क्या होती है लाइटहाउस पैरेंटिंग, टीनेजर्स की परवरिश में आजमा सकते हैं यह यूनिक तरीका 

Lighthouse Parenting: आप टीनेजर बच्चों के माता-पिता हैं तो आपने पैरेंटिंग के अलग-अलग तरीकों के बारे में तो सुना ही होगा. लेकिन, क्या आप लाइटहाउस पैरेंटिंग के बारे में जानते हैं? यहां जानिए लाइटहाउस पैरेंटिंग क्या होती है और टीनेजर्स की परवरिश में कैसे काम आती है. 

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What Is Lighthouse Parenting: बच्चों की परवरिश में काम आ सकता है यह अनोखा तरीका. 

Parenting Tips: परवरिश के अलग-अलग तरीकों में से ही एक है लाइटहाउस पैरैंटिंग. असल में लाइटहाउस पैरेंटिंग (Lighthouse Parenting) एक तरह की बैलेंस्ड पैरेंटिंग अप्रोच है जिसमें बच्चों को प्यार, सपोर्ट और गाइडेंस दी जाती है लेकिन साथ-साथ बाउंडरीज मेंटेन करना भी जरूरी होता है. इस पैरेंटिंग स्टाइल में माता-पिता बच्चे को एक सुरक्षित वातावरण देते हैं जिसमें बच्चे खुद को बेहतर तरह से एक्सप्रेस कर सकते हैं. इसमें बच्चे माता-पिता से अपने मन की बातें बिना डरे कह पाते हैं. यहां जानिए क्या होती है लाइटहाउस पैरेंटिंग और इसे कैसे आजमाया जा सकता है.

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लाइटहाउस पैरेंटिंग कैसे अपनाएं 

बनाएं क्लियर नियम 

लाइटहाउस पैरेंटिंग में आपको क्लियर रूल्स बनाने होते हैं. आपको नियम बनाकर यह सुनिश्चित करना होता है कि बच्चे इन्हें गंभीरता से फॉलो करें. वहीं, स्पष्ट होना भी जरूरी है, जैसे अगर आप चाहते हैं कि बच्चा अपना फोन इस्तेमाल ना करे तो सीधेतौर पर उसे कहें कि फोन इस्तेमाल ना करे. तानों के जरिए बात कहने की कोशिस ना करें. 

कमजोरियों पर ना करें निंदा 

अगर बच्चे की कोई कमजोरी (Weakness) है तो उसकी सीधेतौर पर निंदा ना करें बल्कि समझें और उसे भी समझाएं कि कमजोरियों से सीखने की जरूरत होती है. चाहे गलती हो या फिर कोई कमी, इसे पूरा करने पर ध्यान दें ना कि बच्चे की निंदा करके उसका मनोबल कमजोर करें. 

कोशिश के दें पूरे नंबर 

किशोरावस्था ऐसी उम्र है जिसमें बच्चे अलग-अलग कामों को सीखने की कोशिश करते रहते हैं और अक्सर एक्सपेरिमेंट्स करते हैं. ऐसे में अगर बच्चे किसी काम में बुरे भी निकलते हैं और कभी-कभी उन्हें हार का मुंह भी देखना पड़ता है. ऐसे में बच्चे को उसकी कोशिश और एफर्ट्स (Efforts) के पूरे नंबर दें. रिजल्ट क्या निकला या क्या नहीं इससे ज्यादा जरूरी है बच्चे का हौंसला बढ़ाना. 

बहुत ज्यादा कठोरना ना अपनाना 

इस पैरेंटिंग स्टाइल में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि माता-पिता बच्चे के साथ बहुत ज्यादा कठोरता नहीं बरत रहे हैं. इस उम्र में बच्चे से बहुत ज्यादा कठोर व्यवहार किया जाए तो बच्चों में एक तरह का डर गहराने लगता है जिससे वे अपनी परेशानियां तक पैरेंट्स से कहने से डरने लगते हैं.

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