम के लिए भी दिल हूम हूम करता है और स्त्री के प्रेम से भी दिल धड़कने लगता है. साथ में लेखन की कला भी मिल जाए तो हर भाव खूबसूरत शब्दों में ढलकर कहानी बन जाता है. बिहार के फणीश्वरनाथ रेणु भी ऐसे ही लेखक हुए. जिनके दिल में देश प्रेम के भाव उमड़े तो प्यार में भी वो बार बार डूबे. रेणु का लिखा उपन्यास मैला आंचल पहला आंचलिक उपन्यास माना जाता है. जिसे आज भी पढ़ें तो वह ताजा हालातों का सटीक चित्रण लगता है. रेणु के और भी बहुत से उपन्यास लोगों ने पसंद किए. ये भी विडंबना ही कहिए कि जिस लेखक के बारे में साहित्य के छात्रों को पढ़ाया जाता है वो खुद बमुश्किल दसवीं पास थे. कहते हैं रेणु की पढ़ाई अधूरी छोड़ने की वजह था कम उम्र का इश्क...
पहला प्यार और पहली बार दिल का टूटना
रेणु के जीवन पर एक संक्षिप्त जीवनी लिखी पत्रकार पुष्यमित्र ने. उनकी किताब के कुछ अंश के मुताबिक रेणु ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में दूसरी कोशिश के बाद मैट्रिक की परीक्षा पास की. उस समय मैट्रिक का अर्थ होता था दसवीं. इस पढ़ाई के दौरान ही रेणु को सुहास नाम की एक छात्रा से प्रेम हो गया. उनका ये प्रेम परवान चढ़ पाता उससे पहले ही चेचक की वजह से छात्रा की मौत हो गई. रेणु का दिल इस कदर टूटा कि वो इंटरमीडिएट की पढ़ाई छोड़ कर गांव चले गए. उन्होंने बारहवीं की पढ़ाई तो की, लेकिन परीक्षा नहीं दी. इसलिए वो दसवीं पास ही कहलाए.
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पहली शादी और क्रांति की राह
साल 1941 में रेणु की पहली शादी रेखा देवी से हुई. इस शादी से रेणु को एक बेटी भी हुई. जीवन सुख से गुजर रहा था, लेकिन निर्दयी समय को देखिए, रेखा देवी को लकवा मार गया और वे अपने मायके रहने चली गईं. उधर, रेणु ने आजादी की जंग की राह पकड़ ली. वो नेपाल की क्रांति में शामिल हो गए. इस क्रांति की सजा उन्हें अंग्रेजों की यातानाओं के रूप में मिली और जेल की चार दीवार में पटक दिया गया. साल 1944 में रेणु जेल में ही बुरी तरह बीमार हुए. वो बेहद कमजोर भी हो चुके थे. जिसके बाद उन्हें पटना के पीएमसीएच अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती करवाया गया. इसी इलाज के दौरान रेणु को मिला उनके जीवन में ऊर्जा का नया स्रोत.
नर्स से प्यार और दूसरी शादी
कमजोरी के हालत में भी रेणु का दिल प्यार के लिए धड़कता रहा. वो जिस वार्ड में भर्ती थे उस वार्ड की इंचार्ज थी लतिका राय चौधरी. इलाज कराते कराते रेणु लतिका को दिल दे बैठे. रेणु की हालत इतनी खराब थी कि बमुश्किल जान बची थी. वो ठीक होकर डिस्चार्ज हुए और घर चले गए. रेणु चले तो गए, लेकिन दिल छोड़ गए लतिका के पास. उस दौर में रेणु लतिका को खूब पत्र लिखा करते थे.
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इस बीच रेणु की शादी उनके पिता ने पद्मा नाम की युवती से करवा दी. हालांकि ये ठीक ठीक जिक्र नहीं मिलता कि लतिका से प्यार होने के बाद पद्मा से शादी हुई या फिर बाद में. लेकिन पद्मा ने रेणु का हर हाल में ध्यान रखा. बताते हैं कि पद्मा ने रेणु को हर तरह के बंधन और जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया था. खेती बाड़ी से लेकर बच्चों तक को वो अकेले संभालती थीं. ताकि रेणु अपने लेखन और अपनी क्रांति पर पूरा ध्यान दे सकें. साहित्य जगत में ये भी माना जाता है कि मैला आंचल की कमली, पद्मा से ही प्रेरित किरदार था.
रेणु की जिंदगी में एक बार फिर कुछ नए मोड़ आए. वो फिर से बहुत बीमार पड़े. इस बार भी इलाज का जिम्मा लतिका को ही मिला. इस बार लतिका रेणु को नजरअंदाज न कर सकीं. उन्होंने पूरी शिद्दत से रेणु की सेवा और इलाज किया. कई महीनों तक लतिका उनका ख्याल रखती रहीं और रेणु ठीक हो गए. लेकिन इसका असर ये हुआ कि खुद लतिका रेणु से फिर दूर न हो सकीं. दोनों ने शादी नहीं की लेकिन एक चाइल्ड वेलफेयर संस्था के सेंटर में साथ रहने लगे. उस दौर में लिवइन का ये पेटर्न चलन में नहीं था. लोगों ने रेणु और लतिका पर उंगलियां उठाना शुरू कर दिया. जिसके बाद दोनों ने शादी का फैसला किया.
रेखा देवी और पद्मा से रेणु का परिवार आगे बढ़ा. हालांकि लतिका से उनकी कोई संतान नहीं हुई. कुछ जिक्र ये भी मिलता है कि रेणु के गुजर जाने के बाद उनकी दोनों पत्नियां पद्मा और लतिका साथ ही रहने लगीं.
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