समय पर इलाज से अस्थमा पर नियंत्रण संभव : विशेषज्ञ
                                                                                                                        
                                        
                                        
                                                                                नई दिल्ली: 
                                        अस्थमा की वक्त पर पहचान से इसे नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है. जी हां, अगर समय पर अस्थमा के बारे में पता लग जाए तो इसका इलाज आसान हो जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस बीमारी में दौरा तेज होते ही मरीज के दिल की धड़कन और सांस लेने की रफ्तार बढ़ जाती है. ऐसे में वह खुद को बेचैन व थका हुआ महसूस करने लगता है. विश्व अस्थमा दिवस पर पीएसआरआई अस्पताल के पल्मोनोलॉजी विभाग के कंसल्टेंट डॉ. पंकज सयाल ने कहा कि इस बीमारी के लक्षणों की समय पर पहचान और उसका इलाज कर इस पर काबू पाया जा सकता है. 
उन्होंने कहा, "जब किसी को अस्थमा का दौरा पड़ता है तो वह गहरी सांस लेने लगता है. जितनी मात्रा में व्यक्ति ऑक्सीजन लेता है, उतनी मात्रा में कार्बन डाईऑक्साइड बाहर नहीं निकाल पाता. ऐसे समय में दमा रोगियों को खांसी आ सकती है, सीने में जकड़न महसूस हो सकती है, बहुत अधिक पसीना आ सकता है और उल्टी भी हो सकती है. अस्थमा के रोगियों को रात के समय, खासकर सोते हुए ज्यादा कठिनाई महसूस होती है."
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श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट के रेस्पिरेटरी मेडिसिन के वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ. ज्ञानदीप मंगल के मुताबिक, "सभी में अस्थमा के लक्षण एक जैसे नहीं होते हैं. ऐसे में अस्थमा के लक्षणों की पहचान करना जरूरी हो जाता है, उसके बाद ही इसका इलाज शुरू किया जा सकता है. मुख्य तौर से अस्थमा के मरीजों में छाती में जकड़न, सांस लेते और छोड़ते समय सीटी जैसी आवाज निकलना, श्वांस नली में हवा का प्रवाह सही ढंग से न हो पाना जैसे लक्षण होने पर बिना समय गवाएं अस्थमा का इलाज करवाना चाहिए, ताकि समय रहते इस बीमारी पर काबू पाया जा सकें."
उन्होंने कहा, "अस्थमा के उपचार में सबसे सुरक्षित तरीका इन्हेलेशन थेरेपी को माना जाता है. अस्थमा अटैक होने पर मरीज को सांस लेने में बहुत कठिनाई होती है ऐसी स्थिति में इन्हेलर सीधे रोगी के फेफड़ों में पहुंचकर अपना प्रभाव दिखाना शुरू करता है, जिससे मरीज के फेफड़ों की सिकुड़न कुछ कम होती है और मरीज को राहत महसूस होती है. लेकिन इसके अत्यधिक इस्तेमाल से कई प्रकार के साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं."
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मेडिकवर फर्टिलिटी में फर्टिलिटी सॉल्यूशंस की क्लिनिकल डायरेक्टर डॉ. श्वेता गुप्ता ने कहा, "अगर गर्भावस्था से पहले अस्थमा से प्रभावित महिलाओं का अस्थमा रोग पर्याप्त ढंग से नियंत्रित नहीं है तो गर्भावस्था के दौरान उनके द्वारा अस्थमा के खराब लक्षणों का अनुभव करने की संभावना बढ़ जाती है. अपर्याप्त ढंग से नियंत्रित अस्थमा के कारण भ्रूण के लिए नवजात हाइपोक्सीया, अंतर्गर्भाशयी विकास प्रतिबंध, समय से पहले जन्म, कम वजन के साथ पैदा होना, भ्रूण और नवजात की मृत्यु होने जैसे जोखिम पैदा हो सकते हैं." (इनपुट - आईएएनएस)
देखें वीडियो - क्या है और क्यों होता है अस्थमा
                                                                                 
                                                                                
                                                                                                                        
                                                                                                                    
                                                                        
                                    
                                उन्होंने कहा, "जब किसी को अस्थमा का दौरा पड़ता है तो वह गहरी सांस लेने लगता है. जितनी मात्रा में व्यक्ति ऑक्सीजन लेता है, उतनी मात्रा में कार्बन डाईऑक्साइड बाहर नहीं निकाल पाता. ऐसे समय में दमा रोगियों को खांसी आ सकती है, सीने में जकड़न महसूस हो सकती है, बहुत अधिक पसीना आ सकता है और उल्टी भी हो सकती है. अस्थमा के रोगियों को रात के समय, खासकर सोते हुए ज्यादा कठिनाई महसूस होती है."
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श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट के रेस्पिरेटरी मेडिसिन के वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ. ज्ञानदीप मंगल के मुताबिक, "सभी में अस्थमा के लक्षण एक जैसे नहीं होते हैं. ऐसे में अस्थमा के लक्षणों की पहचान करना जरूरी हो जाता है, उसके बाद ही इसका इलाज शुरू किया जा सकता है. मुख्य तौर से अस्थमा के मरीजों में छाती में जकड़न, सांस लेते और छोड़ते समय सीटी जैसी आवाज निकलना, श्वांस नली में हवा का प्रवाह सही ढंग से न हो पाना जैसे लक्षण होने पर बिना समय गवाएं अस्थमा का इलाज करवाना चाहिए, ताकि समय रहते इस बीमारी पर काबू पाया जा सकें."
उन्होंने कहा, "अस्थमा के उपचार में सबसे सुरक्षित तरीका इन्हेलेशन थेरेपी को माना जाता है. अस्थमा अटैक होने पर मरीज को सांस लेने में बहुत कठिनाई होती है ऐसी स्थिति में इन्हेलर सीधे रोगी के फेफड़ों में पहुंचकर अपना प्रभाव दिखाना शुरू करता है, जिससे मरीज के फेफड़ों की सिकुड़न कुछ कम होती है और मरीज को राहत महसूस होती है. लेकिन इसके अत्यधिक इस्तेमाल से कई प्रकार के साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं."
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मेडिकवर फर्टिलिटी में फर्टिलिटी सॉल्यूशंस की क्लिनिकल डायरेक्टर डॉ. श्वेता गुप्ता ने कहा, "अगर गर्भावस्था से पहले अस्थमा से प्रभावित महिलाओं का अस्थमा रोग पर्याप्त ढंग से नियंत्रित नहीं है तो गर्भावस्था के दौरान उनके द्वारा अस्थमा के खराब लक्षणों का अनुभव करने की संभावना बढ़ जाती है. अपर्याप्त ढंग से नियंत्रित अस्थमा के कारण भ्रूण के लिए नवजात हाइपोक्सीया, अंतर्गर्भाशयी विकास प्रतिबंध, समय से पहले जन्म, कम वजन के साथ पैदा होना, भ्रूण और नवजात की मृत्यु होने जैसे जोखिम पैदा हो सकते हैं." (इनपुट - आईएएनएस)
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