Sanskrit Shloka: संस्कृत के श्लोकों का अत्यधिक धार्मिक महत्व होता है. माना जाता है कि वेद पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में लिखे संस्कृत के श्लोंकों का उच्चारण करना जीवन में सकारात्मकता लेकर आता है. विद्यार्थियों को भी ऐसे कई श्लोंकों का उच्चारण करने की सलाह दी जाती है जो उनमें ज्ञान के सागर का प्रवाह बढ़ाता है. जिस तरह विद्यालय में पढ़ाई शुरू करने से पहले गायत्री मंत्र का उच्चारण किया जाता है बिल्कुल उसी तरह इन संस्कृत के श्लोकों को कंठस्थ करना विद्यार्थियों(Students) के लिए अच्छा मानते हैं. हालांकि, श्लोक जपने भर से जीवन में सफलता नहीं आती या ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती, लेकिन इन श्लोकों से लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने की उत्साह आता है और सकारात्मकता का प्रवाह होता है सो अलग.
विद्यार्थियों के लिए संस्कृत के श्लोक | Sanskrit Shloka For Students
काक: चेष्टा, बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च। अल्पाहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंचलक्षणम् ॥
अर्थ - कौए की तरह चतुर, बगुले की तरह ध्यान करना, स्वान की तरह कम नींद लेना, कम खाना और ग्रह त्याग करना ही विद्यार्थी के पांच लक्षण होते हैं.
सुलभा: पुरुषा: राजन् सततं प्रियवादिन: । अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:।।
अर्थ - मीठा बोलने वाले बहुत मिलते हैं लेकिन अच्छा ना लगने वाला और हित में बोलने और सुनने वाले लोग बहुत मुश्किल से मिलते हैं.
विद्वानेवोपदेष्टव्यो नाविद्वांस्तु कदाचन । वानरानुपदिश्याथ स्थानभ्रष्टा ययुः खगाः ॥
अर्थ - सलाह समझदार को देनी चाहिए ना कि किसी मुर्ख को. ध्यान रहे कि बंदरो को सलाह देने के कारण पक्षियों ने भी अपना घोंसला गवां दिया था.
लसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् । अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतो सुखम् ॥
अर्थ - आलस करने वाले को ज्ञान कैसे होगा. जिसके पास ज्ञान नहीं उसके पास पैसा नहीं और पैसा नहीं तो दोस्त नहीं बनेंगे और बिना दोस्त जीवन में सुख कैसे आएगा.
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैवकुटम्बकम्॥
अर्थ - यह अपना है और यह दूसरों का है जैसी बातें छोटी सोच वाले कहते हैं. उदार लोगों के लिए पूरी दुनिया ही परिवार जैसी होती है.
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः । न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥
अर्थ - सफलता कार्य करने से मिलती है ना कि मंसूबे गांठने से. सोते हुए शेर के मुंह में भी हिरन अपने से आकर नहीं घुसता है कि यह ले शेर भूख लगी है तो मुझे खा ले.
विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् । पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥
अर्थ - पढ़ने लिखने से शरूर आता है और शऊर से काबिलियत. काबिलियत से पैसे आने शुरू होते हैं और पैसों से धर्म और फिर सुख मिलता है.
मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं मुखे । हठी चैव विषादी च परोक्तं नैव मन्यते ॥
अर्थ - मूर्खों की पांच निशानियां होती हैं, वे अंहकारी होते हैं, उनके मुंह में हमेशा बुरे शब्द होते हैं, जिद्दी होते हैं, हमेशा बुरी सी शक्ल बनाए रहते हैं और दूसरों की बात कभी नहीं मानते.
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्शो महारिपुः । नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कुर्वाणो नावसीदति ॥
अर्थ - आलस्य आदमी की देह का सबसे बड़ा दुश्मन है और परिश्म आदमी का सबसे बड़ा दोस्त. परिश्रम करने वाले का कभी नाश या नुकसान नहीं होता है.
श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ग्रन्थकोटिभिः । परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥
अर्थ - करोड़ों ग्रंथों में यह कहा गया है कि दूसरों का भला करना ही सबसे बड़ा पुण्य है और दूसरे को दुख देना सबसे बड़ा पाप.
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः। मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः॥
अर्थ - शरीर से परे श्रेष्ठ इन्द्रियां कही जाती हैं, इन्द्रियों से परे मन होता है और मन से परे बुद्धि है और जो बुद्धि से भी परे है वह है आत्मा.
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