पिता की इन 5 बातों से ही बेटे सीखते हैं Caring बनना, परवरिश में अहम है इन्हें याद रखना

Parenting Tips: पिता बेटे के रोल मॉडल होते हैं जिन्हें देखकर ही वह बड़ा होता है और जिनसे वह जीवन के कई गुण और अवगुण भी सीखता चला जाता है. 

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Parenting Tips For Father: बेटा अपने पिता से ही सीखता है बहुत सी आदतें. 

Parenting: बेटे छोटी उम्र से ही अपने पिता को देखकर उनकी तरह बनने का ख्वाब मन में लिए बड़े होते हैं. वे अपने पिता की गैर-मौजूदगी में उनकी जगह को भरने का प्रयास भी करते हैं. आमतौर पर देखा भी जाता है कि अगर पिता में कुछ अच्छी आदतें हैं तो बेटे में भी उनका संचार हो जाता है, और अगर पिता की कुछ बुरी आदतें (Bad Habits) हैं तो बेटा भी उन्हीं को अपनाने लगता है. ऐसे में पिता को इस बात का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है कि वे अपने बेटे को किस तरह का इंसान बना रहे हैं. अगर आप चाहते हैं कि आपका बेटा केयर करने वाला, मन में सद्भावना रखने वाला और सम्मान देने वाला व्यक्ति बने तो आपकी आदतें भी इसी तरह की होनी जरूरी हैं. 

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पिता की आदतों से सीखता है बेटा

गलती स्वीकारना 

अक्सर देखा जाता है कि पिता ही घर का मुखिया होता है. उससे पूरा घर डरता है और अपनी गलतियों की माफी मांगता है. लेकिन, पिता को कम ही किसी से माफी मांगते देखा जाता है. आप ऐसे पिता ना बनें. आप अपनी गलतियों की माफी मांगने वाले व्यक्ति बनें ताकि आपके बेटे को भी यह समझ आ सके कि माफी मांगने से कोई छोटा-बड़ा नहीं हो जाता, यह बेहद सामान्य चीज है. 

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अहंकार को ना दें बढ़ावा 

एक पिता होने के नाते यह बेहद जरूरी है कि आप अपने बेटे को अहंकारी ना बनाएं. आपको खुद भी अपने अहं को दूर रखना होगा जिससे आपके बेटे की भी इस तरह की आदतें ना बनें. 

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प्यार जताना 

जब पिता अपने परिवार और अपने बेटे के प्रति खासकर प्यार की भावना रखते हैं और उस प्यार को जताते हैं तो बेटा भी प्यार जताने वाला इंसान बनता है. वह अपनी भावनाओं (Emotions) से कुंठित होने वाला व्यक्ति नहीं बनता. 

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सम्मान करना 

घर में कोई छोटा हो या फिर बड़ा, सम्मान का हकदार है. पिता (Father) से बच्चे जो कुछ सीखते हैं उसमें सम्मान करना सीखना भी जरूरी है. जब पिता अपने बेटे का, अपनी बेटी का, अपनी पत्नी का, अपने माता और पिता का सम्मान करते हैं तो यह गुण बेटे में भी आता है. 

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बात सुनने वाला बनना 

अपनी बात कह देना बहुत से लोगों को आता है लेकिन बात सुनने वाले कम ही होते हैं. आप अगर खुद बैठकर सबकी बातें सुनेंगे और समझेंगे तो बच्चों की भी यही आदत पड़ेगी. वे भी अपनी बात थोपने की जगह सबकी बात सुनने की कोशिश करेंगे.

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