Parenting Tips: बच्चे की परवरिश उसकी जिंदगी को बनाने या बिगाड़ने वाली साबित हो सकती है. ऐसे में माता-पिता की यही कोशिश रहती है कि बच्चे की परवरिश में कोई कमी ना छोड़ी जाए और उसे एक बेहतर इंसान बनाया जाए. मुश्किल तब आती है जब यह जिम्मेदारी पूरी तरह सिंगल पैरेंट पर आ जाती है. सिंगल पैरेंट्स (Single Parents) को बच्चे का माता-पिता दोनों खुद ही बनना पड़ता है और बच्चे को अपने दूसरे पैरेंट की गैरमौजूदगी महसूस ना हो इसका भी ख्याल रखना पड़ता है. अक्सर ही सिंगल पैरेंट्स के बच्चे खुद को जीवन में अकेला महसूस करने लगते हैं. लेकिन, सिंगल पैरेंट अगर कुछ बुनियादी बातों का ख्याल रखें तो बच्चे खुद को अकेला महसूस नहीं करते और एक बेहतर इंसान भी बनते हैं.
सिंगल पैरेंट्स बच्चे को जरूर सिखाएं ये बातें
पॉजिटिव अंटेशन देंकोशिश करें कि आप अपने बच्चे के लिए घर-परिवार का माहौल पॉजिटिव बनाकर रखें. बच्चे को पॉजिटिव अंटेशन दें, उसके साथ हंसे, खेलें, मुस्कुराएं, बात करें और इमोशनली अवेलेबल रहें. बच्चे को अपने पैरेंट की अंटेशन अच्छी लगती है और इस तरह वह अपने माता या पिता के करीब भी आता है.
आपको अपने और बच्चे दोनों के टाइम मैनेजमेंट (Time Management) पर ध्यान देना होगा. बच्चा अगर छोटी उम्र से ही टाइम मैनेजमेंट सीखेगा और अपने समय को सही तरह से बांटना सीखेगा तो आगे चलकर जीवन में कभी उसे अपनी प्रायोरिटीज सेट करने में दिक्कत नहीं आएगी. अक्सर ही बच्चे खुद से काम को पूरा करना नहीं सीख पाते क्योंकि उन्हें किस काम को कितना देर करना है यह नहीं पता होता.
सिंगल पैरेंट्स की अगर कोई चीज बच्चों को खूब खलती है तो वो है समय की कमी. लेकिन, खुद के साथ समय बिताना उतना बुरा भी नहीं है जितना हमें लगने लगता है. आपको अपने बच्चे को सिखाना चाहिए कि खुद के साथ समय बिताना कितना अच्छा हो सकता है. किताबें पढ़ना, फिल्में देखना, गाने सुनना या अपनी कोई मनपसंद चीज करने के लिए यह समय बेहद अच्छा है. इससे बच्चे को अकेला महसूस नहीं होगा और वह खुद के साथ क्वालिटी टाइम बिताना सिखेगा सो अलग.
इमोशनली स्ट्रोंग लोग जिंदगी में आगे ही नहीं बढ़ते बल्कि खुश भी रहते हैं. अपने बच्चे के इमोशंस को समझकर और सुनकर आप उन्हें सिखा सकते हैं कि खुद की भावनाओं को व्यक्त करने में कोई बुराई नहीं है. आप उनके लिए इमोशनली अवेलेबल (Emotionally Available) रहेंगे तो किसी बात से निराश होकर खुद में ही घुटते नहीं रहेंगे. कभी-कभी माता-पिता दोनों भी बच्चे के लिए इमोशनली अवेलेबल नहीं रह पाते और कभी-कभी सिंगल पैरेंट भी बच्चे को दोनों पैरेंट्स जितना सपोर्ट और समय दे देते हैं.
अपने उदाहरण खुद बनानाअक्सर सिंगल पैरेंट्स के बच्चे यह सोचकर बढ़े होते हैं कि अगर उनकी जिंदगी भी अपने माता-पिता जैसी ना हो जाए. लेकिन, बच्चों को सिखाएं कि जिस तरह सबकी जिंदगी अलग होती है उसी तरह सबकी जिंदगी की कहानी भी अलग-अलग होती है. चाहे प्यार हो या शादी और बच्चों को पालना, बच्चों को समझाएं कि उन्हें अपने उदाहरण खुद बनाने हैं और किसी और को देखकर निराश नहीं होना है.