Shaheed Diwas 2021: देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी भगत सिंह (Bhagat Singh), शिवराम राजगुरु (Shivaram Rajguru) और सुखदेव थापर (Sukhdev Thapar) को आज ही के दिन 23 मार्च 1931 को फांसी पर चढ़ाया गया था और इन तीन देशभक्तों ने हंसते-हंसते शहादत को गले लगा लिया था. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की याद में ही हर साल 23 मार्च को शहीद दिवस (Shaheed Diwas) मनाया जाता है. भगत सिंह ने अंग्रेजों से लोहा लिया और असेंबली में बम फेंक कर उन्हें सोती नींद से जगाने का काम किया था, असेंबली में बम फेंकने के बाद वे भागे नहीं और जिसकी वजह से उन्हें फांसी की सजा हो गई. वहीं इसके अलावा देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथी के रूप में 30 जनवरी को भी शहीद दिवस में मनाया जाता है.
आज शहीद दिवस के मौके पर क्रांतिकारी भगत सिंह की जिंदगी से हमें कई तरह की प्रेरणाएं मिलती हैं. उनके कई विचार ऐसे हैं, जिनसे किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं. भगत सिंह का मानना था कि जिंदगी तो सिर्फ अपने दम पर ही जी जाती है. भगत सिंह कहते थे कि आमतौर पर लोग जैसे जीते हैं, वे उसी के आदी हो जाते हैं. वे बदलाव में विश्वास नहीं रखते और महज उसका विचार आने से ही कांपने लगते हैं. ऐसे में यदि हमें कुछ करना है तो निष्क्रियता की भावना को बदलना होगा. हमें क्रांतिकारी भावना अपनानी होगी
जानिए भगत सिंह से जुड़ी खास बातें...
1. भारत के वीर स्वतंत्रता सेनानी भगत सिह का जन्म पंजाब प्रांत में लायपुर जिले के बंगा में 28 सितंबर, 1907 को पिता किशन सिंह और माता विद्यावती के घर हुआ था.
2. 12 साल की उम्र में जलियांवाला बाग हत्याकांड के साक्षी रहे भगत सिंह की सोच पर ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भारत की आजादी के लिए 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना कर डाली.
3. भगत सिंह का 'इंकलाब जिंदाबाद' नारा काफी प्रसिद्ध हुआ. वो हर भाषण और लेख में इसका जिक्र करते थे.
4. वीर स्वतंत्रता सेनानी ने अपने दो अन्य साथियों-सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया, जिसने अंग्रेजों के दिल में भगत सिह के नाम का खौफ पैदा कर दिया.
5. परिजनों ने जब उनकी शादी करनी चाही तो वह घर छोड़कर कानपुर भाग गए. अपने पीछे जो खत छोड़ गए उसमें उन्होंने लिखा कि उन्होंने अपना जीवन देश को आजाद कराने के महान काम के लिए समर्पित कर दिया है.
6. भगत सिंह को पूंजीपतियों की मजदूरों के प्रति शोषण की नीति पसंद नहीं आती थी. 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेम्बली में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल पेश हुआ. अंग्रेजी हुकूमत को अपनी आवाज सुनाने और अंग्रेजों की नीतियों के प्रति विरोध प्रदर्शन के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली में बम फोड़कर अपनी बात सरकार के सामने रखी. दोनों चाहते तो भाग सकते थे, लेकिन भारत के निडर पुत्रों ने हंसत-हंसते आत्मसमर्पण कर दिया.
7. लाहौर षड्यंत्र केस में उनको राजगुरू और सुखदेव के साथ फांसी की सजा हुई और 24 मई 1931 को फांसी देने की तारीख नियत हुई. लेकिन नियत तारीख से 11 घंटे पहले ही 23 मार्च 1931 को उनको शाम साढ़े सात बजे फांसी दे दी गई. कहा जाता है कि जब उनको फांसी दी गई तब वहां कोई मजिस्ट्रेट मौजूद नहीं था, जबकि नियमों के मुताबिक ऐसा होना चाहिए था.